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निराश कर गए डाॅ. अल-इस्सा !

मुस्लिम नाउ विशेष

इस्लामिक दुनिया से जब कोई बड़ा लीडर हिंदुस्तान आता है तो हिंदुस्तानी मुसलमानों की उम्मीदें बढ़ जाती हैं. चूंकि पवित्र मक्का-मदीन की वजह से दुनिया भर के मुसलमानों की सउदी अरब के प्रति न केवल आस्था है, वहां के रहनुमाओं से कई तरह की उम्मीदें भी रहती हैं.

मुस्लिम वल्र्ड लीग के महासचिव शेख डाॅ. मोहम्मद बिन अब्दुल करीम अल-इस्सा जैसा कोई बड़ा प्रभावकारी लीडर बहुत दिनों बाद हिंदुस्तान आया था, इसलिए हिंदुस्तानी मुसलमानों को उनसे ढेर सारी उम्मीदें थीं.पिछले दस वर्षों में आम भारतीय मुस्लिमानों के जज्बात के खिलाफ जिस तरह के निर्णय लिए गए, उससे आज भी वे बेचैनी महसूस करते हैं. इसके साथ अब यूनिफाॅर्म सिविल कोड की तलवार भी उनपर लटकने लगी है.

ऐसे में हिंदुस्तानी मुसलमान यह समझ रहे थे कि अल-इस्सा भारत में कुछ ऐसी नसीहतें, बातें कह जाएंगे, जिससे एक तरह से भरोसा बने कि आने वाले समय में उन्हंे नीचा दिखाने की कार्रवाई नहीं की जाएगी. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. यहां तक कि अल-इस्सा ने शुक्रवार को नई दिल्ली की जामा मस्जिद में जुमे की नमाज के दौरान खुतबे में भी भरोसा जगाने वाली कोई बात नहीं की. उन्होंने इस्लाम में अखलाक के महत्व पर विशेष प्रकाश डाला.

जाहिर है यह ऐसी कोई मानीखेज बात नहीं थी जिसे आम मुसलमान नहीं समझता, जानता हो. आम तौर पर हर मोमिम को यह जानकारी है, क्योंकि इस्लाम की बुनियाद ही तकवा, परहेजगारी, ईमानदारी, भाईचारा पर टिकी है. यही नहीं अन्य समारोहों में भी अल-इस्सा ने यही बातें अलग-अलग ढंग से रखीं. मुस्लिम वल्र्ड लीग इसपर विशेष जोर देता है.

सवाल उठता है कि यदि अल-इस्सा हिंदुस्तान दो कौमों के बीच भाईचारा बढ़ाने आए थे, तो वे कुछ खास लोगों के ही इर्द-गिर्द क्यों घूमते रहे. यदि इसी सिलसिले में उन्हांेने प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री से मुलाकात की तो विपक्षी दलों के किसी लीडर से उन्हांेने दूरी क्यों बनाए रखी ? उनके सभा सम्मेलनों में अधिकांश उल्लेखनीय मुस्लिम, इस्लामी चेहरे क्यों नजर नहीं आए ? उनके सभा सम्मेलन में ज्यादातकर वैसे मुस्लिम चेहरे दिखे, जो एक खास संगठन से जुड़े हुए हैं.

अल-इस्सा एक ऐसे संगठन के कार्यक्रम में भी शामिल हुए जिनके बारे में हिंदुस्तानी मुसलमानों की राय अच्छी नहीं है. उनका मानना है कि भारत में मुसलमानांे को प्रभावित करने वाले जो फैसले लिए जा रहे हैं, दरअसाल, वह उसी संगठन की नीतियांे का प्रभाव है. चलिए, दोस्ती बढ़ाने के लिए अल-इस्सा उनके बीच पहुंच भी गए तो सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ने वाले मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड, एआईएमआईएम जैसे संगठनांे से क्यों दूरी बनाकर रखी ?

इमारत शरिया के लोग भी उनके कार्यक्रम में नजर नहीं आए. इसका क्या मतलब निकाला जाए ? ऐसे में उनकी भारत यात्रा ने हिंदुस्तानी मुसलमानों को न केवल निराश किया, बल्कि उनकी भारत यात्रा को अलग चश्मे से देखा भी जाने लगा है.