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ईरान-अमेरिका के बीच ओमान में ‘रचनात्मक’ परमाणु वार्ता समाप्त, अगले सप्ताह फिर होगी बातचीत, बनेगा नया समझौता या बढ़ेगा तनाव?

✍️ मुस्लिम नाउ ब्यूरो | मस्कट

ओमान की राजधानी मस्कट में 9 अप्रैल को ईरान और अमेरिका के बीच बहुचर्चित परमाणु वार्ता का पहला दौर समाप्त हुआ। दोनों देशों के प्रतिनिधियों ने “रचनात्मक और पारस्परिक सम्मान” के माहौल में बातचीत की, जो कि वर्षों से जारी टकराव की पृष्ठभूमि में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम माना जा रहा है। दोनों पक्षों ने अगले सप्ताह वार्ता को फिर से शुरू करने पर सहमति जताई है।

यह वार्ता उस समय हो रही है जब इज़रायल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर सैन्य कार्रवाई की चेतावनी दी है और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दो टूक कह दिया है कि समझौता न होने की स्थिति में “सैन्य विकल्प” भी खुला है।


🇮🇷 वार्ता की पृष्ठभूमि: परमाणु कार्यक्रम, प्रतिबंध और वैश्विक दबाव

2015 में हुए ऐतिहासिक परमाणु समझौते (JCPOA) से अमेरिका 2018 में डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में बाहर निकल गया था। इसके बाद ईरान ने अपने यूरेनियम संवर्धन को तेज किया और पश्चिमी प्रतिबंधों के दबाव के बावजूद अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखा। अब, एक बार फिर ईरान-अमेरिका के बीच इस मसले को लेकर ‘बैक चैनल डिप्लोमेसी’ सक्रिय हुई है, जिसकी मेज़बानी ओमान कर रहा है।

ओमानी विदेश मंत्री बद्र अल-बुसैदी ने बातचीत में मध्यस्थ की भूमिका निभाई। ईरान के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व अनुभवी राजनयिक और 2015 समझौते के मुख्य वास्तुकार अब्बास अराघची ने किया, जबकि अमेरिका की ओर से ट्रंप के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ, एक रियल एस्टेट कारोबारी, टीम का नेतृत्व कर रहे हैं।


🗣️ ईरान की स्पष्ट शर्त: ‘निष्पक्षता और सम्मान चाहिए’

ईरानी विदेश मंत्रालय के अनुसार, वार्ता “दोस्ताना और रचनात्मक वातावरण” में हुई, हालांकि प्रारूप पर मतभेद अब भी कायम हैं। प्रारंभिक दौर में दोनों पक्ष अलग-अलग हॉल में बैठे और ओमानी विदेश मंत्री के ज़रिए एक-दूसरे के विचार साझा किए। कुछ क्षणों के लिए आमने-सामने संवाद भी हुआ।

अब्बास अराघची ने ईरानी टीवी को दिए एक बयान में कहा,

“हम समान स्थिति से एक निष्पक्ष और सम्मानजनक समझौते की ओर बढ़ना चाहते हैं।”

ईरान ने बार-बार दोहराया है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण और नागरिक उद्देश्यों के लिए है, जबकि अमेरिका का संदेह है कि तेहरान धीरे-धीरे बम बनाने की दिशा में बढ़ रहा है।


⚠️ इज़रायल और ट्रंप की धमकी: समझौता या सैन्य कार्रवाई?

इज़रायल पहले ही साफ कर चुका है कि अगर ईरान परमाणु बम के नज़दीक पहुंचा, तो वह सैन्य कार्रवाई से पीछे नहीं हटेगा। इस बीच ट्रंप ने भी इज़रायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू की मौजूदगी में कहा,

“अगर सैन्य की ज़रूरत हुई तो हम सैन्य करेंगे। लेकिन मैं चाहता हूं कि ईरान एक खुशहाल देश बने — बिना परमाणु हथियार के।”

इस बयान से यह स्पष्ट है कि अमेरिका और इज़रायल, दोनों ही ईरान को किसी भी कीमत पर परमाणु शक्ति बनने से रोकने के लिए तैयार हैं।


📉 प्रतिबंधों से जूझती ईरानी अर्थव्यवस्था को चाहिए ‘ऑक्सीजन’

ईरान में हिजबुल्लाह और हमास जैसे सहयोगियों पर इज़रायल के हमलों और देश में आर्थिक बदहाली के चलते शासन पर दबाव बढ़ रहा है। ईरानी नेतृत्व को उम्मीद है कि किसी नए समझौते से प्रतिबंधों में राहत मिल सकती है, जिससे देश की डांवाडोल अर्थव्यवस्था को सहारा मिले।

पेरिस स्थित विश्लेषक करीम बितार के अनुसार,

“इस समय ईरानी शासन की पहली और अंतिम प्राथमिकता सत्ता का अस्तित्व बचाए रखना है। प्रतिबंधों से राहत और आर्थिक स्थिरता उसके लिए जीवनरेखा जैसी है।”


🧪 परमाणु भंडार का संकट: अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी की चेतावनी

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के अनुसार, ईरान के पास इस समय 274.8 किलोग्राम यूरेनियम है जो 60% तक समृद्ध किया गया है — यह हथियार-ग्रेड 90% के काफी नज़दीक है। यही तथ्य अमेरिका और उसके सहयोगियों की चिंता की जड़ है।


🔎 उम्मीदें भी हैं, शंकाएं भी

ओमान में हुई यह वार्ता कूटनीतिक रूप से एक बड़ी शुरुआत है, लेकिन इसका रास्ता बेहद कठिन और संवेदनशील है। अमेरिका का यह रुख कि “हमें कोई और रास्ता तलाशना होगा” और ईरान का आग्रह कि “हमें निष्पक्षता चाहिए” — दोनों मिलकर संभावनाओं के दरवाज़े खोलते हैं।

हालांकि, असली परीक्षा तब होगी जब वार्ता के अगले दौर में ठोस प्रस्ताव सामने आएंगे। फिलहाल यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि यह पहल किसी समझौते में बदलेगी या फिर फिर से तनाव और सैन्य टकराव की ओर ले जाएगी।

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