क्या मुसलमानों की खुशियों से परहेज कर सकती है कोई सियासत?
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मुस्लिम नाउ विशेष
रमजान का मुबारक महीना शुरू हो चुका है। पूरे भारत में मुसलमान इस पाक महीने की शुरुआत पर खुशियां मना रहे हैं, लेकिन क्या हर कोई इस खुशी में शामिल है? कुछ राजनीतिक दलों और उनके नेताओं के लिए मुसलमानों की खुशियों में शरीक होना शायद एक कठिन फैसला है। वे मुस्लिम वोट तो चाहते हैं, लेकिन उनकी खुशियों का इजहार करने में संकोच करते हैं।
रमजान की शुरुआत के बाद से सोशल मीडिया और समाचारों में कई बड़े नेताओं और दलों की ओर से रमजान की शुभकामनाएं देखने को मिलीं, लेकिन एक खास राजनीतिक दल और उसके नेताओं ने इस पर चुप्पी साध रखी। यह वही दल है, जो चुनावी समय पर मुस्लिम मतदाताओं को रिझाने के लिए तमाम दावे करता है, लेकिन उनके त्योहारों और धार्मिक आयोजनों पर कोई उत्साह नहीं दिखाता।

मुसलमानों से वोट चाहिए, पर उनकी खुशियों से दूरी क्यों?
यह राजनीतिक दल वर्षों से मुसलमानों की भावनाओं और उनकी जरूरतों पर खामोश रहता आया है। न तो वह उनके पर्व-त्योहारों पर बधाई देता है, न उनके सामाजिक मुद्दों पर खुलकर आवाज उठाता है। लेकिन जब चुनाव नजदीक आते हैं, तो इन्हीं मतदाताओं को साधने के लिए बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं।
इस दल का रवैया दर्शाता है कि उसे डर है कि यदि वह मुसलमानों को बधाई देगा, तो उसकी कट्टर छवि पर असर पड़ेगा। साथ ही, उसका पारंपरिक वोट बैंक नाराज हो सकता है। यही कारण है कि रमजान जैसे महत्वपूर्ण पर्व पर भी इस पार्टी के नेता बधाई देने से कतराते हैं।
माह- ए- रमजान की आप सभी को तहे-दिल से मुबारकबाद।
— Chandra Shekhar Aazad (@BhimArmyChief) March 1, 2025
ये पवित्र माह आप सभी के जीवन में नई ऊर्जा और समृद्धि लेकर आये!
मुस्लिम मोर्चा और दिखावटी भाईचारा
यह दिलचस्प है कि इस पार्टी ने खुद का एक “मुस्लिम मोर्चा” भी बना रखा है। इसके अलावा, इसका एक अभिभावक संगठन भी मुसलमानों के नाम पर गतिविधियाँ चलाता है। हालांकि, इन गतिविधियों का मकसद वास्तविक भाईचारा बढ़ाना नहीं, बल्कि दिखावटी समर्थन के जरिए अपनी राजनीति को चमकाना होता है।
- मुस्लिम मोर्चा के नेता सिर्फ खास मौकों पर दिखाई देते हैं, लेकिन मुस्लिम समाज के असली मुद्दों पर उनकी आवाज कहीं सुनाई नहीं देती।
- कुछ नेता केवल दिल्ली की दरगाहों और सूफी स्थलों पर श्रद्धा दिखाने जाते हैं, ताकि यह संदेश दिया जा सके कि वे मुस्लिम समाज से जुड़े हुए हैं।
- मुसलमानों में फूट डालने के लिए पिछड़े मुस्लिम वर्गों को आगे किया जाता है, ताकि समुदाय के भीतर ही विभाजन हो सके।
इसके बावजूद इस पार्टी के नेता मुसलमानों के धार्मिक आयोजनों और त्योहारों में शरीक होने से बचते हैं।
माहे रमजान की सभी को दिली मुबारकबाद।
— Hemant Soren (@HemantSorenJMM) March 1, 2025
आप अभी स्वस्थ, सुखी और समृद्ध रहें, यही दुआ करता हूँ। pic.twitter.com/OF8oHdJoTy
कुछ राजनीतिक दलों ने दी रमजान की मुबारकबाद
जहां एक दल मुसलमानों की खुशियों में शरीक होने से परहेज कर रहा है, वहीं दूसरी ओर कुछ दल और उनके नेता रमजान की बधाइयों से सोशल मीडिया को भर चुके हैं।
- सोशल मीडिया पर खूबसूरत पोस्टर और बधाई संदेश साझा किए जा रहे हैं।
- राजनीतिक दलों के बड़े और छोटे नेता मुसलमानों को रमजान की मुबारकबाद देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।
- यह देख कर ऐसा लगता है कि अगर ये दल सक्रिय न हों, तो देश की धर्मनिरपेक्षता को खतरा हो सकता है।
The Congress family wishes everyone a blessed Ramzan!
