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अदालतों की नहीं सुनती बीजेपी की प्रदेश सरकारें, ‘योगी के बुलडोजर मॉडल’ पर अन्य सूबों में अमल, एमपी में भी ‘बुलडोजर राज’ का वादा

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली

अदालतांे के बीजेपी की प्रदेश सरकारों के ‘बुलडोजर माॅडल’ पर बारबार उंगली उठाने के बावजूद इसपर रोक नहीं लग पा रहा है. हद यह है कि मध्य प्रदेश की बेजपी सरकार भी अब आगामी विधानसभा चुनाव जीतने पर इस माॅडल को अपनाने का वादा कर रही है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बुलडोजर मॉडल अब भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए रोल मॉडल बनता जा रहा है. योगी के बुलडोजर की चर्चा अब सिर्फ उत्तर प्रदेश तक ही सीमित नहीं, बल्कि भाजपा के सबसे लोकप्रिय स्टार प्रचारकों में से एक योगी आदित्यनाथ की डिमांड अब देश के हर राज्य से आने लगी है. जहां भी चुनाव होते हैं वहां के भाजपा उम्मीदवार अपने-अपने इलाकों में योगी आदित्यनाथ की रैली करवाने की मांग करते हैं.

ऐसे में योगी आदित्यनाथ जहां जहां भी जाते हैं बुलडोजर की पहचान और बुलडोजर बाबा का नाम उनके साथ जाता है.योगी के विरोधी बुलडोजर जस्टिस को कानून का उल्लंघन बताते हुए उनकी सरकार की आलोचना करते हैं लेकिन योगी स्वयं बुलडोजर को विकास और शांति का प्रतीक बताते हुए यह कह चुके हैं कि चूंकि इसका उपयोग कानून को लागू करने के लिए होता है इसलिए यह विकास और शांति का प्रतीक है.

विरोधी दलों की आलोचना को पूरी तरह से खारिज करते हुए योगी आदित्यनाथ यह भी दावा करते हैं कि उत्तर प्रदेश में जो भी कदम उठाए गए हैं वो कानून के दायरे में रहकर उठाए गए हैं. इसको लेकर नोटिस दिए गए और फिर उनको समय भी दिया गया. समय देने के बाद भी अगर व्यक्ति ने अपने स्तर पर कुछ नहीं किया होगा तभी एजेंसियो ने उसको तोड़ने के साथ ही उसे तोड़ने में जो खर्चा आया होगा उसकी भी वसूली उनसे की होगी.

दरअसल, राष्ट्रवाद और सुरक्षा भाजपा की छवि का अभिन्न हिस्सा और पहचान है. इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर यह देखा गया है कि केंद्र की मोदी सरकार आतंकवाद, संगठित अपराध और पाकिस्तान के मोर्चे पर हमेशा हर हमले का मुंहतोड़ जवाब देती है तो वहीं भाजपा की राज्य सरकारें कानून व्यवस्था के मसले के नाम पर कानूनी कार्रवाई कर राजनीतिक संदेश देने का प्रयास करती रहती है.

उत्तर प्रदेश के बाद योगी का यह बुलडोजर मॉडल मध्य प्रदेश, हरियाणा, असम और यहां तक कि गुजरात होते हुए अन्य भाजपा शासित राज्यों में भी पहुंच गया. यहां तक कि आम आदमी पार्टी शासित दिल्ली में भी पिछले नगर निगम ने जिसमें भाजपा का बहुमत था, बुलडोजर का उपयोग किया.

दरअसल, बुलडोजर को भाजपा ने न्याय और मजबूत कानून व्यवस्था का प्रतीक बना दिया है.भाजपा के हर मुख्यमंत्री को यह लगने लगा है कि बुलडोजर का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल उनकी छवि को मजबूत बना कर चुनावों में फायदा दे सकता है, इसलिए भाजपा को बुलडोजर से कोई परहेज नहीं ह. आने वाले दिनों में न केवल इसका उपयोग बढ़ने वाला ह, उत्तर प्रदेश की तरह अन्य राज्यों में भी यह चुनावी अभियान, चुनावी नारे और चुनावी कंपैन सॉन्ग का महत्वपूर्ण हिस्सा बनने जा रहा है.

