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Bihar Assembly Election 2020 राहुल-तेजस्वी की जोड़ी मोदी-नीतिश पर भारी

मलिक असगर हाशमी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी-नीतिश कुमार एवं राहुल गांधी-तेजस्वी यादव की जनसभाएं संकेत देने लगी हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव का उंट किस करवट बैठने वाला है. एनडीए व यूपीए के मुद्दे किस हद तक मतदाताओं पर असरदार साबित हो रहे हैं ? प्रचार मंे भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का सेना, कश्मीर, पुलवामा, गलवान घाटी पर जोर है. हालांकि इन मुददों से बिहार की जनता का सीधा सरोकार नहीं. वे चाहते हैं, चुनाव में सूबे की बदहाली, उद्योग, रोज़गार, नौकरी, तरक्की, बाढ़ से छुटकारा पर गंभीर चर्चा हो.

प्रदेश के मुस्लिम मतदाता उम्मीद करते हैं कि नीतिश ने तीन तलाक, अनुच्छेद 370, सीएए जैसे कानून पर बीजेपी (BJP) का साथ क्यों दिया ? अपनी राय रखें. उर्दू भाषा को क्यों हटाई गई, बताया जाए.  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) भी खालिस बिहार के मसले पर राय रखें. सूबे की बदहाली दूर करने को लेकर उनके पास क्या प्लान, बताएं. मगर मोदी की जन सभाओं में इसपर ज्यादा कुछ नहीं होता. सिवाए आरोप-प्रत्यारोप के. बिहार को विशेष प्रदेश का दर्जा देने में उनके सामने क्या कठिनाई आ रही ? नहीं बताते. उनके भाषणों में पंद्रह वर्ष पुराने लालू शासन की बदहाली, कथित गुंडा राज और कांग्रेस की नाकाम नीतियाँ होती हैं. वे शायद भूल गए कि केंद्र व बिहार में उनके गठबंधन की सरकार है. बिहार की जनता को वे जवाबदेह हंै. पीछे क्या हुआ , यह बताने से कहीं ज्यादा जरूरी है, भविष्य मंे क्या होने वाला है. बिहार की बदहाली के लिए कहीं न कहीं मोदी-नीतिश भी जिम्मेदार हंै. कायदे से उन्हें मतदाता के समक्ष अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए. कहीं चूक हुई है तो स्वीकारना श्रेयस्कर होगा. मगर एनडीए ऐसा नहीं कर रहा. जदयू (JDU) एवं भाजपा के घोषणा पत्र में सिर्फ सपने हैं. मोदी की जन सभाओं में भी सपने ही बंटते हैं. बिहार वासियों को चने के झाड़ पर चढ़ाने के लिए वे न जाने कौन-कौन से अलंकारों से नवाजते हैं. बिहार की जनता भोली नहीं. सूबे की तकरीबन चालीस प्रतिशत आबादी युवाओं की है. उन्हें रोज़गार, नौकरी, पढ़ाई जैसी सहुलियतें चाहिए. इस बार के चुनाव में इन मुद्दों की गूंज है.

भविष्य की योजना पर चर्चा नहीं

मोदी-नीतिश युवाओं की भावनाओं को नहीं समझ पा रहे. आने वाले समय में बिहार आत्मनिर्भर कैसे बनेगा ? इसको लेकर उनके पास क्या मास्टर प्लान है ? नहीं बताते. मोदी की जन सभाओं में केंद्र की योजनाओं का जिक्र होता है. इसमें बिहार के लिए खास क्या है ? स्पष्ट नहीं करते. जन सभाओं में संबंधित आंकड़े भी नहीं देते. मोदी की सभाओं में सूबे के नव निर्मित पुलों का जिक्र होता है. इनमें से कई इस बरसात में बह गए. ऐसी उपलब्धियाँ विपक्ष के लिए हथियार बन रही हैं. नीतिश कुमार के पंद्रह वर्षों के शासनकाल में ऐसा कुछ खास नहीं हुआ, जिसे याद रखा जाए. उनकी बड़ी उपलब्धि है कुछ हजार लोगों को टीचर की नौकरी, सड़कों, बिजली की स्थिति में सुधार एवं शराब बंदी. एनडीए गठबंधन ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की पुरानी मांग को लेकर कुछ नहीं किया. बिहार को मुसीबतों से उबारने के वास्ते स्पेशल पैकेज चाहिए. मोदी इस विषय पर कुछ नहीं कहते. जन सभाओं में चालाकी से नीतिश कुमार की नाकामियों से पिंड छुड़ाने की कोशिश करते हैं. कहते हैं, उनके छह वर्षों के प्रधानमंत्रित्वकाल में नीतिश के साथ काम करने का उन्हें केवल तीन-चार वर्ष  मौका मिला. 18 महीने वे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) में रहे. बाकी समय सरकार बचाने मंे बिताया. प्रधानमंत्री का रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को लेकर भी चुनाव में ढुलमुल रवैया देखने को मिल रहा. इससे मततदा कंफ्यूज है.

