वक्फ संशोधन बिल पर विवाद: जाकिर नायक के विरोध से सवालों के घेरे में केंद्र सरकार
मुस्लिम नाउ विशेष
‘‘कृपया हमारे देश के बाहर के निर्दोष मुसलमानों को गुमराह न करें. भारत एक लोकतांत्रिक देश है और लोगों को अपनी राय रखने का अधिकार है. झूठे प्रचार से गलत बयानबाजी होगी.’’यह केंद्रीय अल्पसंख्यक मामले के मंत्री किरण रिजिजू के 8 सितंबर 2024 को एक्स पर साझा किया गया बयान है. इस ट्वीट के साथ मंत्री जी ने तीन वीडियो और एक तस्वीर साझा किए हैं. इन दिनों सोशल मीडिया पर साझा किए वह वीडियो है जिसमें भारतीय मुसलमान केंद्र सरकार के वक्फ संशोधन बिल का न केवल विरोध करते नजर आ रहे हैं,
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बल्कि लोगों को जागरूक करते भी नजर आ रहे हैं कि कैसे वे ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के समक्ष उपरोक्त बिल के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करवा सकते हैं. जबकि किरण रिजिजू द्वारा साझा की गई तस्वीर में भारत के विवादास्पद इस्लामिक स्कॉलर जाकिर नायक को दिखाया गया है और उनके हवाले से वक्फ संशोधन बिल का विरोध करते दिखाया गया है.
मगर केंद्रीय अल्पसंख्यक मामले के मंत्री के इस ट्विट ने बड़े सवाल को भी जन्म दे दिया है कि आतंकवाद को खाद-पानी देने का आरोप झेलने और भारतीय कानून के शिकंज से बचने के लिए मलेशिया में निर्वासित जीवन जीने वाले विवादास्पद इस्लाॅमिक विद्वान जाकिर नायक अचानक वक्फ कानून का विरोध करने मैदान में क्यों उतर आए ? इसी सेे जुड़ा अहम सवाल यह है कि किरण रिजुजु ने जाकिर नायक द्वारा वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ सोशल मीडिया पर साझा किया गया साढे़ 9 मिनट का वीडियो न डालकर उनके नाम से जारी पोस्टर और वे तीन वीडियो क्यों जारी किए जिसमें लोग बिल के खिलाफ जागरूकता फैलाते नजर आ रहे हैं ? किरण रिजिजू अपने ट्विट में किसे संबोधित कर रहे हैं-’’‘‘कृपया हमारे देश के बाहर के निर्दोष मुसलमानों को गुमराह न करें….’’
Please do not mislead the innocent Muslims from outside our country. India is a democratic country and people have the right to their own opinion. False propaganda will lead to wrong narratives. https://t.co/3W3YwtyJjI pic.twitter.com/LwV9Jh1YTg
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) September 10, 2024
क्या उनका यह संबोधन जाकिर नायक के लिए है ? यदि हां तो उन्हांेने अपने ट्विट में उनका नाम और उनका साढ़े नौ मिनट का वीडियो क्यों नहीं साझा किया ? या फिर वह उन्हें मुखातिब कर कह रहे हैं जो इनदिनों मस्जिद, सड़कों पर मुसलमानों को यह बताते घूम रहे है कि वे कैसे इस बिल को कानून बनने से रोक सकते हैं ? यदि इस बिल को कानून नहीं बनने से नहीं रोका गया तो देश की हर मस्जिद, दरगाह, कब्रिस्तान के वजूद पर खतरा हो जाएगा और फिर कोई भी कट्टरवादी संगठन उसे लेकर बनावटी विवाद खड़ा करेगा और इलाके का क्लेक्टर उसे सील कर देगा.
जाकिर नायक के साढ़े नौ मिनट के वीडियो में इस बात को बखूबी समझाने की कोशिश की गई. साथ ही बताने का प्रयास किया गया कि पिछले दस वर्षों में कई मुस्लिम मुखालिफ कानून बनाने में बीजेपी की केंद्र सरकार इसलिए कामयाब रही, क्यों कि तब विपक्ष कमजोर था. मगर इस बार के लोकसभा चुनाव के बाद विपक्ष मजबूत बनकर उभरा है और मौजूदा बीजेपी सरकार को सदन में मनमाना करने का मौका नहीं मिल रहा है. जाकिर नायक के इस वीडियो में और भी कई सरकार विरोधी बातें कही गई हैं.
मगर किरण रिजिजू का जाकिर नायक के इस विवादास्पद वीडियो को साझा न कर बिल के खिलाफ जागरूकता फलाने वाले तीन वीडियो को साझा करना इस बात का संकेत है कि बिल को लेकर मुस्लिम संगठनों द्वारा शुरू किए गए आंदोलन से केंद्र सरकार घबरा गई है ? इसके साथ ही सवाल भी अहम है कि अचानक इस आंदोलन में जाकिर नायक क्यों कूदे ? क्या कोई मुसलमानों के मौजूदा आंदोलन में खलल डालने के लिए उन्हें इस्तेमाल कर रहा है ?
