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Delhi Police चल पड़ी बीएमपी व पीएसी की राह , लग रहा मुसलमानों के विरूद्ध एकतरफ़ा कार्रवाई का आरोप


हिंसा के दौरान एवं बाद में ऐतिहासिक भेदभाव, नौकरशाही संरचना में दोष तथा पुलिस के आचरण का पता लगाने का प्रयास किया: शरजील उस्मानी

हिंसा के दौरान एवं बाद में ऐतिहासिक भेदभाव, नौकरशाही संरचना में दोष तथा पुलिस के आचरण का पता लगाने का प्रयास किया: शरजील उस्मानी

सांप्रदायिक दंगों में बीएमपी (BMP) से चर्चित बिहार मिलिट्री पुलिस एवं पीएसी (PAC) से मशहूर उत्तर प्रदेश प्रादेशिक आर्म्ड काउंस्टेबलरी की निष्पक्षता एवं भूमिका पर सवाल उठते रहे हैं। कुछ ऐसी ही छवि दिल्ली पुलिस (Delhi Police) की भी बनने लगी है। विशेष कर संशोधित नागरिकता कानून (CAA) के विरूद्ध ‘शाहीन बाग आंदोलन’ एवं दिल्ली दंगे के दौरान उसकी भूमिका पर सवाल दागे जा रहे हैं, निश्चित ही बदनमी के इस दाग को निकालने में उसे वर्षों लग जाएंगे।
दिल्ली पुलिस आतंकवादियों एवं बड़े गैंस्टर्स के लिए काल मानी जाती है। मगर दिल्ली दंगे में संदिग्ध गविधियों एवं शाहीन बाग आंदोलन में कथित भड़काउ भाषण देने के आरोप में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद की गिरफ्तारी के बाद उसकी निष्ठा को गहरा चोट पहुंचा है। दिल्ली दंगे पर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल’ की रिपोर्ट हाल में आई है, जिसमें दंगे के पहले, दंगे के बीच में एवं उसके बाद दिल्ली पुलिस की भूमिका की खुलकर आलोचना की गई है। रिपोर्ट में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से उसके कई कर्मियों पर दंगे में शामिल होने के आरोप लगाए गए हैं।

अनुराग ठाकुर, कपिल मिश्रा पर कार्रवाई नहीं

आरोपों के मुताबिक, दंगे से पहले दिल्ली चुनाव में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, एक बीजेपी सांसद एवं इसी पार्टी के कपिल मिश्रा सहित कई नेताओं ने पुलिस की मौजूदगी में ललकारने वाले भाषण दिए थे, जिसके परिणामस्वरूप राजधानी दिल्ली में हिंदू-मुस्लिम दंगा भड़क उठा। इस दौरान करीब  52 लोग मारे गए जिनमें अधिकांश मुस्लिम थे। इस समुदाय के लोगों के मकानों-दुकानों को भी भारी संख्या में नुक्सान पहुंचाया गया। व्यापारिक प्रतिष्ठान आग के हवाले कर दी गईं। बावजूद इसके दिल्ली पुलिस की ज्यादातर कार्रवाईयां मुसलमानों के इर्द-गिर्द घूम रही है। यहां तक कि इस आरोप में प्रोफेसर अपूर्वानंद, सीताराम येचुरी, योगेंद्र यादव जैसी शख्सियों के नाम भी चार्जशीट में शामिल कर लिए गए। इसके इतर अनुराग ठाकुर, कपिल मिश्रा सरीखे बीजेपी नेता तमाम तरह के आरोपों एवं वीडियो फुटेज की मौजूदगी के अभी तक दिल्ली पुलिस की कार्रवाइयों से दूर हैं।

दंगों में पुलिस का एकपक्षीय रवैया

उमर ख़ालिद की गिरफ्तारी के बाद एक संप्रदाय विशेष के प्रति एकतरफ़ा रवैया अपनाने को लेकर दिल्ली पुलिस पर आरोपों की बौछार बढ़ गई है। पूर्व आईपीएस अधिकारी अब्दुर रहमान ने ट्वीट कर अनुराग ठाकुर, कपिल मिश्रा सरीखे बीजेपी नेताओं को गिरफ्तार नहीं करने पर सवाल उठाए हैं। उमर ख़ालिद की रिहार्ह के लिए देश के तीन दर्जन लेखक, पत्रकार, बुद्धिजीवियों ने अपील जारी की है, जिसमें भी दिल्ली पुलिस की भूमिका पर प्रहार किया गया। स्वतंत्र लेखक तथा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के पूर्व छात्र शरजील उस्मानी हाल में जेल से छूटे हैं। उन्होंने भी अपने पहले सोशल मीडिया पोस्ट में सांप्रदायिक दंगे में पुलिस के कथित एकपक्षीय रवैए को रेखांकित किया है। वह ट्वीट कर कहते हैं, ‘‘… मेरा तर्क है कि एक संस्थान के रूप में पुलिस मुस्लिम विरोधी है। मैंने हिंसा के दौरान एवं बाद में ऐतिहासिक भेदभाव, नौकरशाही संरचना में दोष तथा पुलिस के आचरण का पता लगाने का प्रयास किया।’ इस पोस्ट के साथ शरजील उस्मनी ने न्यूज़ पोर्टल ‘फर्स्ट पोस्ट’ में पुलिस की मुसलमानों के खिलाफ कथित एकपक्षीय कार्रवाई पर 27 अप्रैल को प्रकाशित अपना लेख-‘भारतीय मुसलमान एवं पुलिस का ऐतिहास’ भी साझा किया है। वह पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाने वाले कई लेख पहले भी  लिख चुके हैं। उन्हें अलीगढ़ के एएमयू में सीएए के विरूद्ध भड़काउ भाषण देने एवं इस दौरान अधिकारियों से मार-पीट करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

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Delhi riots पुलिस वाले भी दंगे में शामिल थेः एमनेस्टी इंटरनेशनल

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संपादक