तेजस्वी की परिपक्व सियासत

इससे इतर लालू यादव (lalu Yadav) की गैरहाजरी में उनके बेटे तेजस्वी यादव की जन सभाओं में खांटी बिहार के मुद्दे उछाले जा रहे हैं. सत्ता में आने पर दस लाख लोगों को नौकरी देने का वादा किया है. सारे अनियमित सरकारी कर्मचारियों को नियमित करने, उद्योग धंधे लगाने, कृषि सुधार, अगड़ी-पिछड़ी जातियांे, दलितों, आदि वासियों एवं अल्पसंख्यकों को साथ लेकर चलने, उन्हें बराबरी का हक देने की घोषणाएँ की जा रही है. लालू के शासन पर यादव-मुस्लिम समीकरण को बढ़ावा देने का आरोप था. वह अभी चारा घोटाला में रांची जेल मंे सजा काट रहे हैं. जन सभाओं में तेजस्वी अपने पिता के कार्यकाल का जिक्र नहीं करते. यहां तक कि पार्टी के पोस्टर से लालू यादव की तस्वीर भी हटा दी गई है. तेजस्वी सियासी तौर परिपक्व हो गए हैं. कहते हैं,‘नए बिहार के लिए युवा नेतृत्व चाहिए. चाचा थक गए हैं.’ नीतिश को चाचा कहते हैं.

अपने बुने जाल में भाजपा-जदयू

तेजस्वी की जन सभाओं में मोदी से अधिक भीड़ उमड़ती है. विरोधियों को जवाब देने में वह देरी नहीं करते. उनका सोशल मीडिया ग्रुप स्ट्रांग है. भाजपा-जदयू गठबंधन ने जब तेजस्वी के दस लाख लोगों को नौकरी देने के वादे पर सवाल उठाए. पूछा कि इसके लिए पैसे कहां से आएँगे. उनका जवाब था, ‘बिहार का बजट दो लाख 13 हजार करोड़ रूपये का है. नीतिश जी बजट का मात्र 60 प्रतिशत खर्च कर पाते हैं. बाकी बचे पैसे से वे बिहार के युवाओं को नौकरी देंगे.’ राजद के नौकरी देने वाली घोषणा में बीजेपी बुरी तरह उलझ गई है. उसने राजद का दबाव कम करने को अपने घोषणा पत्र में 19 लाख लोगों को नौकरी देने का वादा किया. इसपर तेजस्वी पूछ रहे, अब ये पैसा कहां से आएंगे ? यानी उनका दस लाख नौकरी देने का वादा झूठा नहीं है. बिहार के लोगों को कोरोना वैक्सीन मुफ्त देने की घोषणा एवं लाॅक डाउन में प्रवासी मज़दूरों से समुचित व्यवहार नहीं करना भी एनडीए को भारी पड़ रहा है.

इन मामलों में दोनों पार्टियों का रवैया गैरवाजिब रहा है. यह आरोप राहुल गांधी अपनी जन सभाओं में लगाते हैं. बार-बार याद दिलाते हैं कि कैसे दूसरे प्रदेशों से बिहार के मज़दूरों को सैंकड़ों, हजारों किलोमीटर पैदल चलकर आना पड़ा. नीतिश सरकार ने उनकी कोई मदद नहीं की. नीतिश उन दिनों अपने आवास से  बाहर नहीं निकले. राहुल जन सभाओं में मोदी को कमजोर प्रधानमंत्री साबित करते हैं. कहते हैं, ‘चीन पंद्रह सौ किलोमीटर भारत के अंदर घुस आया. मोदी उन्हें नहीं निकाल पा रहे.’ मोदी के गलवान घाटी में चीनी सेना से झड़प और पुलवामा में आतंकी हमले मंे भारतीय सैनिकों के शहीद होने और उनमें बिहार के जवानों के होने के बारे में याद दिलाने पर राहुल सवाल उठाते हैं-प्रधानमंत्री यह बताएं कि भारत भूमि से चीनी सेना कब हटेगी ? राहुल नोट बंदी, कृषि कानून, किसानों की कर्जमाफी का भी मुद्दा उठा रहे हैं. गर्ज यह कि चुनावी नतीजे चाहे जो हों, पर प्रचार में तेजस्वी-राहुल की जोड़ी मोदी‘-नीतिश पर भारी पड़ रही है.

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संपादक

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