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Delhi Minorities Commission अध्यक्ष पद छोड़ने से पहले जफरूल इस्लाम का केजरीवाल को बड़ा झटका, हो सकते हैं कई मंसूबे फेल

स्टाफ रिपोर्टर।
दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष जफरूल इस्लाम ने अपनी सेवानिवृत्त से तीन दिन पहले अरविंद केजरीवाल को ऐसा झटका दिया कि उनका केंद्र से पींगे बढ़ाने का मंसूबा खटाई में पड़ सकता है। उन्होंने दिल्ली दंगों पर ‘फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट’ जारी कर इसके लिए भाजपा के कई नेताओं और दिल्ली पुलिस को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जिम्मेदार ठहराया है। वह 19 जुलाई को विधिवत सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
  रिटायरमेंट से कुछ घंटे पहले अपने फेसबुक पेज पर उन्होंने लिखा है, ‘‘दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग में व्यस्त तीन साल में बहुत राहत मिली। आज मेरा अंतिम दिन है। कार्यकाल प्रभावी ढंग से 19 जुलाई को समाप्त होगा। अंतिम दिन सारे मुद्दे निपटाए। कोई फाईल पीछे नहीं छोड़ी। इसके साथ चार रिपोर्टें भी जारी की हैं।’’ इन चार में ही एक फरवरी में हुए उत्तर-पूर्वी दिल्ली हिंसा पर फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट है, जिसे जफरूल इस्लाम की अध्यक्षता में 10 सदस्यीय समिति ने तैयार की है। रिपोर्ट दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल एवं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पहले ही सौंपी दी गई है। मगर इसे  सार्वजनिक अब किया गया है। रिपोर्ट जफरूल इस्लाम की फेसबुक वाल पर भी हैं।

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130 पेज की रिपोर्ट में दिल्ली हिंसा के लिए बहुत हद तक भारतीय जनता पार्टी के कतिपय नेताओं एवं दिल्ली पुलिस को जिम्मेदार ठहराया गया है। यह कहती है कि दंगों के दौरान पुलिस मूकदर्शक बनी रही। भीड़ लूटपाट, घर जलाती और हिंसा करती रही। रिपोर्ट में दंगाईयों को उकसाने के लिए कपिल मिश्रा सहित कई भाजपा नेताओं को जिम्मेदार ठहराया गया है। कहा गया  कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भाषण के जरिए कथित तौर पर दंगाइयों को उकसाया गया। भाजपा नेता कपितल मिश्रा द्वारा मौजपुर में भाषण देने के बाद उत्तर पूर्वी दिल्ली के विभिन्न इलाकों में दंगे भड़के। मिश्रा ने दिल्ली पुलिस को अल्टीमेटम देते हुए कहा था कि यदि पुलिस इन प्रदर्शनकारियों को नहीं हटाती तो उनके लोग सड़क खाली कराने के लिए उत्तर आएंगे। कपिल मिश्रा के साथ विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के तीन वरिष्ठ नेताओं ने एक समुदाय विशेष का नाम लिए बगैर आपत्तिजनक टिप्पणियां की थीं। उनमें से एक ने पार्टी की जनसभा में ‘गोली मारो सालों’ का नारा दिया था। बावजूद तमाम आरोपों के वे सभी अभी तक कानून के घेरे से बाहर हैं।
 रिपोर्ट में संशोधित नागरिकता कानून यानी सीएए के विरोध में किए गए आंदोलनों की समाज में नकारात्मक छवि बनाने के भी आरोप लगाए गए हैं। कहा गया कि शाहीनबाग की नकारात्मक छवि बनाने के लिए एंटी-शाहीनबाग नरेटिव तैयार किया गया। एंटी-सीसीए प्रदर्शन को बदनाम करने के लिए दिए गए भाषणों से दंगे भड़के। विरोध-प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ अभद्र टिप्पणियां की गईं। इसमें सांप्रदायिक और हिंसा भड़काने वाली बातें शामिल हैं। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की इस रिपोर्ट को भाजपा की ओर से हरीश खुराना ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि राजनीति से प्रेरित है, जबकि दिल्ली पुलिस प्रवक्ता अनिल मित्तल का कहना है कि रिपोर्ट महकमा को प्राप्त नहीं हुई है। अध्ययन के बाद  इसपर प्रतिक्रिया दी जाएगी।

फिर सकता है मंसूबों पर पानी
 बहरहाल, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की दंगों पर फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट से निश्चित ही कई लोगों की समस्या बढ़ने वाली है। साथ ही कइयों के मंसूबांे पर पानी फिर सकता है। विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा और उसकी केंद्र सरकार के खिलाफ हर समय मोर्चा खोले रहने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इन दिनों उनसे पींगे बढ़ाने में लगे हैं। एक खास रणनीति के तहत ही चुनाव जीतने के तुरंत बाद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमितशाह से मुलाकात की थी। कोरोना संक्रमण के बहाने भी अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार के करीब आने की कोशिश में हैं। यहां तक कि उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने जब कर्मचारियों के वेतन की मांग को लेकर केंद्र सरकार से आर्थिक सहयोग नहीं देने पर सवाल किए तो केजरीवाल तुरंत बीच-बचाव के लिए आगे आ गए। आम समझ है कि भाजपा और केंद्र से रिश्ता सुधार कर केजरीवाल दिल्ली के विकास के लिए कई बड़ी योजनाओं पर मुहर लगवाना चाहते हैं, ताकि अगले चुनाव में बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिनाई जा सके। पिछले कार्यकाल में केंद्र और भाजपा से लड़-भिड़ कर समय बिताने के कारण वे कुछ खास नहीं कर पाए थे। इस दफा उनका संबंध सुराने पर जोर है। मगर दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की दंगों पर रिपोर्ट के बाद केजरीवाल की केंद्र से मधुर संबंध बनाने की रणनीति शायद ही सिरे चढ़ पाए। कायदे से अब उन्हें रिपोर्ट के आधार पर भाजपा के नेताओं और आरोपी पुलिस कर्मियों के विरूद्ध कार्रवाई के लिए केंद्र पर दबाव बनाना होगा। ऐसा नहीं करने पर उनकी छवि धूमिल होने के साथ अगले चुनाव में सत्तारुढ़ आम आदमी पार्टी को भारी झटका लग सकता है। इस बार के विधानसभा चुनाव में दिल्ली के मुसलमानों का एकतरफा वोट केजरीवाल की पार्टी को गया था। रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं करने की स्थिति में यह वोट बैंक छिटक सकता है।

-तस्वीरें सोशल मीडिया से साभार
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