हाईकोर्ट की सख्ती के बावजूद, हेमंता सरकार ने बुलडोजर को असम में कार्रवाई का हिस्सा बना दिया

असम पहले घरों पर बुलडोजर, बड़े पैमाने पर बेदखली और बहुमंजिला इमारतों को घंटों के भीतर धराशायी होते देखने का आदी नहीं था. मगर पिछले दो वर्षों से, हिमंत बिस्वा सरमा के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के तुरंत बाद परिदृश्य नाटकीय रूप से बदल गया है.

असम में बुलडोजर चलाना आजकल आम बात हो गई है. बेदखली की खबरों ने मीडिया में नियमित रूप से जगह बना ली है.हालांकि बुलडोजर-ट्रेंड को लेकर पहले ही काफी विवाद छिड़ चुका है, लेकिन हाई कोर्ट के इन कदमों की बेहद आलोचना के बाद भी राज्य सरकार हार मानने के मूड में नहीं है.

सरमा ने कई बार दोहराया है कि उनकी मशीनरी तब तक नहीं रुकेगी जब तक कि हर कब्जे वाले क्षेत्र को अवैध अतिक्रमण से मुक्त नहीं कर दिया जाता.भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा और बांग्लादेश स्थित आतंकी संगठन अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (।ठज्) के साथ कथित संबंधों को लेकर निचले असम में जिला अधिकारियों द्वारा बुलडोजर की मदद से कई निजी मदरसों को ध्वस्त कर दिया गया.

बदरुद्दीन अजमल, लोकसभा सांसद और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के नेता मदरसों के खिलाफ विध्वंस अभियान पर कहते हैं “मदरसे सार्वजनिक संपत्ति हैं जिसपर बिना किसी कानूनी नोटिस के बुलडोजर नहीं चलाया जा सकता. यहां तक ​​कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने भी बुलडोजर का इस्तेमाल बंद कर दिया है.”

अधिकारियों ने कहा कि मदरसों को तोड़ना पड़ा क्योंकि उनका निर्माण राज्य में भवन निर्माण के नियमों का उल्लंघन कर किया गया था.सितंबर, 2021 में, धौलपुर क्षेत्र में एक बेदखली अभियान के दौरान डारंग जिले के पुलिस अधिकारियों और सिपाझार राजस्व मंडल के गोरुखुटी के स्थानीय लोगों के बीच हिंसक झड़प हुई, जिसके परिणामस्वरूप पुलिस फायरिंग हुई.

इस घटना में कम से कम दो प्रदर्शनकारी मारे गए और बारह अन्य घायल हो गए.असम के नागांव जिले के अधिकारियों ने पिछले साल मई में बटाद्रवा पुलिस स्टेशन में आग लगाने के आरोप में कई परिवारों के घरों को नष्ट कर दिया था.पुलिस और प्रशासन ने यह कदम तब उठाया जब एक स्थानीय मछली विक्रेता की हिरासत में मौत के कथित मामले के जवाब में भीड़ ने जिले के बटाद्रवा पुलिस स्टेशन के एक हिस्से में आग लगा दी थी.

बाद में, गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने बटाद्रवा पुलिस थाना आगजनी मामले में अभियुक्तों के घरों पर बुलडोजर के इस्तेमाल से जुड़े मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए असम सरकार को फटकार लगाई थी.कोर्ट ने राज्य सरकार से बुलडोजर के इस्तेमाल के कानूनी आधार पर सवाल किया था.

अदालत ने तब सरकार के वकील से कहा, आप (राज्य सरकार) हमें कोई आपराधिक कानून दिखाएं, जिसके तहत पुलिस किसी अपराध की जांच करते समय किसी व्यक्ति को बिना किसी आदेश के बुलडोजर से उखाड़ सकती है.बेंच के दो जजों ने यह भी कहा, अगर इस तरह की कार्रवाई की अनुमति दी जाती है तो देश में कोई भी सुरक्षित नहीं.

सरकार को कोर्ट को भरोसा दिलाना है कि आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलाने वाले अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी.हालांकि, अभी तक अदालत असम सरकार की मशीनरी को बुलडोजर चलाने से नहीं रोक पाई है.

पिछले हफ्ते भी, कछार जिले में, प्रशासन द्वारा अच्छी संख्या में घरों को तोड़ दिया गया. प्रभावितों का दावा है कि उनके पास भवनों के उचित दस्तावेज हैं. कागजात को सत्यापित किए बिना घरों को तोड़ दिया गया.