— Congress (@INCIndia) March 1, 2025
May this holy month bring peace, prosperity, and harmony among all.
Ramzan Mubarak! pic.twitter.com/bXXXLHaSHC
सांस्कृतिक युद्ध और मुसलमानों की पहचान पर हमले
देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को नुकसान पहुँचाने के लिए एक नया सांस्कृतिक युद्ध चलाया जा रहा है।
- उन तमाम स्थानों, नीतियों और रिवाजों पर हमला किया जा रहा है, जो मुस्लिम पहचान से जुड़े हैं।
- इसकी कोशिश है कि भारतीय मुसलमानों की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान कमजोर कर दी जाए।
- मुसलमानों के मुद्दों को राजनीतिक रूप से इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन उनकी वास्तविक परेशानियों पर कोई ध्यान नहीं देता।
फिर भी जब चुनाव आता है, तो यही राजनीतिक दल मुसलमानों से समर्थन मांगने के लिए आगे आ जाते हैं।
सभी देशवासियों को इबादत के पाक महीने रमज़ान की दिली मुबारकबाद।
— Atishi (@AtishiAAP) March 1, 2025
यह पवित्र महीना हम सभी के जीवन में सुख, शांति और खुशियां लेकर आए। pic.twitter.com/6Y3P6gQURJ
क्या मुसलमान इस राजनीति को समझ चुके हैं?
यह सच्चाई है कि भारतीय मुसलमान किसी एक राजनीतिक दल से बंधे हुए नहीं हैं।
- वे खुली सोच रखते हैं और उनकी प्राथमिकता उनका भविष्य और सुरक्षा है।
- वे उन दलों को समर्थन देंगे, जो उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे, न कि केवल चुनावी समय पर उन्हें याद करेंगे।
आज भारत में रोजगार और रोज़गार के अवसर घटते जा रहे हैं। मुसलमान खुद को खड़ा रखने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं।
- जब देश में नौकरी नहीं मिलती, तो वे विदेश जाकर मेहनत करते हैं और अपने देश के लिए पैसा भेजते हैं।
- वे आत्मनिर्भर बनने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और अपनी पहचान बचाने की लड़ाई भी लड़ रहे हैं।
रमज़ान के पवित्र माह की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं!#Ramadan pic.twitter.com/akP4IskVdA
— Alka Lamba 🇮🇳 (@LambaAlka) March 1, 2025
नफरत की राजनीति छोड़नी होगी!
अब समय आ गया है कि राजनीतिक दलों को नफरत की राजनीति को छोड़कर समावेशी राजनीति की ओर बढ़ना चाहिए।
- मुसलमानों को केवल चुनावी वोट बैंक के रूप में नहीं देखना चाहिए।
- उनके धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को गंभीरता से लेना होगा।
- धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक सौहार्द को बनाए रखना जरूरी है।
अगर आप चाहते हैं कि मुसलमान आपको वोट दें, तो आपको उनकी भावनाओं की कद्र भी करनी होगी। वरना, वे भी आपको उतनी ही उपेक्षा देंगे, जितनी आप उनके त्योहारों और खुशियों को देते हैं।