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बिल्किस बानो मामलाः केंद्र, गुजरात 11 दोषियों को छूट देने पर सुप्रीम कोर्ट के साथ दस्तावेज साझा करने को सहमत

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

बिलकिस बानो मामले में केंद्र और गुजरात सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि वे शीर्ष अदालत के पहले के आदेश की समीक्षा नहीं करेंगे, जिसमें उन्हें 11 दोषियों की सजा को कम करने के लिए मूल रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया गया है.

राज्य और केंद्र सरकारों ने शीर्ष अदालत को यह भी बताया कि वे सजा में छूट पर दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा नहीं करेंगे. बावजूद इसके शीर्ष अदालत के अवलोकन के लिए दस्तावेजों को साझा करने पर सहमत हुए. जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने उन दोषियों से भी दो सप्ताह के भीतर अपना हलफनामा दायर करने के लिए कहा है, जिन्होंने दलीलों पर अपना जवाब दाखिल नहीं किया है.

दोषियों की ओर से पेश कई वकीलों ने बानो की याचिका पर नोटिस तामील नहीं किए जाने पर आपत्ति जताई और समय मांगा. न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा, यह स्पष्ट है, बल्कि स्पष्ट से अधिक है, कि आप सभी नहीं चाहते कि इस पीठ द्वारा सुनवाई की जाए.बिलकिस बानो और अन्य ने 2002 के दंगों के दौरान सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था.

शीर्ष अदालत ने अब मामले को 9 मई को निर्देश के लिए पोस्ट किया है. कहा है कि मामले को जुलाई में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा.पिछली सुनवाई के दौरान, केंद्र और राज्य सरकारों ने दोषियों को छूट देने से संबंधित फाइलों पर विशेषाधिकार का दावा किया. कहा कि वे 27 मार्च के उस आदेश की समीक्षा की मांग कर सकते हैं, जिसमें छूट की मूल फाइलें मांगी गई थीं.

दोषियों की प्रति-परिपक्व रिहाई के खिलाफ याचिका दायर करने के अलावा, बानो ने अपने पहले के आदेश की समीक्षा के लिए एक याचिका भी दायर की थी, जिसमें उसने गुजरात सरकार से दोषियों में से एक की छूट के लिए याचिका पर विचार करने के लिए कहा था. मगर समीक्षा याचिका खारिज कर दी गई.

कुछ जनहित याचिकाएं दायर कर 11 दोषियों को दी गई छूट को रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई. ये याचिकाएं नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन ने दायर की हैं, जिसकी महासचिव एनी राजा, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की सदस्य सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लाल, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा और टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा हैं.

गुजरात सरकार ने अपने हलफनामे में दोषियों को दी गई छूट का बचाव करते हुए कहा कि उन्होंने जेल में 14 साल की सजा पूरी कर ली है और उनका व्यवहार अच्छा पाया गया.राज्य सरकार ने कहा कि उसने 1992 की नीति के अनुसार, सभी 11 दोषियों के मामलों पर विचार किया और 10 अगस्त, 2022 को छूट दी गई. केंद्र सरकार ने भी दोषियों की रिहाई को मंजूरी दे दी.

ध्यान रहे कि आजादी का अमृत महोत्सव के जश्न के हिस्से के रूप में कैदियों को छूट देने के सर्कुलर के तहत छूट नहीं दी गई.हलफनामे में कहा गयौ, राज्य सरकार ने सभी राय पर विचार किया और 11 कैदियों को रिहा करने का फैसला किया क्योंकि उन्होंने जेलों में 14 साल से अधिक की उम्र पूरी कर ली है और उनका व्यवहार अच्छा पाया गया है.

सरकार ने उन याचिकाकर्ताओं के लोकस स्टैंड पर भी सवाल उठाया, जिन्होंने फैसले को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि वे इस मामले में बाहरी हैं।दलीलों में कहा गया है कि उन्होंने गुजरात सरकार के सक्षम प्राधिकारी के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसके माध्यम से गुजरात में किए गए जघन्य अपराधों के आरोपी 11 लोगों को 15 अगस्त, 2022 को रिहा करने की छूट दी गई थी