Culture

‘सांस्कृतिक युद्ध’ और औरंगजेब की छवि बिगाड़ने का खेल: फिल्म ‘छावा’ और इतिहास से छेड़छाड़ पर विवाद

मुस्लिम नाउ विशेष,नई दिल्ली

भारत में पिछले कुछ वर्षों से इतिहास को नए सिरे से गढ़ने और विशेष रूप से मुस्लिम शासकों की छवि धूमिल करने का प्रयास तेज़ हो गया है। इस प्रक्रिया में कई बार ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा जाता है, नाम बदले जाते हैं और पुस्तकों में इतिहास को संशोधित किया जाता है। हाल ही में रिलीज़ होने वाली मराठी फिल्म ‘छावा’ भी इसी कड़ी में एक नया विवाद लेकर आई है। इस फिल्म में मुगल शासक औरंगजेब को क्रूर और ज़ालिम दिखाने की कोशिश की गई है।

फिल्म ‘छावा’ और औरंगजेब की नकारात्मक छवि

मराठा योद्धा छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित फिल्म ‘छावा’ में मुगल शासक औरंगजेब को एक क्रूर तानाशाह के रूप में चित्रित किया गया है। टीवी9 भारतवर्ष के पत्रकार अंकित गुप्ता द्वारा लिखे गए रिव्यू के अनुसार, इस फिल्म में औरंगजेब की क्रूरता को प्रमुख रूप से दर्शाया गया है। गुप्ता लिखते हैं, “औरंगजेब की क्रूरता के चर्चे सत्ता में आने से पहले ही शुरू हो गए थे। सत्ता प्राप्ति के लिए उन्होंने अपने पिता शाहजहां को जेल में डाल दिया, अपने भाई दारा शिकोह की हत्या करवाई और उसका कटा हुआ सिर पिता के पास भिजवा दिया।”

संभाजी महाराज के प्रति औरंगजेब का अत्याचार?

फिल्म में दिखाया गया है कि औरंगजेब और मराठाओं की दुश्मनी शिवाजी महाराज के समय से थी, लेकिन उनके पुत्र संभाजी महाराज के प्रति किए गए अत्याचारों ने इसे चरम पर पहुंचा दिया। संभाजी महाराज को षडयंत्र के तहत गिरफ्तार कर लिया गया और इस्लाम कबूल करने का दबाव डाला गया। जब उन्होंने इनकार किया, तो उनकी आंखें निकाल ली गईं, जुबान काट दी गई और शरीर के हिस्से-हिस्से काटकर तुलापुर नदी में फेंक दिए गए। 11 मार्च 1689 को उनका सिर धड़ से अलग कर दिया गया।

गुरु तेग बहादुर की शहादत और औरंगजेब का फरमान

इतिहास में एक अन्य महत्वपूर्ण घटना गुरु तेग बहादुर की शहादत से जुड़ी है। उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए कहा गया, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप उन्हें क्रूरतापूर्वक शहीद कर दिया गया। दिल्ली के गुरुद्वारा शीश गंज साहिब और गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब आज भी इस घटना की गवाही देते हैं।

क्या इतिहास को सांप्रदायिक नजरिए से तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है?

ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि औरंगजेब का शासन सिर्फ हिंदू-मुसलमान की लड़ाई नहीं थी, बल्कि यह सत्ता संघर्ष और रणनीतिक युद्धों का परिणाम था। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. राम पुनिया इस संदर्भ में कहते हैं कि औरंगजेब और शिवाजी के बीच का संघर्ष धर्म पर आधारित नहीं था, बल्कि यह राजनीतिक और सैन्य संघर्ष था।

डॉ. पुनिया बताते हैं, “औरंगजेब की सेना में हिंदू अधिकारी जैसे जय सिंह और जसवंत सिंह बड़े ओहदों पर थे, वहीं शिवाजी की सेना में मुसलमान भी उच्च पदों पर थे। यह विवाद हिंदू-मुस्लिम का नहीं था, बल्कि साम्राज्य विस्तार से जुड़ा था।”

