Muslim WorldPoliticsTOP STORIES

माने या न मानें, पर आरएसएस प्रमुख इस बात पर अड़े कि भारत में रहने वाले सभी हिंदू हैं

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, दरभंगा

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान की कई बार आलोचना हो चुकी है कि देश के सभी धर्मों के लोग हिंदू हैं. मान्यता, संस्कृति और फेथ के हिसाब से लोग अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं. इसी वजह से भारत को विविधता मंे एकता का देश कहा जाता है. मगर आरएसएस की अलग सोच है.

भागवत ने सोमवार को एक बार फिर दोहराया कि भारत में रहने वाले सभी लोग परिभाषा के अनुसार हिंदू हैं. देश की सांस्कृतिक प्रकृति के कारण देश में विविधता पनपी है.सरसंघचालक ने कहा कि जो कोई भी भारत माता की प्रशंसा में संस्कृत के श्लोकों को गाने के लिए सहमत है और भूमि की संस्कृति के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है, वह हिंदू है.

बिहार के अपने चार दिवसीय दौरे के समापन से पहले यहां आरएसएस कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे भागवत ने कहा कि अगर देश के सभी नागरिक स्वयंसेवकों (आरएसएस स्वयंसेवकों) द्वारा प्रदर्शित निस्वार्थ सेवा की भावना को अपनाते हैं तो विशाल संगठन बेमानी हो जाएगा.

उन्हांेने कहा,लोगों को यह समझना चाहिए कि क्योंकि वे हिंदुस्तान में रहते हैं, वे सभी हिंदू हैं. वे अन्य चीजों से भी हो सकते हैं, लेकिन अन्य सभी पहचानें हिंदू लोकाचार की स्वीकृति के कारण संभव हो गई हैं. हिंदुत्व सदियों पुरानी संस्कृति का नाम है, जिसके लिए सभी विविध धाराएं अपनी उत्पत्ति का श्रेय देती हैं.

भागवत ने कहा, विभिन्न शाखाएं उत्पन्न हो सकती हैं और एक-दूसरे के विरोध में लग सकती हैं, लेकिन वे सभी एक ही स्रोत से अपनी शुरुआत का पता लगाती हैं.सत्तर वर्षीय आरएसएस प्रमुख ने कहा कि खुद को दूसरों में देखने, महिलाओं को मां के रूप में देखने और वासना की वस्तुओं के रूप में नहीं देखने और दूसरों के धन का लालच नहीं करने जैसे मूल्य हिंदू लोकाचार को परिभाषित करते हैं. हालांकि, भागवत जिसे हिंदू लोकाचार बता रहे हैं, दरअसल यह सभी मजहब का मूलमंत्र है.

भागवत ने कहा,“हिंदुत्व एक बाध्यकारी शक्ति है. जो अपने को हिन्दू मानते हैं वे सब हिन्दू हैं. ऐसे ही वे लोग भी हैं जिनके पूर्वज हिंदू थे.आरएसएस का मिशन देश के खोए हुए गौरव को पुनः प्राप्त करना है, जो प्राचीन काल में विश्वगुरु (विश्व शिक्षक) था.इतने महान राष्ट्र के निर्माण के लिए एक अनुकूल सामाजिक वातावरण की आवश्यकता है, जिसे संघ बनाना चाहता है. हमारे स्वयंसेवक शाखाओं में सिर्फ एक घंटा बिताते हैं. दिन के बचे हुए 23 घंटे सरकारी सहायता के बिना निस्वार्थ समाज सेवा प्रदान करने में व्यतीत होते हैं.

भागवत ने कहा कि जब भी कोई प्राकृतिक या अन्य आपदा आती है तो स्वयंसेवक सक्रिय दिखाई देते हैं. हमें बदले में कुछ नहीं चाहिए. यहां तक ​​कि प्रशंसा भी नहीं.उन्होंने कहा कि आरएसएस इसलिए अस्तित्व में आया क्योंकि बड़े पैमाने पर समाज अपनी जिम्मेदारियों के प्रति पर्याप्त रूप से सचेत नहीं था.यदि सभी लोग निःस्वार्थ सेवा करें तो लोगों को हमारा बैज लगाने की कोई आवश्यकता नहीं होगी. प्रत्येक नागरिक को अपने आप में एक स्वयंसेवक माना जाएगा.

हालांकि शाद यह बातें कहते हुए भागवत भूल गए कि अपने देश में जब कोरोना चरम पर था तो मुस्लिम संगठनों ने मानव सेवा की मिसाल कायमकर उन तमाम संगटों को नीचे कर दिया था जिनपर सर्वाधिक मानव सेवा करने का टैग लगा हुआ है. यहां तक कि बंद मस्जिदें भी मरीजों के लिए खोल दी गई थीं और दवाई, भोजन, इलाज सब मुफ्त इंतजाम कराया गया था. इसके बाद से समाज की धारणा बदली है कि मुसलमान आपदाओं में सहायता के मामले में अन्य धर्मावलंबियांे से पीछे रहते हैं. अलग बात है कि मुस्लिम संगठन अपने काम का प्रचार नहीं करते.