Muslim World

Batla House: An encounter that shook the nation मुठभेड़ को सही ठहराने की एक और कोशिश


दिल्ली स्पेशल सेल के पूर्व निदेशक करनैल सिंह की यह पुस्तक जासूसी उपन्यास पढ़ने वालों को खूब पसंद आएगी

किताबः बाटला हाउस: ऐन एनकाउंटर दैट शेक द नेशन
लेखकः करनैल सिंह, आईपीएस
प्रकाशन: रूपा प्रकाशन
कुल पेजः 220
मूल्य: पेपर बैक में 295 रूपये

मलिक असगर हाशमी
बाटला हाउस एनकाउंटर’ तो याद होगा ही। 19 सितंबर 2008 के दिन शाम करीब सवा छह बजे दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के लोग अचानक जामिया नगर के बाटला हाउस इलाके के एल-18 नंबर की बिल्डिंग घेर लेते हैं। फिर फ्लैट नंबर 108 के भीतर गोलियों की बौछार शुरू होती है। स्पेशल सेल की ओर से बताया जाता है कि इंडियन मुजाहिदीन के दो खुंखार आतंकवादी आतिफ अमीन एवं मोहम्मद साजिद मुठभेड़ में मार गिराए गए। कुछ लोग भाग निकलने। इस दौरान स्पेशल सेल के मोहन चंद शर्मा को भी गोली लगी, जिन्होंने बाद में दम तोड़ दिया।
   दिल्ली पुलिस के इन दावों के विपरीत आज भी कई मानवाधिकार संगठनों, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं एवं घटना के समय मौजूद बाटला हाउस इलाके के लोगों का मानना है कि ‘मुठभेड़ फर्जी’ था। उस समय चूंकि चरमपंथी संगठन इंडियन मुजाहिदीन दिल्ली एवं आस-पास के इलाके में ज्यादा सक्रिय था। उसके बार-बार के बम धमाकों से दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल की छीछा लेदर हो रही थी। इसलिए विरोधियों का मुंह बंद करने के लिए बाटला हाउस में मुठभेड़ ‘प्लांट’ किया गया और दो निर्दोष मार दिए गए। ऐसे तमाम नजरियों से उलट सीनियर आईपीएस अधिकारी एवं उस समय दिल्ली स्पेशल सेल की बागडोर संभालने वाले करनैल सिंह की पुस्तक आई है-‘बाटला   हाउस : ऐन एनकाउंटर दैट शेक द नेशन‘ (Batla House: An encounter that shook the nation)। चूंकि 1984 बैच के आईपीएस ऑफिसर करनैल सिंह के नेतृत्व में ही एनकाउंटर हुआ, इसलिए उनकी ओर से इसपर सवाल उठाया जाएगा, ऐसा सोचना भी बेमानी है। उम्मीद के अनुसार, पुस्तक में न केवल मुठभेड़ को ‘जस्टीफाइ’ किया गया। इसे कुछ इस तरह तरतीब दिया गया कि ‘थ्रीलर नॉवल’ (thriller novels) पढ़ने के शौकीन हाथों-हाथ खरीद सकें। पुस्तक एक सिंटिंग में पढ़ने लायक है।

आतंकवादी मामलों की जांच के तरीके पर रोशनी

 ‘बाटला  हाउस : ऐन एनकाउंटर दैट शेक द नेशन‘ के दो भाग हैं। एक में आतंकवाद को नियंत्रित करने में अधिकारियों एवं कनिष्ठों की भूमिका एवं जमीनी स्तर पर आने वाली चुनौतियों का जिक्र है, जब कि दूसरे हिस्से में ‘बाटला हाउस एनकाउंटर’ का विस्तार पूर्वक विवरण। यह कैसे और क्यों हुआ ? स्पेशल सेल ने विभिन्न राज्यों की पुलिस, इंटेलिजेंस से समन्वय स्थापित कर कैसे ‘आतंकवादियों’ के बाटला हाउस में छिपे होने की पहचान की ? आदि, आदि। करनैल सिंह के दावों पर यकीन करें तो उनके प्रयासों से इंडियन मुजाहिदीन की कमर टूट चुकी है। वैसे, दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल का नेतृत्व करने के नाते करनैल सिंह का इतना दावा तो बनता ही है। आतंकवादी मामलों की कैसे जांच की जाती है ? पुस्तक में इसका भी जिक्र है। जासूसी उपन्यास पढ़ने वाले ऐसे विषयों पर लिखी पुस्तकें बड़े चाव से पढ़ते हैं। इस लिए औरों के मुकाबले उन्हें यह खूब भायेगी।

मुसलमानों को निशाना बनाने का आरोप

‘बाटला हाउस एनकाउंटर’ को लेकर आज तक विवाद है। इसने देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सुर्खियाँ बटोरी है। इस लिए आशा के अनुरूप पुस्तक में मुठभेड़ को फर्जी बताने वालों पर सलीके से प्रहार किया गया है। इसके मुताबिक, विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं, मानवाधिकार संगठनों एवं मीडिया के एक वर्ग ने स्पेशल सेल के खिलाफ लोगों को सुलगाने का प्रयास किया। ऐसे नेताओं में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह का नाम आता है। मुठभेड़ को लेकर तमाम तरह के सवालों के बीच पुस्तक में इस कार्रवाई का पूरी श्रेष्ठा एवं निष्ठा से हर जगह जिक्र किया गया है। बाटला हाउस ऑपरेशन को अंजाम देने वाले पुलिस कर्मियों के योगदान इसमें विशेष तौर से उल्लेख किए गए हैं। हालांकि करनैल सिंह जब दिल्ली स्पेशल सेल के प्रभारी थे, उनपर मुसलमानों को गलत तरीके से निशाना बनाने का आरोप लगता रहा। पुस्तक स्पेशल सेल के शहीद अधिकारियों एवं कर्मचारियों के नाम समर्पित है। करनैल सिंह प्रवर्तन निदेशालय का भी नेतृत्व कर चुके हैं।

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संपादक