ईद का अर्थशास्त्र: मुस्लिम कारोबार के बहिष्कार से पहले जानिए एक माह की 20 लाख करोड़ की इकोनॉमी का सच
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो | विशेष रिपोर्ट
पहलगाम आतंकी हमले के बाद देश में एक बार फिर कुछ समूहों द्वारा मुस्लिम व्यापारियों के बहिष्कार की आवाज़ें उठने लगी हैं। बहिष्कार की यह मुहिम न केवल सामाजिक सौहार्द्र को चोट पहुंचा रही है, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी इसका बड़ा असर पड़ सकता है। ईद जैसे त्योहार पर मुसलमानों की आर्थिक गतिविधियां किसी भी कमजोर करती अर्थव्यवस्था के लिए “ऑक्सीजन” का काम करती हैं। यदि मुसलमानों ने केवल अपने समुदाय के साथ ही कारोबार करना शुरू कर दिया, तो सबसे बड़ा झटका उन व्यापारियों और उद्योगों को लगेगा जो गैर-मुस्लिम हैं और जिनके हाथों में देश के अधिकांश व्यापारिक तंत्र हैं।
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— सचिन यादव 🚩 (@truth_season1) May 2, 2025
ईद: धार्मिक महत्व के साथ आर्थिक शक्ति
ईद भारत में मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह दिन जहां धार्मिक और सामाजिक रूप से विशेष महत्व रखता है, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों को भी जबरदस्त रफ़्तार देता है।

एक नज़र ईद के आर्थिक फायदों पर:
- ई-कॉमर्स और टूरिज्म सेक्टर:
बिहार बिरयानी यूट्यूब चैनल के आंकड़ों के मुताबिक रमज़ान-ईद के एक महीने में ई-कॉमर्स और टूरिज्म से ₹1 लाख करोड़ से अधिक का लेन-देन होता है। - जकात-फितरा दान:
अनुमानतः मुसलमान इस दौरान ₹20 लाख करोड़ का जकात-फितरा दान करते हैं, जो समाज के निर्धन वर्ग के लिए संजीवनी साबित होता है। - जीएसटी संग्रह में उछाल:
इस वर्ष मार्च महीने में पीआईबी द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, जीएसटी कलेक्शन में भारी वृद्धि देखी गई। मुस्लिम बहुल प्रदेशों में जीएसटी कलेक्शन में 25% तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
विभिन्न क्षेत्रों पर ईद का आर्थिक प्रभाव
🛍️ फैशन और परिधान उद्योग
ईद के दौरान नए कपड़े पहनने और उपहार देने की परंपरा के चलते परिधान उद्योग में 30-40% तक की वृद्धि देखी गई है।
प्रमुख ब्रांड, जैसे:
- ABRFL
- FabIndia
- Manyavar
त्योहारी सीज़न में बिक्री में बेहतरी दर्ज करते हैं, जिससे हजारों छोटे व बड़े खुदरा व्यापारी लाभान्वित होते हैं।
🍛 खाद्य और किराना क्षेत्र
रमज़ान और ईद के दौरान खाद्य सामग्री की मांग में जबरदस्त उछाल आता है।
- चावल, मसाले, मांस, मिठाइयों के ऑर्डर में 25-30% तक की वृद्धि।
- BigBasket और Grofers जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भी बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की नियुक्ति करते हैं।
💍 सोना और आभूषण उद्योग
ईद को सोना-चांदी खरीदने का शुभ अवसर माना जाता है, जिससे:
- तनीष्क
- कल्याण ज्वैलर्स
जैसी कंपनियों में 20-30% तक की बिक्री वृद्धि देखी जाती है।
✈️ पर्यटन और आतिथ्य उद्योग
ईद के दिन तीर्थ स्थलों और विभिन्न शहरों में पर्यटकों की आमद बढ़ती है।
- इंटरग्लोब एविएशन (IndiGo)
- इंडियन होटल्स कंपनी (Taj Hotels)
इन कंपनियों ने ईद के दौरान 10-15% तक लाभ में वृद्धि दर्ज की है।
👨💼 अस्थायी रोजगार के अवसर
व्यापारिक गतिविधियों की वृद्धि के चलते अस्थायी रोज़गार के अवसर पैदा होते हैं।
कई कंपनियां, जैसे:
- Reliance Retail
- Flipkart
- Shoppers Stop
ईद के दौरान अतिरिक्त स्टाफ नियुक्त करती हैं ताकि ग्राहकों की बढ़ती संख्या को संभाला जा सके।
💳 वित्तीय लेन-देन और जीएसटी वृद्धि
ईद के मौसम में:
- नकद निकासी
- ऑनलाइन शॉपिंग
- डिजिटल ट्रांजैक्शन
में वृद्धि होती है, जिससे जीएसटी राजस्व में साफ़-साफ़ उछाल दिखता है।

मार्च 2024 में जीएसटी संग्रह के आंकड़े:
- ₹1.78 लाख करोड़: कुल मासिक जीएसटी संग्रह (11.5% की वार्षिक वृद्धि)
- ₹20.18 लाख करोड़: वार्षिक सकल जीएसटी संग्रह (11.7% की वृद्धि)
- ₹1.65 लाख करोड़: रिफंड के बाद का संग्रह (18.4% की वृद्धि)
राज्यवार जीएसटी संग्रह में उछाल
मुस्लिम बहुल राज्यों में जीएसटी डेटा:
- जम्मू-कश्मीर: 26%
- महाराष्ट्र: 22%
- उत्तर प्रदेश: 19%
- कर्नाटक: 26%
- तेलंगाना: 12%
यह आंकड़े साबित करते हैं कि ईद केवल धार्मिक त्योहार ही नहीं, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण पिलर भी है।

मुस्लिम व्यापारियों का बहिष्कार: किसके हाथ क्या लगेगा?
यदि मुसलमान केवल अपने समुदाय के साथ कारोबार करने लगेंगे तो:
- फ़ैशन, खाद्य, ज्वैलरी और ई-कॉमर्स जैसे कई सेक्टरों को बड़ा नुकसान होगा।
- सरकार के राजस्व संग्रह में गिरावट आएगी।
- हजारों अस्थायी व स्थायी रोजगार प्रभावित होंगे।
- उपभोक्ता मांग में गिरावट से आर्थिक सूखे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
त्योहार के दौरान मुस्लिम समुदाय जिस तरह से आर्थिक गतिविधियों में योगदान देता है, वह न केवल उपभोक्ता बाजार को संबल प्रदान करता है, बल्कि छोटे-बड़े सभी उद्योगों के लिए भी महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
ईद का अर्थशास्त्र यह स्पष्ट करता है कि बहिष्कार की अपीलें केवल सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ाती हैं और अंततः आर्थिक नुकसान सभी के हिस्से में आता है। त्योहारों का उद्देश्य जहां सामाजिक सौहार्द्र बढ़ाना होता है, वहीं उनका आर्थिक आयाम देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूती प्रदान करता है। इसलिए, मिल-जुलकर त्योहार मनाना केवल सांस्कृतिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी ज़रूरी है।
📌 अतिरिक्त स्रोत:
[बिहार बिरयानी यूट्यूब चैनल]
[StockKnocks.com – व्यापार विश्लेषण मंच]