Politics

Bihar Election 2020 एक मौत और सारे समीकरण बदले

लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान के आकस्मिक निधन से बिहार चुनाव का समीकरण गड़बड़ाता दिख रहा है। ऐसे मंे अब यह कहना मुश्किल है कि सूबे में अगली सरकार किस पार्टी या गठबंधन की आने वाली है।

 लोजपा के अलग चुनाव लड़ने के ऐलान पर एक तरह से मान लिया गया था कि अगली सरकार बीजेपी की बनेगी। लोजपा इसके किसी नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। सत्ता की चाबी लोजपा के नव नियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के पास होगी। उनके एनडीए से अलग चुनाव लड़ने से जदयू को सर्वाधिक नुक्सान होने वाला है।
 चिराग ने जदयू के मुकाबले अपने प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया है। पिछले चुनाव में जदयू 71 सीटें लेकर दूसरे नंबर पर रहा था। नीतिश कुमार मुख्यमंत्री बने थे। पिछला चुनाव जदयू ने राष्ट्रीय जनता दल एवं कांग्रेस के साथ लड़ा था। वाम दल अलग मोर्चा बनाकर
मैदान में उतरे थे। तब लोजपा, रालोसपा व बीजेपी साथ थे। बाद में जदयू एनडीए में आ गया। अब रालोजपा, ओवैसी की आईएमआईएम के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हम राजद का साथ छोड़ कर जदयू-भाजपा के पाले में है। सीटों के बँटवारे पर विवाद होने पर वीआईपी पार्टी ने भी राजद-कांग्रेस गठबंधन छोड़ दिया। अब वह भाजपा संग है, जबकि इस बार तीनों वाम दल राजद-कांग्रेस गठबंधन में हैं।

