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सावित्रीबाई फुले की सहयोगी फातिमा शेख के सम्मान पर दिलीप मंडल का हमला

मुस्लिम नाउ विशेष

दिलीप मंडल पूरी तरह विक्षिप्त हो चुका है. मुसलमानों से नफरत की आग में वह इस कदर झुलसा है कि अब मुसलमानों के इतिहास पर ही उंगली उठाने लगा है. मुस्लिम और दलित के प्रगाढ़ संबंधों को लेकर जब कोई अपनी बात रखता है तो यह तुंरत कूद पड़ता है और अपने भोथरे तथ्य से उसे झुठलाने की कोशिश करने लगता है.

एक साहब ने जब ‘मंडल‘ के पाकिस्तान में मंत्री बनने की बात रखी तो यह शख्स तुरंत कूद पड़ा. यही नहीं इस सच को कुंद करने के लिए उलटे-सीधे तक देने लगा कि वहां दलितों के साथ ज्यादतियां हो रही हैं. बलात्कार और धर्म परिवर्तन हो रहे हैं.

क्या इन घटनाओं से यह सच्चाई बदल जाएगी कि पाकिस्तान में कोई दलित मंत्री बना था ? मुसलमानों के साथ ज्यादतियां तो भारत में भी हो रही हैं तो क्या सह सच्चाई बदल जाएगी कि एपीजे अब्दुल कलाम इस देश के राष्ट्रपति नहीं बने थे ?

दिलीप मंडल अब सावित्री बाई फुल की सहयोगी फातिमा शेख की छवि बिगाड़ने पर आमादा है. अपने तमाम भोथरे तर्क से यह साबित करने का निरंतर प्रयास कर रहा है कि फातिमा शेख काल्पनिक नाम है. हद यह है कि इस कोशिश में वह इस ऐतिहासिक मुस्लिम महिला की छवि बिगाड़ने के चक्कर में उनकी जाति पर भी सवाल उठा रहा है.

हद यह है कि अब इसने उनके चार पति होने की बात कह कर उनकी इज्जत उछाल रहा है. मुस्लिम संगठन को ऐसे शख्स के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की पहल करनी चाहिए.फातिमा शेख के स्तित्व को खारिज करने के चक्कर में दिलीप मंडल इस कदर पागल हो चुका है कि लगातार यह दलील दे रहा है कि इसने फातिमा शेख का चरित्र गढ़ा है.

इससे पूछ जाए कि यदि ऐसा है तो उसने ऐसा क्यों किया ? उसने इतिहास को बिगाड़ कर लोगों की जानकारियों से क्यों खिलवाड़ किया ? फातिमा शेख से संबंधित सवाल प्रतियोगी परीक्षाओं में भी आते रहे हैं. इस बेहंगम व्यक्ति की वजह से क्या एक गलत जानकारी देशभर में नहीं फैली ?

क्या यह संगीन अपराध नहीं है ? क्या इस लगत जानकारी के लिए दलिप मंडल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं बनती है’. क्या शिक्षा मंत्रालय को इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं करनी चाहिए?

दिलीप मंडल के दो ताजे ट्वीट नीचे दिए गए हैं. इसमें जो तर्क दिए गए हैं कि उससे साफ पता चलता है कि यह शख्स फातिमा शेख की छवि बिगाड़ने के चक्कर में इतना अंधा हो चुका है कि अपनी अगली लाइन में ही अपनी बात काटता दिखाई दे रहा है.

अपने दूसरे ट्वीट में दो नंबर पर दिलीप मंडल कहता है कि फातिमा शेख होने का कोई प्रमाण नहीं है, न ही इस बारे में किसी किताब में कोई जिक्र है. इसपर जब एक व्यक्ति ने एक पुस्तक में उनके नाम सुझाए तो दिलीप मंडल का तर्क था कि पुस्तक में कहा लिखा है कि वह टीचर है.

बाद में वह खुद एक जगह एक किताब के हवाले से लिखता है कि सावित्री बाई फूले संबंध में एक लाइन में उनका जिक्र है. दिलीप मंडल फिर खुद ही कहता है कि तब पुस्तक और अखबर का चलन नहीं था. तो इस कुढ़ मगज को इतनी भी समझ नहीं आ रही है कि यदि तब पुस्तकें और अखबार नहीं थे तो क्या उसके कुतर्क से यह साबित नहीं हो रहा कि सावित्री बाई के होने और नहीं होने पर यह सवाल कर रहा है?

मजे की बात है कि दिलीप मंडल की इस बकवास बाजी को देश में सांप्रदायिकता फैलाने वाले खूब हवा दे रहे हैं.

बहरहाल, आप यहां दिलीप मंडल के दो ट्वीट पढ़िए और दिलीप मंडल के बुद्धिभ्रस्ट होने पर अपना माथा धुनिए.

ट्वीट एक
उलसनसनीख़ेज

जो रिसर्च पेपर और लेख मेरे हाथ में इस समय हैं, उनमें फातिमा शेख जी के 4 पतियों के नाम सामने आए हैं। चारों एक ही समय में फातिमा शेख को स्कूल चलाने में मदद करते थे। ये नाम है. शेख अब्दुल लतीफ, शेख़ अब्दुल कादिर, सरदार जहांगीर खान और अब्दुल रहमान शेख.

