क्या ईरान बंद कर सकता है तेल की सबसे अहम जलमार्ग ? जानिए हॉर्मुज़ की अहमियत
जोनाथन गॉर्नल
दुनिया के लगभग आधे तेल और गैस भंडार अरब खाड़ी के नीचे या उसके आसपास स्थित हैं। यही कारण है कि वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा उसी संकीर्ण समुद्री मार्ग – हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य – से होकर गुजरता है।
शुक्रवार को इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने यह दावा किया कि ईरान पर इज़राइल का पहला हमला आत्मरक्षा में किया गया और उसका उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बाधित करना था।
शनिवार तक यह हमला ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों, बैलिस्टिक मिसाइल फैक्ट्रियों और सैन्य ठिकानों से बढ़कर तेल के बुनियादी ढांचे तक पहुंच गया था।

अब तेहरान से रिपोर्टें सामने आ रही हैं कि ईरान हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य को बंद करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। ईरानी संसद के सदस्य और पासदाराने इनक़लाब के वरिष्ठ कमांडर इस्माईल कोसरी ने एक इंटरव्यू में इस आशय का संकेत दिया है।
हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य की अहमियत
अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन (EIA) के अनुसार, यह दुनिया का सबसे अहम तेल पारगमन मार्ग है। वैश्विक पेट्रोलियम खपत का लगभग पांचवां हिस्सा इस जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है।
खाड़ी के प्रमुख तेल उत्पादक देशों – सऊदी अरब और यूएई – के पास तेल निर्यात के लिए सीमित वैकल्पिक रास्ते हैं।
हालांकि सऊदी अरामको के पास अबकैक से यनबू तक की पाइपलाइन है, जो रोज़ 70 लाख बैरल तक तेल पहुंचा सकती है, और यूएई के पास फुजैरा से जुड़ी एक 15 लाख बैरल प्रतिदिन की पाइपलाइन है, लेकिन ये विकल्प हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य के पूरी तरह बंद हो जाने की स्थिति में पर्याप्त नहीं होंगे।

तेल की आपूर्ति बाधित होने का मतलब
अगर हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य बंद किया गया, तो इससे वैश्विक तेल कीमतों, बीमा लागत और शिपिंग शुल्क में भारी उछाल आएगा।
इसके प्रभाव से अमेरिका से लेकर जापान तक महंगाई में इजाफा हो सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान छोटे ड्रोन, खानों और जहाजों के ज़रिए शिपिंग रूट्स को निशाना बना सकता है।
इज़राइल पर इसका क्या असर होगा?
मजेदार बात यह है कि इस बाधा का सबसे कम असर इज़राइल पर पड़ेगा, क्योंकि उसकी कुल तेल आपूर्ति भूमध्यसागर के रास्ते होती है। वह रोज़ाना करीब 2.2 लाख बैरल तेल भूमध्यसागर के बंदरगाहों से प्राप्त करता है।
क्या ईरान खुद को भी नुकसान पहुंचाएगा?
हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य को पूरी तरह बंद करना ईरान के लिए खुद एक आत्मघाती कदम साबित हो सकता है, क्योंकि वह खुद भी इसी रास्ते से अपना तेल निर्यात करता है।
इतिहास से क्या सबक मिलते हैं?
- 1980 के दशक में ईरान-इराक युद्ध के दौरान दोनों देशों ने खाड़ी में एक-दूसरे के तेल टैंकरों को निशाना बनाया था।
- इस “टैंकर युद्ध” में 15 देशों के 450 से ज़्यादा जहाज़ों पर हमले हुए थे, लेकिन हॉर्मुज़ से तेल आपूर्ति कभी पूरी तरह रुकी नहीं।
- अमेरिका की नौसेना ने उस दौर में भी खाड़ी में हस्तक्षेप किया था। अगर अब फिर से बारूदी सुरंगें बिछाई जाती हैं या ड्रोन हमले होते हैं, तो अमेरिका का 5वां बेड़ा – जो बहरीन में स्थित है – सक्रिय हो सकता है।
अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण
चीन, जो ईरान का एक रणनीतिक साझेदार है, वह हॉर्मुज़ की बंदी के पक्ष में नहीं होगा क्योंकि वहां से गुजरने वाला 76% तेल एशियाई बाज़ारों के लिए होता है।
अमेरिका और पश्चिमी देश पहले ही खाड़ी में नौसेना के जरिए निगरानी करते आ रहे हैं। ऐसे में ईरान के लिए इस जलडमरूमध्य को पूरी तरह बंद करना बेहद जोखिम भरा फैसला होगा।
विश्लेषकों की राय
कुछ विश्लेषकों के अनुसार नेतन्याहू का असली उद्देश्य ईरान में सत्ता परिवर्तन हो सकता है।
वॉशिंगटन के कैटो इंस्टीट्यूट के डिफेंस और फॉरेन पॉलिसी निदेशक जस्टिन लोगन ने कहा कि ईरान अभी परमाणु हथियार नहीं बना रहा था और उसने IAEA को निष्कासित नहीं किया था।
उन्होंने कहा, “नेतन्याहू ने एक अनावश्यक युद्ध शुरू किया है।”
उनका दावा है कि यह हमला अमेरिका-ईरान परमाणु समझौते और संयुक्त राष्ट्र में प्रस्तावित ग़ज़ा सम्मेलन को पटरी से उतारने के लिए किया गया है।

निष्कर्ष
इतिहास और भू-राजनीतिक वास्तविकताएं बताती हैं कि ईरान भले ही धमकी दे, लेकिन हॉर्मुज़ जलडमरूमध्य को पूरी तरह बंद करना न तो आसान है, न ही दीर्घकालिक रूप से संभव।
यह कदम खुद ईरान की अर्थव्यवस्था, उसके सहयोगियों और वैश्विक तेल आपूर्ति को नुकसान पहुंचाएगा, और साथ ही अमेरिका और उसके सहयोगियों की सैन्य प्रतिक्रिया को भी आमंत्रित करेगा।
ऐसे में फिलहाल यह संभावना अधिक है कि ईरान इस विकल्प को एक रणनीतिक दबाव बनाने के औज़ार की तरह इस्तेमाल करेगा – न कि वास्तव में उस पर अमल करेगा।
, विश्लेषक – अरब न्यूज़