एएमयू के कुलपति की नियुक्ति पर विवाद, पहुंचा हाई कोर्ट इलाहाबाद
मुस्लिम नाउ ब्यूरो,अलीगढ़
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अभी भी कुलपति की नियुक्ति के लिए रोड़ा मचा हुआ है.नियमित कुलपति के नाम पर मुहर लगाने के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) कब से बेसब्री से इंतजार कर रहा है, लगता है यूनिवर्सिटी को अभी थोड़ा और इंतजार करना होगा.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में वीसी की नियुक्ति का मामला अब इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गया है. बता दें कि एएमयूवीसी का कार्यकाल खत्म होने के बाद काफी समय से यूनिवर्सिटी में नए वीसी के चुनाव की मांग चल रही है, जिसके बाद एएमयू गवर्निंग बॉडी की बैठक में वोटिंग के आधार पर वीसी के पद पर नियुक्ति की गई.
तीन उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट किया गया. इन तीन उम्मीदवारों में एम उरूज रब्बानी, फैजान मुस्तफा और नइमा खातून के नाम पर मुहर लगी. इन तीन उम्मीदवारों में एक कार्यवाहक वीसी मोहम्मद गुलरेज की पत्नी नईमा खातून भी शामिल हैं. ये तीन नाम राष्ट्रपति को भेज दिए गए थे, जिनमें से एक नाम का चयन राष्ट्रपति करेंगे.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और इसके सदस्य मुजाहिद बेग ने कोर्ट में याचिका दायर कर एएमयू गवर्निंग बॉडी पर सवाल उठाए हैं. उन्हांेने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कार्यवाहक वीसी की अध्यक्षता वाले पैनल द्वारा नईमा खातून का नाम शॉर्टलिस्ट करना उचित नहीं है. यह हितों का टकराव है. वर्तमान कार्यवाहक वीसी अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं. चयन प्रक्रिया की वैधानिकता को मुजाहिद बेग ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 9 दिसंबर को होगी.
क्या है मुजाहिद बेग का आरोप ?
मुजाहिद बेग ने याचिका में कहा है कि एएमयू गवर्निंग बॉडी की बैठक में वीसी पद के लिए अंतिम तीन उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट किया गया था, जिसमें कार्यवाहक कुलपति की पत्नी भी शामिल हैं. कार्यवाहक वीसी मोहम्मद गुलरेज की पत्नी नईमा खातून एएमयू के महिला कॉलेज की प्रिंसिपल हैं. उन्हें एएमयू कोर्ट गवर्निंग बॉडी के सदस्यों से 50 वोट मिले. अन्य दो शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों एम अरूज रब्बानी (पूर्व डीन फैकल्टी ऑफ मेडिसिन, एएमयू) और फैजान मुस्तफा (नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी नलसर के पूर्व वीसी) को क्रमशः 61 और 53 वोट मिले.
याचिका में कहा गया है कि एएमयू के कार्यवाहक वीसी की अध्यक्षता वाले पैनल द्वारा नईमा खातून के नाम को शॉर्टलिस्ट करने से हितों के टकराव का सवाल खड़ा हो गया है.