Culture

COVID 19 ये जो हलका हलका सा सुरूर है….और उन्होंने दवा ढूंढ निकाली

अभी कोरोना (Coronavirus) देश में अमेरिका व ब्राजील से अधिक तेजी से फैल रहा है। पिछले एक सप्ताह में उपरोक्त दोनों देशों के मुकाबले भारत में सर्वाधिक कोरोना के मामले सामने आए।  

कोविड 19 यानी कोरोना संक्रमण  की दवा की खोज में पूरी दुनिया लगी है, पर इसमें कामयाबी मिलने में अभी साल-छह महीने लगेंगे। बावजूद इसके कुछ लोगों ने  न केवल  इसका तोड़  ढूंढ निकाला किसी को खबर तक नहीं होने दी। ऐसे लोग दिन रात यह दवा ले रहे हैं। अजय कुमार कहते हैं,‘‘ वह यह दवा रोजाना दो बार लेते हैं।’’ इस दवा का नाम है नुसरत फतेह अली खान।
  आप सही समझे! वही नुसरत फतेह अली खान की बात कर रहा हूं, जिनके जैसा धुरंधर सूफी-नात एवं कव्वाली गायक इस पृथ्वी पर शायद न कभी हुआ , न होगा। तकरीबन तेईस वर्ष पहले लंदन के एक अस्पताल में दम तोड़ने से पहले गायकी की शक्ल में उन्होंने जो दवाएं दीं, वह कोरोना काल में लोगों के खूब काम आ रही हैं। वर्षों पुराने गाए उनके  कलाम इस समय तनाव व एकांकीपन दूर कर रहे हैं। यूट्यूब पर मौजूद उनके गाए कलामों पर प्रतिक्रिया देने वालों को खंगालने पर पता चला कि लॉक डाउन में नुसरत साहब अच्छी खासी संख्या में देश-दुनिया में सुने गए। उन्हें उन लोगों ने भी सुना जिन्हें उर्दू, पंजाबी या हिंदी नहीं आती। डैमजन मिलानोविस्की कहते हैं-‘‘वह दुनिया के तीन मशहूर आवाजांें एक हैं।’’  जो लोग कोरोना की चपेट में आकर क्वरंटीन रहे या हैं। वह भी कानों में लीड लगाकर उनकी कव्वालियां, नात और सूफियाना कलाम अपने मोबाइल पर सुन रहे हैं। इस अवधि में जिनकी नौकरी गई या जो घरों से अकारण बाहर नहीं निकलते, वे भी नुसरत साहब को दिल खोल  कर  सुन रहे हैं।

भारत में बे काबू कोरोना और निष्क्रिय सरकार

अभी कोरोना देश में अमेरिका व ब्राजील से अधिक तेजी से फैल रहा है। पिछले एक सप्ताह में उपरोक्त दोनों देशों के मुकाबले भारत में सर्वाधिक कोरोना के मामले सामने आए। खबर लिखने तक देश में कोरोना रोगियों की कुल संख्या 2.22 मिलियन थी। मरने वालों की संख्या 44,386। बावजूद इसके सरकारी और निजी तौर पर खूब लापरवाहियां बरती जा रही हैं। आम इंसान की जान की परवाह न करते हुए अर्थव्यवस्था पटरी पर लाने के नाम पर देश में तकरीबन तमाम गविधियां पहले की तरह फिर चल पड़ी हैं। केस तेजी से बढ़ रहे, पर अस्पतालों से इलाज के नाम पर की जाने वाली ड्रामेबाजी की खबरें बराबर देखने-सुनने को मिल रही हैं। स्थिति है कि  लोगों को थाली, ताली बजाने और दीवाली मनाने के लिए प्रेरित करने  प्रधानमंत्री मोदी भी सामने नहीं आ रहे। सरकार ने कोरोना से निपटने के लिए जो तौर तरीके अपनाए, उसपर अब सवाल
उठ रहे हैं। मोदी सरकार में सहयोगी रामविलास पासवान ने माना है कि कोरोना को हम सही ढंग से टैकल नहीं कर पाए।
 दूसरी तरफ कोरोना की दवाई खोजने में लगे भारत और ऑक्सफोर्ड सहित विभिन्न देशों और संस्थानों ने स्पष्ट किया है कि अगले साल ही इसके बाजार में आने की उम्मीद है। तब तक देश-दुनिया में न जाने कितने लोग कोरोना से निपट चुके होंगे। अब तक विश्व में इस महारोग से 733 हजार मौतें हो चुकी हैं।   ऐसी हालत में लोगों ने रोग से खुद ही बचने और इसकी चपेट में आने पर कूल रहने की दवा ढूंढ निकाली है। वे दिनभर नुसरत फतेह अली खान की कव्वालियां, गजलें और सूफियाना कलाम सुनते रहते रहते हैं। उनके सुनने वाले कहते हैं कि वह केवल पाकिस्तान की नहीं पूरे विश्व की मिलकियत हैं। उनकी गाई गजल ‘‘आंख उठी मोहब्बत ने अंगड़ाई ली….’’ पर प्रतिक्रिया देते सागर कुमार कहते हैं-आप से न उपर कोई था और न होगा खान साहब।’’ उनकी शान में दमन कुमार लिखते हैं-‘‘कम ही हुए कलंदर शिकवों, गिलों को मिटा गए
कुछ शक्को शुभा को मिटा गए, कुछ मजहबों को हिला गए
कोई न हुआ तुम जैस फनकार ऐ राहत-ए-नुसरत
दिलों से सरहद को मिटा गए

