डाॅ अल-इस्सा का भारत दौराः हवा में कई सवाल
मुस्लिम नाउ खास
मुस्लिम वल्र्ड लीग के प्रमुख मोहम्मद बिन अब्दुलकरीम अल-इस्सा एक हफ्ते के भारत दौरे पर हैं. इनके भारत भ्रमण से कई तरह के सवाल उठ खड़े हुए हैं. एक अहम सवाल तो यही है कि सउदी अरब के एक गैर सरकारी संगठन मुस्लिम वल्र्ड लीग के मुखिया को सरकारी स्तर पर इतना महत्व क्यों दिया जा रहा है ? दूसरा अहम सवाल यह है कि क्या सेना-पुलिस के साए में शांति, सांप्रदायिक सौहार्द का पौधा़ वटवृक्ष का रूप ले सकता है ? इसके अलावा एक अतिमहत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि क्या भारतीय मुसलमनों ने देश-दुनिया में फैले इस्लाम के बेहतर नुमाइंदों से अपना संबंध विच्छेद कर लिया है, इसलिए अब ऐसे लोग ‘सरकारी मेहमान’ बनाकर बुलाए जा रहे हैं ?
एक जमाना था जब आलम-ए-इस्लाम के रहनुमा दुनिया भर से हिंदुस्तान आया करते थे. खुले में सभाएं होती थीं, जिसमें मुस्लिम और दूसरे तबके शिरकत किया करते थे. पिछले एक दशक से इंटरनेशनल इस्लामिक कान्फ्रेंस भारत में बंद सा हो गया है. उनके भारत आने से यहां के मुसलमानों को एक तरह से खुद के मजबूत होने का अहसास होता था. ऐसे आयोजन के बंद होने से यह महसूस करने का अवसर खत्म हो चुका है.
पिछले एक दशक से भारतीय हिंदुस्तानियांे ने जिस मुददों और मसलों के कारण मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना झेली है. उसमें भारतीय मुस्लिम रहनुमाआंे का रोल बेहद संदिग्ध रहा है. आजकल वही लोग एक खास खेमे के कार्यक्रमों में नजर आते हैं. आम मुसलमान ऐसे आयोजनों को संदेह की नजरों से देखता है.
अब यही लोग शांति और सद्भावना की बातें कर रहे हैं. ऐसे कार्यक्रमों का मूल आधार और पृष्ठभूमि ऐसी है कि अपने कार्यकाल में हिंसा के सहारे शांति का प्रयास करने वाले शांतिदूत बने घूम रहे हैं.
अल-इस्सा के भारत भ्रमण के दौरान भी यही सब कुछ देखने को मिल रहा है. इससे पहले इंडोनेशिया के एक कार्यक्रम में यह नजारा दुनिया ने देखा था. मजे की बात है कि ओआईसी यानी इस्लामिक देशों के संगठन का प्रमुख सदस्य होने के बावजूद अल-इस्सा ने भारत भ्रमण के दौरान अब तक उन मुददों को उठाने की तनिक भी कोशिश नहीं की है, जिसको लेकर ओआईसी आगे-बगाहे बहुत तरह की बातें किया करता है. चूंकि अल-इस्सा और मुस्लिम वल्र्ड लीग को सउदी सरकार का समर्थन प्राप्त है, इसलिए भारत भ्रमण के दौरान हिंदुस्तानी मुसलमानांे की कुछ उम्मीदें थीं, जो पिछले तीन दिनों में धुल सी गई हैं.
इसके उलट संघ की मानसिकता रखने वालों की सभा में मुस्लिम वर्ल्ड लीग के प्रमुख मोहम्मद बिन अब्दुलकरीम अल-इस्सा ने भारत की तारीफ के कसीदे तो खूब पढ़े, पर थोड़ा भी यह एहसास नहीं कराया कि भारतीय मुसलमानों की शिकायतें दूर होनी चाहिए.
बुधवार को ग्लोबल फाउंडेशन फॉर सिविलाइजेशनल हार्मनी (इंडिया) के सहयोग से आयोजित एक कार्यक्रम मंे कहा कि उन्हें अपनी भारत यात्रा के दौरान भारत के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बौद्धिक नेताओं के साथ आध्यात्मिक नेताओं से मिलकर खुशी हुई.
भारतीय दर्शन और परंपरा के संदर्भ में अल-इस्सा ने कहा, मैं तहे दिल से भारतीय लोकतंत्र को सलाम करता हूं. मैं भारत के संविधान को सलाम करता हूं. मैं भारतीय परंपरा को सलाम करता हूं जिसने दुनिया को सद्भावना सिखाई.”
उन्होंने आगे धार्मिक नेताओं को सलाह देते हुए कहा कि अगली पीढ़ी की रक्षा और मार्गदर्शन करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि जब भी दोनों के बीच संवाद की कमी होती है तो गलतफहमियां और समस्याएं पैदा हो जाती हैं. इसलिए यह जरूरी है कि बातचीत के लिए एक पुल बनाया जाए. सभ्यतागत टकराव को रोकने के लिए, हमें अगली पीढ़ी को बचपन से ही सुरक्षित रखने और मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है.
अल-इस्सा, जो एक इस्लामी विद्वान और वैश्विक मामलों में प्रसिद्ध व्यक्ति हैं, ने सभ्यताओं के टकराव और धार्मिक घृणा के बारे में कहानियों के खिलाफ खड़े होने की अपील की.उन्होंने कहा, हमें धार्मिक संघर्ष के खिलाफ खड़ा होना चाहिए ताकि कट्टरवाद फिर से उभर न सके.
उन्होंने आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले संगठनों पर कटाक्ष करते हुए कहा, “गलतफहमियों, नफरत के सिद्धांतों और गलत धारणाओं ने कट्टरपंथ से आतंकवाद तक की राह को तेज कर दिया है. सत्ता पर कब्जा जमाने के लिए, कई नेताओं ने अपना नियंत्रण और प्रासंगिकता सुनिश्चित करने के लिए नफरत भरी कहानियां इस्तेमाल की हैं.”
उन्होंने कहा, कुछ संगठन हैं जो गलत विचारों को बढ़ावा दे रहे हैं. जब मैंने यहां (भारत) धार्मिक नेताओं को देखा और उनसे मुलाकात की, तो उन्होंने मुझे बातचीत और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के बारे में बात करते हुए एक अलग तस्वीर दिखाइ.मुस्लिम वर्ल्ड लीग प्रमुख ने कुछ धार्मिक नेताओं के गलत कामों पर भी ध्यान दिलाया, जो शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की राह का रोड़ा हैं.
उन्होंने कहा, धार्मिक नेता आज…समझदारी को बढ़ावा देने के लिए काम नहीं कर रहे हैं. कुछ संगठनों, भारतीय संस्थानों और नेताओं के विपरीत, जिनसे मैं मिला, उन्होंने अपना प्रभुत्व जताने के बजाय शांति, सहिष्णुता और समझ के बारे में बात की.
हालांकि, ऐसे मौके पर अल-इस्सा को यह सवाल जरूर करना चाहिए था कि पिछले तीन दिनों से बार-बार एक तरह के मुस्लिम चेहरे क्यों दिख रहे हैं ? इसके अलावा अल-इस्सा पूरा होमवर्क कर भारत आए हुए होते तो उनको इन सवालों का जवाब मिल जाता.