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डॉ. अकरम नदवी ने जामिया में इस्लामी इतिहास में महिलाओं के योगदान को रेखांकित किया

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,,नई दिल्ली


जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मीर अनीस हॉल में 24 अप्रैल को एक ऐतिहासिक अकादमिक अवसर साकार हुआ, जब विश्वप्रसिद्ध इस्लामी विद्वान डॉ. शेख मोहम्मद अकरम नदवी ने “अनपैकिंग डी मिथ्स: सेपरेटिंग फैक्ट फ्रॉम फिक्शन अबाउट विमेन इन इस्लाम” विषय पर अपना विशेष व्याख्यान प्रस्तुत किया। इस आयोजन का संयुक्त आयोजन सरोजिनी नायडू महिला अध्ययन केंद्र और डॉ. जाकिर हुसैन इस्लामिक स्टडीज इंस्टिट्यूट ने किया था।

कार्यक्रम की भव्य शुरुआत और अतिथियों का स्वागत

कार्यक्रम का शुभारंभ पवित्र कुरान के भावपूर्ण पाठ से हुआ, जिसने वातावरण को आध्यात्मिक और विचारशील बना दिया। सरोजिनी नायडू महिला अध्ययन केंद्र की निदेशक प्रो. निशात जैदी ने स्वागत भाषण में इस आयोजन के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि इस तरह के संवाद आज की विविधतापूर्ण दुनिया में बेहद ज़रूरी हैं।
डॉ. जाकिर हुसैन इस्लामिक स्टडीज इंस्टिट्यूट के मानद निदेशक प्रो. हबीब असद खान ने डॉ. नदवी का परिचय कराते हुए उनके इस्लामी न्यायशास्त्र, हदीस और विशेष रूप से लैंगिक अध्ययन में वैश्विक योगदान को रेखांकित किया।

डॉ. शेख अकरम नदवी का व्याख्यान: मिथकों का खंडन और इतिहास की पुनर्खोज

डॉ. अकरम नदवी, जो कैम्ब्रिज स्थित इस्लामिक कॉलेज के पूर्व डीन और वर्तमान में अल-सलाम इंस्टीट्यूट के संस्थापक हैं, ने अपने व्याख्यान में इस्लाम में महिलाओं के संबंध में व्याप्त भ्रांतियों और रूढ़िवादी धारणाओं को तार्किक ढंग से खंडित किया।
उन्होंने अपनी बहुचर्चित 40 खंडों वाली महाग्रंथ “अल-मुहद्दिथात” का उल्लेख किया, जिसमें इस्लामी इतिहास में महिला विद्वानों के योगदान का अभूतपूर्व दस्तावेजीकरण किया गया है। उन्होंने ऐतिहासिक स्रोतों और हदीस साहित्य से उदाहरण प्रस्तुत करते हुए बताया कि इस्लामी सभ्यता में महिलाओं की सक्रिय भूमिका को जानबूझकर या अनजाने में इतिहास से विस्मृत कर दिया गया है।

डॉ. नदवी ने बलपूर्वक कहा,

“इस्लाम ने महिलाओं को शिक्षा, न्यायशास्त्र और सामाजिक नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका दी थी। आधुनिक समय में मिथ्या धारणाओं ने इस मूल भावना को धुंधला कर दिया है, जिसे फिर से स्पष्ट करना आवश्यक है।”

उनकी विद्वतापूर्ण प्रस्तुति ने उपस्थित शिक्षकों, छात्रों और विद्वानों को गहरी सोच में डाल दिया और हॉल में जीवंत संवाद का वातावरण उत्पन्न किया।

गहन चर्चा और सामूहिक संवाद

व्याख्यान के बाद हुए प्रश्नोत्तर सत्र में छात्रों और शिक्षकों ने डॉ. नदवी से महत्वपूर्ण और ज्वलंत सवाल पूछे। लैंगिक समानता, इस्लामिक इतिहास में महिलाओं की भूमिका और समकालीन समाज में उनकी स्थिति जैसे विषयों पर खुलकर चर्चा हुई। डॉ. नदवी ने हर प्रश्न का शांति, गंभीरता और ऐतिहासिक प्रमाणों के साथ उत्तर दिया, जिससे सत्र अत्यंत समृद्ध और प्रेरणादायक बन गया।

विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति और प्रेरणादायक संदेश

कार्यक्रम की गरिमा को बढ़ाते हुए विश्वविद्यालय के अनेक वरिष्ठ प्रोफेसर और संकाय सदस्य उपस्थित रहे, जिनमें प्रमुख रूप से प्रो. मोहम्मद मुस्लिम खान (डीन, सामाजिक विज्ञान), प्रो. इक्तिदार खान (डीन, मानविकी और भाषा), और प्रो. कौसर मजहरी शामिल रहे।
समापन सत्र में दार्शनिक प्रो. मजहर स्टूडियो ने अध्यक्षीय भाषण प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने मुस्लिम समाज में महिलाओं के सशक्तिकरण की आवश्यकता और उनके योगदान के सम्मान पर बल दिया।

स्वयंसेवकों की अहम भूमिका और आयोजन का समापन

सरोजिनी नायडू महिला अध्ययन केंद्र की डॉ. तरन्नुम ने पूरे कार्यक्रम का संयोजन और संचालन बखूबी किया। कार्यक्रम के सफल आयोजन में एमए जेंडर स्टडीज के विद्यार्थियों – वैभव, जोयबा, गार्गी मिश्रा, शुभांगी, रियाह कमर और फातिमा जोहरा – ने उत्साहपूर्वक सहयोग किया।
समापन के अवसर पर एमए जेंडर स्टडीज की छात्रा गार्गी मिश्रा द्वारा डॉ. नदवी को प्रमाण पत्र भेंट किया गया।

प्रो. निशात जैदी ने अपने धन्यवाद ज्ञापन में कहा,

“डॉ. नदवी का व्याख्यान मिथकों को चुनौती देने और संवाद को बढ़ावा देने का एक साहसिक और प्रेरणादायक प्रयास है। उनकी विचारधारा हमें परंपरा और आधुनिकता के बीच एक रचनात्मक पुल बनाने के लिए प्रेरित करती है।”

समापन विचार

यह व्याख्यान केवल एक अकादमिक चर्चा नहीं था, बल्कि यह जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रगतिशील शैक्षणिक वातावरण का प्रमाण भी था, जो संवाद, आलोचनात्मक सोच और ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन को प्रोत्साहित करता है। डॉ. नदवी के विचारों ने उपस्थित सभी लोगों को इस्लाम में महिलाओं की भूमिका पर नए दृष्टिकोण से सोचने और मिथकों से परे जाकर सच्चाई को स्वीकारने के लिए प्रेरित किया।

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