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पत्रिका में चिश्ती, दरगाह में दुआ: वक्फ संशोधन विधेयक पर मुस्लिम समाज दोराहे पर

✍🏻 मुस्लिम नाउ ब्यूरो, अजमेर/नई दिल्ली

वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह से जुड़े खादिमों के बीच गहरी फूट सामने आई है। एक तरफ जहां हाजी सैयद सलमान चिश्ती और सैयद नसीरूद्दीन चिश्ती जैसे दरगाह से जुड़े प्रभावशाली नाम इस विधेयक को “सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम” बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बड़ी संख्या में दरगाह से जुड़ी अवाम और कई इस्लामी संस्थाएं इसे मुस्लिमों के धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक हक पर हमला करार दे रही हैं।

▶️ सरकार के साथ खड़े दरगाह के खादिम

हाजी सैयद सलमान चिश्ती, जो चिश्ती फाउंडेशन के अध्यक्ष भी हैं, उन्होंने ‘द हिंदू’ में लिखे एक लेख में वक्फ संशोधन विधेयक की सराहना की। उनका तर्क है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता की दिशा में एक निर्णायक कदम है। उनके मुताबिक, वक्फ संपत्तियों का सदुपयोग स्कूल, अस्पताल, पुस्तकालय जैसे जनकल्याणकारी संस्थानों के निर्माण में होना चाहिए, लेकिन अब तक बोर्ड की अक्षमता और भ्रष्टाचार के चलते ये मकसद अधूरे रह गए हैं।

सैयद नसीरूद्दीन चिश्ती, जिन्होंने खुद को ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का वंशज बताया है, उन्होंने आरएसएस की मुखपत्र ‘पांचजन्य’ में एक लेख लिखकर विधेयक के समर्थन में दलीलें दीं। उनका कहना है कि यह कानून पारदर्शिता, जवाबदेही और तकनीकी दक्षता को वक्फ बोर्ड में शामिल करेगा। उन्होंने इसे “मुस्लिम समाज के सशक्तिकरण” की दिशा में एक आवश्यक बदलाव करार दिया।

▶️ आरएसएस की पत्रिका ‘पांचजन्य’ का विशेषांक और मुस्लिम चेहरे

‘पांचजन्य’ के ताजा अंक में “वक्फ संशोधन विधेयक: मनमानी पर नकेल” शीर्षक से एक विशेष कवर स्टोरी प्रकाशित की गई है। यह रिपोर्ट उन मुस्लिम नेताओं के लिए एक बड़ा संदेश मानी जा रही है जो अब तक पर्दे के पीछे बीजेपी और आरएसएस से जुड़े रहे, लेकिन सार्वजनिक रूप से खुद को मुसलमानों का हितैषी बताते रहे।

इस अंक में प्रकाशित लेखों के ज़रिए वक्फ विधेयक को एक क्रांतिकारी सुधार के रूप में प्रचारित किया गया है। वहीं, सैयद नसीरूद्दीन चिश्ती का कहना है कि वक्फ संपत्तियों के ज़रिए शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास की दिशा में व्यवस्थित निवेश होना चाहिए — और यह विधेयक उसी दिशा में पहला कदम है।

▶️ विरोध का स्वर: दरगाह में दुआओं और दलीलों का मंजर

विधेयक के विरोध में भी ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह की चौखट से आवाजें उठ रही हैं। रजा अकादमी ने एक वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) पर साझा किया, जिसमें सैकड़ों लोग दरगाह में जमा होकर वक्फ विधेयक के खिलाफ दुआ करते नजर आए।

इस वीडियो के साथ रजा अकादमी ने लिखा —

“सुप्रीम कोर्ट में #WaqfAmendmentBill के खिलाफ याचिका दायर करने के बाद, हज़रत सैय्यद मोईन मियां साहब और अल्हाज सईद नूरी साहब ने दरगाह में हाजिरी दी और इस विधेयक को रद्द कराने की दुआ की।”

▶️ मुस्लिम समाज में भ्रम की स्थिति, नेतृत्व असमंजस में

वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर मुस्लिम समाज में जहां एक ओर भ्रम और बिखराव दिख रहा है, वहीं सरकार समर्थित कुछ मुस्लिम चेहरों द्वारा दिए जा रहे तर्क मुस्लिम समुदाय के भीतर दुविधा और असंतुलन को और गहरा कर रहे हैं। इस मुद्दे पर एकता का अभाव साफ दिख रहा है — न तो कोई ठोस रणनीति, न कोई संगठित विरोध।

▶️ क्या यह मसला केवल कानून का है या सौ साल की रणनीति का हिस्सा?

विशेषज्ञों का मानना है कि वक्फ संपत्तियों को लेकर यह बदलाव सिर्फ एक कानून नहीं, बल्कि एक बड़ी राजनीतिक-सांस्कृतिक रणनीति का हिस्सा है। आरएसएस की विचारधारा और उसके सदीभर के लक्ष्य को समझे बिना इस बदलाव की पूरी तस्वीर नहीं देखी जा सकती।


🔻 काबिल ए गौर

ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह से जुड़ी फूट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वक्फ संशोधन विधेयक केवल एक विधायी मसला नहीं, बल्कि मुस्लिम समाज की भावनाओं, नेतृत्व की विश्वसनीयता और भविष्य की दिशा से भी जुड़ा हुआ है।

अब यह देखना शेष है कि मुस्लिम समाज इस टकराव और भ्रम की स्थिति से उबरकर इस विधेयक के खिलाफ कोई ठोस सामाजिक-राजनीतिक रुख अपनाता है या फिर यह मुद्दा भी तीन तलाक, 370 और बाबरी मस्जिद की तरह कानून और अदालती फैसलों की भेंट चढ़ जाएगा