जब कोई नक़ली किरदार खड़ा किया जाता है तो ऐसा हो जाता है। कोई बात नहीं..

अगर आपको भी फातिमा शेख जी के किसी और पति का नाम किसी रिसर्च पेपर, किताब या लेख में मिले तो मुझे मेल कर दें. सिर्फ छपे हुए रिसर्च पेपर और लेख ही भेजें.

फेसबुक, ट्विटर आदि और विकिपीडिया को विश्वसनीय स्रोत नहीं माना जाएगा.

ट्वीट दो

प्रिय विद्वानों और सुधी जनों,

फातिमा नामक किरदार को लेकर बहस अब महीनों चलेगी. लेकिन कुछ बातें को लेकर सभी पक्ष सहमत हैं. आम सहमति के बिंदु:

  1. फातिमा शेख नामक कोई ऐतिहासिक व्यक्ति या चरित्र नहीं था जो सावित्री बाई फुले की सहयोगी थी या टीचर थी या स्कूलों की संस्थापक या सह-संस्थापक थी.
  2. फातिमा शेख के होने का उस समय का कोई प्रमाण किसी के पास नहीं है, जिस समय उनका होना बताया गया है। न कोई किताब, न कविता, न कोई सरकारी दस्तावेज, न उस समय का कोई पत्र, न अखबार। कुछ नहीं. बिल्कुल नहीं। प्रमाण के नाम जो कुछ पेश किया जा रहा है वह फुले युग के सौ साल बाद का है.
  3. एक फातिमा का जिक्र सावित्री बाई फुले के सिर्फ एक पत्र में में है वह भी सिर्फ एक लाइन में – मेरे पुणे में न होने से “फातिमा पर काम का बोझ बढ़ा है. वह समझती होगी और शिकायत नहीं करेगी.” इस लाइन से फातिमा शेख के होने या उनके टीचर होने का संकेत नहीं मिलता.
  4. यह फातिमा कौन थी, क्या करती थी, किस काम का बोझ बढ़ेगा और क्यों शिकायत नहीं करेगी, ये ऐसा रहत्य है, जिसे कोई नहीं जानता. संभव भी नहीं है। मराठी में शिकायत नहीं करेगी के लिए “कुरकुर नहीं करेगी” ऐसा लिखा है. फातिमा को यहाँ भाषा में बहुत सम्मान नहीं दिया गया है.
  5. यह फातिमा होने को ईसाई हो सकती है क्योंकि इस्लाम के पैदा होने से बहुत पहले से ये नाम ईसाई लड़कियों का होता आया है. पुणे में फातिमा चर्च है भी। वह फातिमा अंसारी या फातिमा कुंजड़ा या फातिमा धुनियाँ भी हो सकती हैं. वह घर की नौकरानी या सेविका हो सकती हैं.

वैसे भी फुले परिवार पुणे का रईस और प्रभावशाली परिवार था. कंस्ट्रक्शन का विशाल बिजनेस था. फुले नगरपालिका के कॉरपोरेटर थे। उनके कई स्कूल चलते थे. फातिमा जैसे कितने सहायक होंगे ये भी हम नहीं जानते.

  1. यह फातिमा ही फातिमा शेख थी या टीचर थी या स्कूल चलाती थी, ऐसा कोई प्रमाण नहीं आया है. किसी के पास नहीं है। उनके होने की कथा के सौ साल बाद किसी किताब या लेख को प्रमाण के तौर पर पेश किया जा रहा है, जिसे सभी विद्वानों ने ख़ारिज कर दिया है.
  2. फातिमा शेख को सावित्री बाई फुले की सहयोगी होने की कहानी एक ही उद्देश्य को पूरा करती है. हिंदू वंचित वर्गों के साथ मुसलमानों का राजनीतिक समीकरण बनाना. ये दिखाना कि उच्च वर्णों के खिलाफ मुसलमान सहयोगी हैं. जबकि ये एक मिथक है.

7 . विकिपीडिया ने ये मानने के बाद भी फातिमा की जन्म तिथि का कोई प्रमाण नहीं है और न ही उनके पहले मुस्लिम टीचर होने का कोई प्रमाण है, फातिमा शेख पर लिखा आलेख नहीं हटाया है.

  1. हम उम्मीद करते हैं विकिपीडिया के संपादकों को सही समझदारी आएगी. क्योंकि गूगल भी विकिपीडिया को सोर्स बनाकर कई अफवाहों को आगे बढ़ा रहा है. गूगल ने फातिमा शेख पर डूडल भी विकिपीडिया के आधार पर बनाया गया था.
  • इन बातों पर बनी सभी पक्षों की सहमति के बाद आप सब अन्य विषयों पर चर्चा को आगे जारी रख सकते हैं.

इन दो ट्वीटों से पाठकों को अंदाजा हो चुका होगा कि आदमी नफरती हो जाए तो कैसे कैसे कुतर्क गढ़ता है.