सी-वोटर सर्वे : देश की जनता को मोदी शासन से जीवन की गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद नहीं
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली
2025 के केंद्रीय बजट की घोषणा से पहले, एक हालिया सर्वेक्षण में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जीवन की गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद रखने वाले भारतीयों की संख्या में भारी गिरावट आई है.
सी-वोटर पोलिंग एजेंसी द्वारा किए गए प्री-बजट सर्वेक्षण के हवाले से सियासत डाॅट काॅम की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 5,269 लोगों से राय ली गई. इस सर्वेक्षण के नतीजों से पता चला कि 37% से अधिक उत्तरदाताओं को अपने जीवन की गुणवत्ता में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है, बल्कि वे मानते हैं कि आने वाले समय में हालात और बिगड़ सकते हैं.
2013 से अब तक का सबसे अधिक असंतोष
यह सर्वेक्षण 2013 में किए गए एक अन्य सर्वेक्षण से भी तुलना करता है, जब भारत में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार सत्ता में थी. उस समय भी जीवन की गुणवत्ता को लेकर असंतोष था, लेकिन 2025 में यह असंतोष अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका है.
मुद्रास्फीति और बेरोजगारी बनी प्रमुख चिंता
सर्वेक्षण में दो-तिहाई से अधिक उत्तरदाताओं ने कहा कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से बढ़ती महंगाई (मुद्रास्फीति) ने उनके जीवन की गुणवत्ता को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है.
- 50% उत्तरदाताओं ने स्थिर वेतन को एक प्रमुख समस्या बताया.
- 66% से अधिक लोगों ने कहा कि बढ़ती लागतों ने उनके रोजमर्रा के जीवन को कठिन बना दिया है.
भारत में रोजगार के अवसर कम होने से युवा वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुआ है. भले ही भारत एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश है, लेकिन 2014 के बाद से नौकरी के बाजार में भारी गिरावट दर्ज की गई है.
भारत वैश्विक खुशी सूचकांक में 126वें स्थान पर
2024 में प्रकाशित ग्लोबल हैप्पीनेस इंडेक्स में भारत को 143 देशों में से 126वां स्थान प्राप्त हुआ. रिपोर्ट के अनुसार,भारत पाकिस्तान, अफगानिस्तान, लीबिया, इराक, फिलिस्तीन और नाइजर जैसे देशों से भी पीछे है.
भारत में वृद्धावस्था के लोगों को जीवन की उच्च संतुष्टि का अनुभव होता है, लेकिन निम्न मध्यम वर्ग और युवाओं में असंतोष तेजी से बढ़ रहा है.
युवाओं में बढ़ता असंतोष
रिपोर्ट के अनुसार, भारत में युवा वर्ग सबसे ज्यादा नाखुश है.
- मुद्रास्फीति और बेरोजगारी से युवा सबसे अधिक प्रभावित हैं.
- महंगाई के कारण मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए जीवन यापन कठिन होता जा रहा है.
- बजट से लोगों की उम्मीदें बढ़ रही हैं, लेकिन आर्थिक नीतियों को लेकर संदेह भी गहराता जा रहा है.
भारत में निम्न-मध्यम वर्ग सबसे अधिक असंतुष्ट
- सर्वेक्षण में यह भी सामने आया कि भारत में निम्न-मध्यम वर्ग के लोग सबसे कम खुश हैं.
- बढ़ती खाद्य कीमतें, स्वास्थ्य खर्च, और शिक्षा लागत ने इस वर्ग पर अधिक दबाव डाला है.
- रोजगार के अवसर कम होने के कारण युवा वर्ग अधिक प्रभावित हुआ है.
- शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में असंतोष की दर लगभग समान है, जिससे पता चलता है कि यह समस्या समग्र रूप से पूरे देश में व्याप्त है.
क्या 2025 का बजट कोई राहत लाएगा?
सर्वेक्षण में शामिल लोगों का मानना है कि 2025 का केंद्रीय बजट जीवन की गुणवत्ता में कुछ सुधार ला सकता है, लेकिन वे सरकार की नीतियों को लेकर संदेहपूर्ण हैं.
भविष्य की संभावनाएँ और सरकार के लिए चुनौतियाँ
रोजगार सृजन:
युवाओं के लिए नई नौकरियों के अवसर पैदा करना सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है.
मुद्रास्फीति पर नियंत्रण:
खाद्य पदार्थों, पेट्रोल और अन्य आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करना आवश्यक है.
मध्यम वर्ग को राहत:
कर में कटौती और सामाजिक कल्याण योजनाओं को और प्रभावी बनाना होगा।
आर्थिक असमानता को कम करना:
गरीब और अमीर के बीच की खाई को पाटने के लिए समावेशी विकास नीतियाँ लागू करनी होंगी.
सी-वोटर सर्वेक्षण के निष्कर्ष बताते हैं कि मोदी शासन के दौरान अधिक भारतीयों ने अपने जीवन में सुधार की उम्मीद खो दी है. बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और स्थिर वेतन ने लोगों के लिए जीवन को और कठिन बना दिया है.
भारत का वैश्विक खुशी सूचकांक में 126वां स्थान यह दर्शाता है कि लोग सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से संतोषजनक स्थिति में नहीं हैं.
अब देखना यह होगा कि 2025 का बजट इन समस्याओं को हल करने के लिए क्या समाधान पेश करता है और क्या सरकार जनता की उम्मीदों पर खरी उतर पाएगी या नहीं.