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार फैजान अहमद  muslimnow  से बातचीत में कहते हैं,‘‘ चुनाव की घोषणा से पहले तमाम उठा-पटक के बाद भी भाजपा के सत्ता तक पहुंचने की तस्वीर बन रही थी।’’पिछले दो-तीन चुनावों से राजनीतिक दल 14 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को अहमियत नहीं दे रहे। इस बार भी कांग्रेस एवं राजद जैसी सेक्यूलर पार्टियों ने मुसलमानों को नाम मात्र की उम्मीदवारी दी है। किसी जमाने में यादव-मुस्लिम गठजोड़ का बिहार में सिक्का चलता था। इस समीकरण के कारण राजद प्रमुख लालू यादव एवं उनकी धर्म पत्नी राबड़ी देवी लंबे समय तक  मुख्यमंत्री रहे। कभी रामविलास पासवान एवं नीतिश कुमार लालू प्रसाद के साथ थे। बाद में अलग-अलग पार्टी बनाकर पिछड़ों-अगड़ों का  समीकरण बना लिया। इसके बाद से बिहार में नई तरह की राजनीति शुरू हो गई है, जिसका सर्वाधिक लाभ जदयू-भाजपा वाले उठा रहे हैं। नए जातीय ध्रवीकरण से दलित, पिछड़े एवं अति पिछड़े भी कई-कई खेमांें में बंट गए हैं। माई समीकरण सें पिछड़ी जातियों का एक बड़ा तबका राजद से छिटक गया। नतीजतन,राजद को पिछले विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक 80 सीटें मिलने के बावजूद राजनीति में कुछ खास नहीं कर पा रही। जदयू के दोबारा भाजपा से हाथ मिलाने से राजद और इसके गठबंधन की स्थिति ज्यादा खराब हुई है। कई अच्छे नेता पार्टी छोड़ गए। तेजस्वी
ने भी ऐसे-ऐसे सलाहकार बना लिए हैं, जिनका राजनीति में कोई वजूद नहीं। इस वजह से पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-राजद गठबंधन को बिहार से एक भी सीट नहीं मिली। गठबंधन का एक धड़ा तेजस्वी को अहमियत नहीं देता। मीडिया रिपोर्ट कहती है कि कुश्वाहा,तेजस्वी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने को तैयार नहीं थे, इस लिए गठबंधन से अलग हो गए। राजद के वरिष्ठतम नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी जीवन के अंतिम दौर में पार्टी को अलविदा कह दिया था। कई विधायक भी राजद से जा चुके हैं। रघुवंश बाबू के पुत्र भी राजद से जदयू में चले गए। वह कहते हैं, राजद समाजवाद के रास्ते से भटक गया है।
   भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता मसूद मंजर तमाम विपरीत परिस्थियों केे बावजूद मानने को तैयार नहीं कि जदयू-भाजपा समीकरण दोबारा सत्ता में आएगी। उनका दावा है, ‘‘ बिहार में किसी गठबंधन को बहुमत नहीं मिलने वाली। ’’ इसके लिए तर्क भी देते हैं।
मसूद मंजर के मुताबिक, नीतिश कुमार के मौजूदा कार्यकाल से बिहार के लोग संतुष्ट नहीं। कई बड़े घोटाले हुए। एक सेक्स रैकेट में इनकी एक मंत्री का नाम आ चुका है। पिछले कार्यकाल की तुलना में नीतिश के मौजूदा कार्यकाल ने रोजी-रोज़गार के मामले में युवाओं को निराश किया है। कोरोना संक्रमण के दौरान जदयू सरकार रवैया भी गैरजिम्मेदाराना था। कोटा से बच्चों को लाने में आना-कानी कर सरकार ने अपनी ही फ़ज़ीहत करा ली। लाॅकडाउन में सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर बिहार पहुंचे प्रवासी मज़दूरों को भी नीतिश कुमार सरकार ने राहत एवं रोज़गार से मायूस किया। उनका यह संतोष जदयू-भाजपा पर भारी पड़ेगा।
 इस बीच लोजपा के नए प्रमुख चिराग पासवान ने गठबंधन से अधिक सीट नहीं मिलने के विरोध में उन तमाम सीटों से अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया, जहां से जदयू प्रत्याशी खड़े किए जाएंगे। इससे जदयू को भारी नुक्सान पहुंचने का खतरा है। चिराग ने यह कहकर भी नीतिश कुमार की धड़क बढ़ा दी कि वह हर कीमत पर बिहार में अगली सरकार भारतीय जनता पार्टी की देखना चाहेंगे। कयास है कि जदयू को नुक्सान पहुंुचाकर इसकी भरपाई लोजपा करेगी। चुनाव में बीजेपी को अधिक सीटें आने पर जदयू एवं लोजपा के समर्थन से बिहार में सरकार बनेगी। ऐसे में चिराग को उप-मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल सकती है।
अब ऐसा होता नहीं दिख रहा। चिराग पासवान की बिहार मंे कोई सियासी हैसियत नहीं। वह अपना लोकसभा चुनाव भी हारते-हारते बचे थे। रामविलास पासवान की सूबे की
सियासत पर मजबूत पकड़ थी, जिसका लाभ चिराग  बिहार चुनाव में उठाने की चुगत में थे। रामविलास पासवान के नहीं रहने से उनकी रणनीति को धक्का पहुंचा है। अनुमान है कि पहली बार रामविलास पासवान की गैर मौजूदगी में चुनाव में उतरने वाली लोजपा पहले की तुलना में शायद ही बेहतर प्रदर्शन कर पाए। मसूद मंजर कहते हैं-‘कोरोना के कारण इस बार खुले मैदान में जनसभाएं नहीं होंगी। नरेंद्र मोदी जैसे कद्दावर नेताओं को वर्चुअल रैली करनी होगी। बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में इस तरह की रैलियांे को जनता अहमियत नहीं देती। मसूद मंजर की मानें तो तीन तलाक , सीएए, कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने एवं राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करने के बावजूद बेरोज़गारी-बेकारी, आर्थिक दिवालियापन, बढ़ते निजीकरण, कृषि कानून को लेकर लोग केंद्र से नाराज़ हैं। ऐसे में जदयू-भाजपा गठबंधन को जनता सिरे चाढाएगी, संदेह है।

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संपादक