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संदर्भ भागवत कथनः मुसलमानों को विश्वास में लेना मुश्किल क्यों है ?

डॉक्टर ख्वाजा इफ्तिखार अहमद की पुस्तक में सेक्युलरिज्म पर बार-बार सवाल उठाए गए हैं. इस पुस्तक के विमोचन के असवर पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मॉब लिंचिंग एवं हिंदुस्तानी मुसलमानों को लेकर बयान दिया था, जो काफी चर्चित रहा. उन्होंने कहा था कि गाय के नाम पर मॉब लिंचिंग हिंदुत्व नहीं और जो यह कहता है कि भारत में एक भी मुसलमान नहीं रहेगा, वह हिंदू नहीं. उनके इस बयान की बहुत तारीफ हुई. अब उन्होंने धर्मनिरपेक्षता और सीएए को लेकर एक औरबयान दिया है. मुसलमानों के नजरिए से बयान तो स्वागत योग है. मगर इसके साथ कई सवाल हैं. यदि भागवत सेक्युलरिज्म के हिमायती हैं तो उन्होंने सेक्युलरिज्म की बुराई करने वाली पुस्तक का विमोचन क्यों किया ? ख्वाजा की पुस्तक में धर्मनिरपेक्षता को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की गई है.

दूसरा सवाल, यूपी इलेक्शन से ठीक पहले ऐसे बयान क्यों आने लगे हैं ? क्या वाकई यह बयान संघ की सुधारवादी नीति का हिस्सा है या यूपी इलेक्शन में भाजपा की पतली स्थिति होने की संभावनाओं को टालने की खातिर ऐसे बयान दिए जा रहे हैं ?इसमें दो राय नहीं कि भारत को यहां तक पहुंचने में मुसलमानों का योगदान किसी भी अन्य कम्युनिटी से कम नहीं है. हिंदुस्तान की जैसी संरचना और परंपराएं हैं, उसमें किसी एक धर्म को हाशिए पर धकेल कर देश को आगे बढ़ाने की कल्पना

भी संभव नहीं. ऐसे में यदि देश की अखंडता को मजबूत करने की बजाए किसी दमित इच्छा की पूर्ति के लिए संघ के बयान नहीं आ रहे हैं. यह उसका ईमानदाराना प्रयास है तो बयानों को व्यवहारों में भी लाना होगा. पिछले सात वर्षों का अनुभव भारतीय मुसलमानों के लिए कुछ ठीक नहीं रहा. इसके अलावा उनके मन में कुछ मुद्दों को लेकर अभी भी भारी आशंकाएं और दुविधा हैं. मदरसे और जनसंख्या की नीति को लेकर कुछ प्रदेशों में जैसी कारगुजारियां चल रही हैं, वह मुसलमानों के भरोसे को डिगाती हैं. कुछ खास कानूनों का जो गैरवाजिब इस्तेमाल हो रहा है.

उसको लेकर भी उनके बीच कई सवाल हैं. ऐसे में संघ के बयान अभी ‘वेट एंड वाॅच’ की स्थिति में ही रहेंगे. हाल के दिनों में संघ की ओर से मुस्लिम रहनुमाओं और बुद्धिजीवियों को अपने ले में लाने का सफल प्रयास किया गया हैै.उनके जतिरए भी मुसलमानों के पक्ष में कुछ इमानदाराना पहल दरकार है. इसके बाद ही संघ के बयान का कोई असर और मतलब समझा जाएगा तथा मुसलमानों की सोच में बदलाव दिखेगा.

वैसे, बकरीद के दिन संघ प्रमुख मोहन भागवत का जो बयान आया है. वह काबिल-ए-गौर है. तीन दिवसीय दौरे पर असम पहुंचे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) मुसलमानों को किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाएंगे.

