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CAA+NPR+NRC विरोधियों से जेल में अमानवीय व्यवहार, डॉक्टर कफील ने संयुक्त राष्ट्र से और गुलफिशा ने जज से शिकायत की

डॉक्टर कफील को मथुरा जेल में कई दिनों तक भूखे-प्यासे रखने का आरोप। गुलफिशा बोलीं-उन्हें जेल में आतंकवादी कहा जाता है

देश के विभिन्न जेलों में बंद संशोधित नागरिकता कानून (CAA) का विरोध करने वालों से अमानवीय बर्ताव किया जाता है। दो मामलों में यह लगभग साबित हो गया है। हाल में जेल से छूटे डॉक्टर कफील खान ने सीएए विरोधी आंदोलन में गिरफ्तार लोगों के साथ जेल में बदसुलूकी की शिकायत संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों से की है। यही नहीं,  सीएए प्रदर्शन में भाग लेने वाले कम से कम 21 लोग इस समय दिल्ली दंगे के आरोप में आतंकवादी रोधी कानून का सामना कर रहे हैं।

दिल्ली दंगे की आरोपी गुलफिशा फ़ातिमा जेल में शर्मनाक एवं भावनात्मक उत्पीड़न की शिकार है। उन्होंने तिहाड़ जेल से वीडियो कॉन्फ़्रेंस के जरिए दिल्ली दंगों की सुनवाई के दौरान जेल में भावनात्मक एवं मानसिक उत्पीड़न की शिकायत कड़कड़डूमा अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत के समक्ष दर्ज कराई।

28 वर्षीय एमबीए स्नातक गुलफिशा फ़ातिमा ने जज को अपनी फरियाद सुनाते हुए कहा, सर, मुझे जेल में समस्या है। जब से मुझे यहां लाया गया, लगातार जेल कर्मचारियों के
भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। मुझे आतंकवादी कहते हैं। कहते हैं, तुम अंदर ही मरो, बाहर तुमने दंगा किया है। मानसिक व भावनात्मक उत्पीड़न के चलते अगर मैं कुछ करूँ, खुद को चोट पहुंचाऊं, तो इसके लिए जेल अधिकारी जिम्मेदार होंगे।’’

गुलफिशा की शिकायत पर न्यायाधीश ने उनके वकील महमूद प्राचा से पूछा कि क्या उनकी मुवक्किल को किसी व्यक्ति विशेष से शिकायत है ? इस पर प्रचा ने कहा कि गुलफिशा के खिलाफ दिल्ली दंगे में चार्जशीट दाखिल करने पर आवेदन देने के बावजूद उसकी हॉर्ड कॉपी उपलब्ध नहीं कराई जा रही। इस मामले में दिल्ली पुलिस ने 17 हजार से अधिक पन्नों की चार्जशीट कोर्ट में पेश की है। इसपर न्यायाधीश रावत ने आरोपियों के वकीलों को चार्जशीट की सॉफ्ट कॉपी तुरंत उपलब्ध कराने के आदेश दिए। प्रचा ने कहा कि भारतीय कानून के अनुसार, बिना देरी आरोपियों को आरोपत्र की हार्ड कॉपी उपलब्ध कराने का आदेश है।

सीएए विरोधी 21 प्रदर्शकारियों पर मुकदमा

उल्लेखनीय है, दिसंबर- जनवरी में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) एवं नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स ( NRC) के खिलाफ आंदोलन में शामिल होने वाले छात्रों एवं सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता सहित 21 लोगों को दिल्ली दंगे का आरोपी बनाया गया है। उनकी गिरफ्तारी भारत के आतंकवाद विरोधी कानून के तहत की गई है। इस मामले में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र उमर खालिद भी आरोपी बने हैं। उन्हें इसके तहत हाल में गिरफ्तार किया गया। दिल्ली पुलिस ने 15 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया है। खालिद सहित सात अन्य के खिलाफ सप्लीमेंटरी चार्जशीट दाखिल किया जाएगा। सूची में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के 24  वर्षीय छात्र आसिफ इकबाल तन्हा, जामिया के 28  वर्षीय छात्र देवांगना कलिता, जवाहरलाल नेहरू की 28 वर्षीय छात्रा सफूरा ज़रगर भी शामिल हैं। जेएनयू की 32 वर्षीय छात्रा नताशा नरवाल एवं जामिया की पीएचडी छात्रा मीरान हैदर भी आरोपी बनाई गई हैं। फरवरी में हुए दंगों में मारे गए 53 लोगों में अधिकांश मुस्लिम हैं। दिल्ली पुलिस पर जांच में निष्पक्षता नहीं रखने का आरोप है।

सरकार ने नहीं सुनी तो संयुक्त राष्ट्र से कर दी शिकायत

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के डॉक्टर कफील भी सीएए के विरोध में अलीगढ़ के एक प्रदर्शन में भाग लेने पर आतंकवादी रोधी कानून के तहत आरोपी बना गए हैं। आरोप है कि उन्होंने प्रदर्शन के दौरान भड़काउ भाषण दिया। हांलाकि हाई कोर्ट ने उनके भाषण के भड़काउ होने पर सवाल उठाए हैं। डॉक्टर कफील को हाल में इस आरोप में मथुरा जेल से जमानत मिली है। तब से वह जेल में अपने साथ अमानवीय बर्ताव के आरोप लगा रहे हैं। मथुरा जेल में यातना देने की लिखित शिकायत संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञ समूह से की गई है। 17 सितंबर को मानवाधिकार समूह को लिखे गए पत्र में 26 जून की चिट्ठी का हवाला दिया गया है, जिसमें सरकार से उन्हें जेल से रिहा करने की अपील की गई थी। कफील खान ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों के समूह को लिखे गए पत्र में बताया कि उनपर मथुरा जेल में अत्याचार किया गया। मानसिक एवं शारीरिक प्रताड़ना दी गई। कई दिनों तक भूखे-प्यासे रखा गया। उन्हें मथुरा जेल में कैदियों के भीड़-भाड़ वाले क्षेत्र में महीनों रहने को मजबूर किया गया। डॉक्टर कफील ने एक न्यूज़ एजेंसी से कहा, राजनीतिक असंतुष्टों के खिलाफ यूएपीए (UAPA)जैसे कड़े राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों के तहत मामला दर्ज करने एवं जेल में अमानवीय व्यवहार की शिकायत उनकी पत्नी शबिस्तान खान ने संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञ समूह से की है। गोरखपुर के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ खान को पहले भी गिरफ्तार किया गया था। गोरखपुर जेल में बंद रहे थे। उनके खिलाफ अगस्त 2017 में 60 से अधिक बच्चों की ऑक्सीजन की कमी से मौत का मामला कोर्ट में लंबित है।

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संपादक