मेरे बाद किस को सताओगे
यूट्यूब पर नुसरत फतेह अली खान के गाए अभी जितने भी गीत, गजल, कव्वाली, नात या सूफियाना कलाम मौजूद हैं। उसे सुनकर प्रतिक्रिया देने वालों की संख्या हजारों में है। उनमें कई हजार प्रतिक्रियाएं कोरोना काल में जुड़ीं। आरसी चौधरी ने लॉक डाउन में सुनने हुए जब लोगों से पूछा कि अभी उन्हें कौन-कौन सुन रहा है जवाब में एक साथ दर्जनों प्रतिक्रियाएं आईं। जगदीश सिंह रोग की चपेट में आकर क्वरंटीन रहे। उन्होंने लिखा कि क्वरंटीन के दिनों में उन्होंने नुसरत अली साहब को खूब सुना। राष्ट्रीय हिंदी समाचार ने प्रतिक्रिया में कहा-‘‘आप ग्रेट थे। मूड जैसा भी हो आपको सुनने के बाद फीलिंग बहुत अच्छी हो जाती है। नुसरत साहब की कव्वाली ‘यह न पूछो कि हम क्या हैं’ सुनकर प्रतिक्रिया में बर्डी सबा कहती हैं-लॉकडाउन में खूब सुना। अमीष भट्टर कहते हैं-‘‘रिस्पेक्ट फॉर द सरदारजी।’’ कोरोना काल में नौकरी जाने पर नुसरत साहब की गाई गजल ‘यह जो हलका हलका सुरूर है…..’ सुनकर प्रतिक्रिया में रामू मल्लाह अपने बॉस को नसीहत देते हैं-‘‘मेरे बाद किसको सताओगे।’’  

जीवनी भी खूब खंगाली जा रही

कोरोना कॉल में नुसरत फतेह अली खान की गायकी एवं उनकी शख्सियत को लेकर भी खूब चर्चाएं हैं। लेख के अंत में उनका एक पुराना इंटरव्यू प्रस्तुत है, जिसे सुनकर आप उनके, परिवार और उनकी गायकी के बारे में बहुत कुछ जान पाएंगे। उनके दादा अफगानिस्तान से आकर भारत के जालंधर में बसे थे। मगर बटवारे के समय उनके पिता पाकिस्तान चले गए। इस बाबत उनके चाहने वालों में इस समय गर्मागर्म बहस चल रही है। जय सूर्य यह कहकर बहस को खत्म करने की कोशिश करते हैं-‘‘नुसरत साहब स्वर्ग की आवाज़ थे।’’ आरएडी भी उन्हें भगवान की आवाज बताते हैं। अविनाश कुमार कहते हैं-‘‘नुसरत साहब की ज़ुबान से निकला हुआ एक-एक शब्द मोती होता है।’’

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संपादक