उन्होंने कहा कि सीएए और एनआरसी का हिंदू-मुस्लिम विभाजन से कोई लेना-देना नहीं. इन मुद्दों के इर्द-गिर्द सांप्रदायिक बयान लोगों के एक वर्ग द्वारा अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए फैलाया जा रहा है.मंगलवार शाम गुवाहाटी पहुंचे भागवत ने कहा कि नए नागरिकता कानून से एक भी मुसलमान को नुकसान नहीं होगा.

उन्होंने कहा,1930 से मुस्लिम आबादी बढ़ाने के लिए आतंकवाद और अर्थव्यवस्था के संबंध में नहीं बल्कि एक प्रमुख ताकत बनने के लिए संगठित योजनाएँ बनाई गई हैं. यह पंजाब, बंगाल और असम में हुआ. इन क्षेत्रों को बहुमत में बदलने की योजना है ताकि चीजें अपनी शर्तों पर काम करें. यह पाकिस्तान और बांग्लादेश में हुआ. फिर भी हम आत्मसात करना चाहते हैं. एक साथ रहना चाहते है.

गुवाहाटी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नानी गोपाल महंत द्वारा लिखी गई पुस्तक का भागवत ने विमोचन किया. इस मौके पर मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी बात की.इस समारोह में भागवत ने कहा ,विभाजन के बाद हमने अपने अल्पसंख्यकों का ख्याल रखा है, भले ही पाकिस्तान ने ऐसा नहीं किया. एनआरसी सिर्फ यह पता लगाने की एक प्रक्रिया है कि असली नागरिक कौन है और कुछ नहीं. मामला (एनआरसी) सरकार के अधिकार क्षेत्र में है. लोगों का एक वर्ग एनआरसी और सीएए दोनों को शामिल करके सांप्रदायिक आख्यान बनाकर राजनीतिक लाभ प्राप्त करना चाहता है.

उन्होंने कहा,“महाभारत काल से, असम में प्रवास का इतिहास रहा है, लेकिन अवैध प्रवाह से इतना डर कभी नहीं रहा. सभी समुदायों को आत्मसात करना चाहिए, लेकिन अन्य समुदायों में कोई डर नहीं होना चाहिए.‘‘अखंड भारत‘‘ (अविभाजित भारत) की आवश्यकता की वकालत करते हुए, आरएसएस प्रमुख ने कहा कि पाकिस्तान जैसे देश जो भारत से अलग हो गए थे, अब संकट में हैं. उन्होंने कहा,‘‘अखंड भारत ब्रह्मांड के कल्याण के लिए आवश्यक है. भारत के पास कई चुनौतियों से पार पाने की क्षमता है. दुनिया उन चुनौतियों और कठिनाइयों को दूर करने के लिए उसकी ओर देख रही है. ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम‘‘ (विश्व एक परिवार है) विश्वास के साथ, भारत फिर से दुनिया में सुख और शांति को आगे बढ़ा सकता है.‘‘

भागवत ने कहा, ‘‘जब हम ‘‘अखंड भारत‘‘ की बात करते हैं, तो हमारा उद्देश्य इसे शक्ति से प्राप्त करना नहीं होता, बल्कि ‘धर्म‘ (नीति) के माध्यम से एकजुट होना होता है, जो कि ‘सनातन‘ (शाश्वत) है, यही मानवता है और इसे हिंदू धर्म कहा जाता है.‘‘आरएसएस के सूत्रों ने कहा कि गुवाहाटी में अपने प्रवास के दौरान, भागवत असम के विभिन्न हिस्सों और अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा सहित अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में आरएसएस के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक करेंगे.

भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार के 2021 के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उत्तर-पूर्वी राज्य में लगातार दूसरी बार सत्ता में लौटने के बाद भागवत की असम की यह पहली यात्रा है. और इसी असम में सीएए-एनआरसी, मदरसा बंद करने एवं जनसंख्या नियंत्रण को लेकर प्रदेश सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से देश के मुसलमानों का विश्वास डगमगाया हुआ है.