घटता मतदान: लोकतंत्र की मजबूती पर सवाल
चौधरी आफताब अहमद
लोकतंत्र यानी जनता का शासन एक ऐसी प्रणाली, जिसके तहत जनता अपनी स्वेच्छा से निर्वाचन में आए हुए किसी भी उम्मीदवार को मत देकर अपना प्रतिनिधि चुनती है. ये एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें शासकों का चुनाव आवाम करती है.
दरअसल, लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन है जिसमे सभी व्यक्ति को समान अधिकार होता हैं. एक मज़बूत लोकतन्त्र से ही देश में लोगों को सामाजिक, राजनीतिक व धार्मिक स्वतन्त्रता की सुरक्षा सुनिश्चित होती है, इसलिए लोकतंत्र के उत्सव चुनाव में जनता की बढ़-चढ़ कर भागीदारी महत्वपूर्ण हो जाती है.
अगर चुनाव में 100 फ़ीसदी आवाम की बजाय 60 से 65 फ़ीसदी ही लोग भाग लें तो मज़बूत लोकतंत्र की परिकल्पना करना बेईमानी होगा. 18वीं लोकसभा के लिए सात चरणों में समपन्न हुए मतदान का प्रतिशत 65 रहा, जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता.35 फ़ीसदी लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल ही नहीं किया.
143 करोड़ की आबादी के देश के 97 करोड़ मतदाताओं में से करीब 34 करोड़ ने अपना मत ही नहीं दिया – ये आँकड़े चिंताजनक है जिसके कई कारण हो सकते हैं लेकिन इन पर मंथन करने की जरूरत है कि 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में मतदान में गिरावट क्यों हुई?
मतदान को लेकर उत्साह सही मायने में लोकतंत्र के प्रति जनता के विश्वास का एक संकेत है. प्रजातंत्र की मजबूती का दायित्व प्रत्येक मतदाता की जिम्मेदारी है. मतदान केंद्र तक का सफर करने में होने वाली गर्व की अनुभूति का जब तक अहसास नहीं होगा तब तक मतदान उत्सव का रूप नहीं ले सकता.
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जब हम अपना वोट डालते हैं तो यह भावना आती है कि हम भी इस देश के लोकतंत्र में अहम योगदान अदा कर रहे हैं. एक बात और महत्वपूर्ण है कि किसी भी दल के पक्ष में मत बनाने से पहले उसके घोषणा पत्र पर गौर करना और उनके द्वारा उठाए मुद्दों को चिह्नित करना जरूरी है. इसके बाद प्रत्याशी की छवि देखें व उसके कार्यो का आंकलन और भी जरूरी है.
मतदान के लिए लिया एक सही फैसला हमें अच्छा प्रतिनिधि दिला सकता है. यदि किसी का मन मतदान के लिए राजी नहीं हुआ है तो उसे मतदान के लिए कैसे जागरूक और प्रेरित करने के सामूहिक कारगर प्रयास तेज हों.
चुनाव में मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए प्रत्याशी जाति, धर्म, भय से लेकर प्रलोभन देने तक का सहारा लेते हैं. मतदाता इससे भ्रमित होकर मतदान भी कर देता है. यह प्रवृति लोकतंत्र के लिए खतरे का संकेत है.
इस बार कम मतदान होने के कारणों को समझना बेहद ज़रूरी है. भीषण गर्मी के मौसम का भी कुछ प्रभाव मतदान पर ज़रूर हुआ, लेकिन उससे भी ज़्यादा प्रभाव इस बात का रहा कि 10 साल में सरकार की गलत नीति और नीयत के कारण मतदाताओं के एक बड़े हिस्से का मतदान में विश्वास खोने लगा है.
उन्हें लगा कि इतना बड़ा जनादेश देने के बावजूद नीतियाँ किसानों की बजाय चंद उद्योगपति मित्रों के लिए बनने लगी हैं, समाज में एकता और भाईचारे के बजाय नफ़रती विचारों को सत्ता संरक्षण मिलने लगा है. सत्ता पक्ष की कथनी और करनी भी मतदाताओं के विश्वास पर खरी नहीं उतरी है. मतदाता शायद ख़ुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका वोट लेकर सत्ता गरीबों की बजाय अमीरों के लिए काम कर रही है. देश में अमीरों ग़रीबों के बीच की खाई का लगातार बढ़ना उनके इस दलील का उदाहरण भी है.
सत्ता लोभ के लिए नेताओं के दल बदल, उनके द्वारा वोटर की भावनाओं का वोट लेने के बाद निरादर करना, समाज में बढ़ती असमानता, असुरक्षा की भावना का संचार और सत्ता संरक्षण में फलता फूलता भ्रष्टाचार भी कम होते मतदान के प्रमुख कारणों में से एक हैं.
ईडी, सीबीआई, आईटी विभाग सत्ता के इशारों पर विपक्ष को दबा रहे हैं और इन विभागों का भय दिखाकर बड़ी कंपनियों से खूब चंदा वसूला था. ये घटनाएँ जनता की लोकतंत्र में विश्वास में कमी का कारण बन रहे हैं. देश के लोगों ने इस बार ये भी देखा कि जो विपक्ष के नेता विपक्ष में रहते हुए भ्रष्टाचारी थे वो सत्ता पक्ष में जाते ही दूध से धुल गए. इन कारणों से भी मतदाता का रुझान मत डालने के विपरीत रहा.
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बढ़ती महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी से त्रस्त लोगों ने निराश होकर मतदान से दूरी बनाई, बेहतर होता कि बचे हुए 35 फ़ीसदी मतदाता भी इन मामलों पर अपने विवेक से मतदान करते. कारण भले ही कुछ भी हों लेकिन लोकतंत्र की नींव और मजबूत होगी यदि जनता मतदान को एक उत्सव की तरह मनाते हुए मतदान में बढ़-चढ़ कर भाग ले। उन्हें मानना होगा कि उनके एक मत से देश की दिशा और दशा तय होती है.
मुख्य बिंदु:
- लोकतंत्र का महत्व: जनता द्वारा चुनी हुई सरकार की व्यवस्था.
- चुनाव में भागीदारी: उच्च मतदान प्रतिशत मजबूत लोकतंत्र का संकेत.
- वोटिंग प्रतिशत की कमी: 18वीं लोकसभा चुनाव में 65% मतदान, जो चिंता का विषय.
- मतदान में कमी के कारण: सरकार की नीतियों और जनता का विश्वास.
- प्रत्याशी का चयन: घोषणा पत्र और कार्यों का मूल्यांकन.
- मतदाता जागरूकता: सही निर्णय से अच्छे प्रतिनिधि का चयन.
- भ्रम और प्रलोभन: जाति, धर्म और अन्य प्रलोभनों का प्रभाव.
- सरकार की नीतियाँ: गरीबों की बजाय अमीरों के लिए नीतियाँ.
- भ्रष्टाचार और असमानता: सत्ता संरक्षण में भ्रष्टाचार और बढ़ती असमानता.
- विपक्ष का दबाव: ईडी, सीबीआई और आईटी विभाग का उपयोग.
- जनता की निराशा: महंगाई, बेरोज़गारी, और भ्रष्टाचार के कारण.
- मतदान का महत्व: देश की दिशा और दशा में मतदान की भूमिका.
( लेखक हरियाणा विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष हैं. यह लेखक के विचार हैं. )