ब्रिटिश इतिहासकारों की भूमिका और सांस्कृतिक युद्ध

इतिहासकारों का मानना है कि हिंदू-मुस्लिम संघर्ष की अवधारणा ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स मिल द्वारा गढ़ी गई थी। उन्होंने भारतीय इतिहास को हिंदू और मुस्लिम शासन में विभाजित कर दिया, जबकि ब्रिटिश शासन को केवल “ब्रिटिश हुकूमत” के रूप में प्रस्तुत किया। इतिहासकार अवध ओझा कहते हैं, “कुछ संगठन इस गलत धारणा को आगे बढ़ा रहे हैं और इसे एक सांस्कृतिक युद्ध का रूप दे रहे हैं।”

औरंगजेब: एक क्रूर शासक या अनुशासित बादशाह?

कई इतिहासकारों और शोधकर्ताओं का मानना है कि औरंगजेब को सिर्फ एक क्रूर शासक के रूप में देखना उचित नहीं है। नॉर्थ कैलिफोर्निया इंडियन कल्चर के प्रोफेसर डॉ. अरुण प्रकाश मिश्रा लिखते हैं:

  • औरंगजेब खुद टोपी सिलकर अपना गुजारा करते थे।
  • एक सादे जीवन का पालन करते थे और राजस्व से मस्जिद बनाने की इजाजत नहीं देते थे।
  • महिलाओं का सम्मान करते थे और अपराध करने पर मस्जिद भी तुड़वा देते थे।
  • हिंदू राजाओं को भी प्रशासनिक पदों पर नियुक्त किया।
  • जजिया कर सिर्फ 1.25% था जबकि मुस्लिमों से जकात कर 2.5% लिया जाता था।
  • उनके शासनकाल में भारत की जीडीपी दुनिया की कुल जीडीपी का 25% थी।
  • गौहत्या पर कठोर दंड का प्रावधान था।

इतिहास के साथ छेड़छाड़ और सांप्रदायिकरण का खेल

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करना नई बात नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में इस प्रक्रिया ने तेज़ी पकड़ ली है। फिल्मों, टीवी कार्यक्रमों और सोशल मीडिया के माध्यम से ऐतिहासिक घटनाओं का सांप्रदायिकरण किया जा रहा है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी कहते हैं, “छत्रपति शिवाजी कभी भी मुसलमानों के विरोधी नहीं थे, बल्कि वे अन्याय के खिलाफ लड़ते थे। इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करना एक खतरनाक प्रवृत्ति है।”

इतिहासकारों का मानना है कि इस तरह की फिल्मों और लेखों के माध्यम से समाज में नफरत का माहौल बनाया जा रहा है। करिश्मा अजी, जो इतिहासकार और शोधकर्ता हैं, अपने ट्वीट में लिखती हैं, “छावा मूवी पूरी तरह से फर्जी इतिहास पर आधारित है और इसका मकसद केवल औरंगजेब की नकारात्मक छवि गढ़ना है।”

काबिल ए गौर

भारत का इतिहास जटिल और बहुपक्षीय रहा है। इसे केवल हिंदू-मुस्लिम संघर्ष के रूप में देखना ऐतिहासिक तथ्यों के साथ अन्याय होगा। फिल्म ‘छावा’ के माध्यम से जिस तरह से औरंगजेब को क्रूर शासक के रूप में प्रस्तुत किया गया है, वह एकपक्षीय दृष्टिकोण है।

जरूरत इस बात की है कि हम इतिहास को एक संतुलित दृष्टिकोण से देखें, तथ्यों के आधार पर विश्लेषण करें और किसी भी ऐतिहासिक चरित्र को सिर्फ धर्म के चश्मे से न आंकें। इतिहास को सांस्कृतिक युद्ध का हथियार बनाना देश की एकता और अखंडता के लिए हानिकारक हो सकता है।