दरअसल, ऐसे सवालों की बड़ी वजह यह है कि पिछले दस सालों में पहली बार मुस्लिम और इस्लामिक संगठन तथा मुस्लिम रहनुमा किसी मुद्दे पर एकजुट नजर आ रहे हैं. यहां तक कि जब सीएए को लेकर देशभर के मुस्लिम युवाओं ने इसके खिलाफ आंदोलन शुरू किया था तब भी ये एकजुट नजर नहीं आए थे. मगर अब सब एक प्लेट फार्म पर नजर आ रहे हैं. एक तरह से सोच रहे हैं और विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात कर और जागरूकता अभियानों के माध्यम से केंद्र सरकार के प्रयासों को निरंतर कुंद करने में लगे हुए हैं.
अभी उनके प्रयासों को लेकर ऐसा लग रहा है कि वे किसी नतीजे पर पहुंच कर ही मानेंगे. मुस्लिम लीडरों से सरकार से उम्मीद नहीं है, इसलिए वे विपक्षी दलों के नेताओं से मिल रहे हैं. यानी वक्फ संशोधन बिल सत्ता पक्ष और देश के मुसलमानों के लिए ‘लिटमस्ट टेस्ट’ बन गया है. मुसलमान यह जांचने के प्रयास में हैं कि उनके प्रयासों से किसान आंदोलन की तरह सरकार झुकेगी या नहीं और बीजेपी की नीति है कि ऐसे विवाद खड़ा करके वह चुनावी लाभ के लिए किस हद तक मतदाओं का ध्रुवीकरण कर पाएगी. अभी हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने वाला है. इसके बाद कई और प्रदेशों में चुनाव होने हैं. ऐसे में ध्रुवीकरण से बीजेपी को लाभ पहुंच सकता है.
भारत में 21 करोड़ से ज्यादा मुसलमान हैं, यदि 50 लाख लोग भी वक्फ बिल का विरोध करें तो फिर इसे रोका जा सकता है,
— Maharashtra Bandhu News (@BandhuNews_in) September 9, 2024
देश में वक्फ बोर्ड की जमीन तीसरे नंबर पर है, ऐसे में मुसलमान लोगों को इसका विरोध करने की जरूरत है.
भारत के मोस्ट वांटेड आरोपी,
: ज़ाकिर नाइक.#WaqfAmendmentBill_2024… pic.twitter.com/u2OkaLR5fM
मगर वक्फ संशोधन बिल देश के मुसलमानों के लिए जीवन-मरण का प्रश्न बन गया है. पिछले दस सालों में कई मुस्लिम मुखालिफ कानून बनाने में इसलिए केंद्र सरकार कामयाब हो गई कि उसे अंदरखाने कई मुस्लिम लीडरों का भी साथ मिल रहा था. इस लिए जब ऐसे मौके आए ऐसे मुस्लिम रहनुमा या तो खामोश रहे या फिर मामले को कोर्ट में घसीट ले गए. कोर्ट में जाते ही हर बार फैसला मुसलमानों के विरुद्ध गया. यहां तक कि बाद में अरशद मदनी और ओवैसी जैसे नेताओं को कहना पड़ा कि अदालतों के फैसले से ‘एकपक्ष’ की दुर्गंध आ रही है.
हालांकि, जब वक्फ संशोधन बिल का मामला पहली बार सामने आया तो नसीरुद्दीन चिश्ती, पसमांदा संगठनों जैसे कई सरकार और संघ समर्थक लोगों ने बीजेपी सरकार की जोरदार वकालत की. ऐसे लोग किरण रिजिजू को फूल माला भी पहना आए. मगर बाद में मुसलमानों के बढ़ते आंदोलन को देखकर किसी कोने में सिमट कर रह गए.
अभी तो स्थिति यह है कि मुसलमानों के इस आंदोलन को बेकार करने के लिए कई मीडिया घराने में भी सक्रिय हो गए हैं. इसकी ताजा मिसाल किरण रिजिजू का यह ट्वीट है. इस ट्विट में कहीं भी जाकिर नायक का नाम नहीं लिया गया और बड़ी चालाकी से जाकिर नायक की तस्वीर की आड़ में मुसलमानों के आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश की गई है. न्यूज एजेंसियों ने किरण रिजिजू के ट्वीट को ट्विस्ट देकर जाकिर नायक के हवाले से उस वीडियो को प्रसारित कर दिया, जिसमें मुसलमान बिल के खिलाफ जागरूकता फैलाते नजर आ रहे हैं. अब समय ही बताएगा कि इस तरह की साजिशों का शिकार होकर मुसलमान अपने आंदोलन से पैर खींच लेते हैं या आंदोलन को अंजाम तक पहुंचकर पहली बार बीजेपी सरकार को झुकाने में कामयाब होते हैं.