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वक्फ संशोधन विधेयक पर ईद मिलन समारोह बना बहस का मंच, RSS नेताओं ने बताया ‘मुस्लिम हित में’

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली

वक्फ संशोधन विधेयक के दोनों सदनों में पारित होने और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर के बाद कानून का रूप लेने के साथ ही देशभर में मुस्लिम समुदाय के बीच गहरी बेचैनी और असंतोष देखने को मिल रहा है। हालांकि, इस कानून के समर्थन में एक नया मोर्चा खुलता नज़र आया जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के वरिष्ठ नेताओं और उनके मुस्लिम संगठन सहयोगियों ने इसे ‘मुस्लिम समाज के लिए ऐतिहासिक और सुधारवादी कदम’ बताया।


🕌 ईद मिलन समारोह में वक्फ संशोधन पर खुलकर सामने आया RSS एजेंडा

दिल्ली में आयोजित मुस्लिम राष्ट्रीय मंच द्वारा आयोजित ईद मिलन समारोह के बहाने, वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर एक बड़ा राजनीतिक-सामाजिक संदेश देने की कोशिश की गई। कार्यक्रम में RSS नेता इंद्रेश कुमार, आरएसएस के संपर्क प्रमुख रामलाल, और जेपीसी के चेयरमैन जगदंबिका पाल समेत कई प्रमुख चेहरे मंच पर मौजूद रहे।

इस आयोजन में वक्फ संशोधन कानून के समर्थन में देशभर से आए मुस्लिम नेताओं, स्कॉलर्स, धर्मगुरुओं और बुद्धिजीवियों ने इसे “परिवर्तनकारी कदम” करार देते हुए समर्थन का ऐलान किया।


🔍 RSS और केंद्र सरकार की रणनीति को लेकर उठे सवाल

हालांकि, इस पूरे कार्यक्रम को मुस्लिम समाज के एक बड़े हिस्से ने आरएसएस के एजेंडे को लागू करने की एक रणनीतिक कोशिश के रूप में देखा। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पहले ही इस कानून का खुलकर विरोध कर चुका है, लेकिन अब इसके खिलाफ उठ रही आवाज़ों को दबाने या उनकी धार कुंद करने के लिए समानांतर विमर्श खड़ा किया जा रहा है।

विश्लेषकों का मानना है कि “पसमांदा-मुख्यधारा, सूफी-सलाफी, शिया-सुन्नी” के सामाजिक विभाजन को आधार बनाकर अब मुसलमानों के भीतर वक्फ कानून जैसे संवेदनशील विषय पर भी ध्रुवीकरण किया जा रहा है।


🧾 कार्यक्रम में शामिल प्रमुख चेहरे

इस समारोह में शामिल प्रमुख शख्सियतों में शामिल रहे:

  • इंद्रेश कुमार, मार्गदर्शक, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच
  • जगदंबिका पाल, चेयरमैन, वक्फ संशोधन पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी)
  • रामलाल, संपर्क प्रमुख, आरएसएस
  • डॉ. शाहिद अख्तर, कार्यकारी अध्यक्ष, NCMEI
  • डॉ. शालिनी अली, राष्ट्रीय संयोजक, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच
  • डॉ. सलीम राज, चेयरमैन, छत्तीसगढ़ वक्फ बोर्ड
  • जाकिर हुसैन, चेयरमैन, हरियाणा वक्फ बोर्ड
  • अबु बकर नकवी, पूर्व मंत्री, राजस्थान
  • सूफी जियारत अली मलंग, सूफी खानकाह एसोसिएशन
  • शाहिद सईद, राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी, मुस्लिम मंच
  • साथ ही बिलाल उर रहमान, गिरीश जुयाल, फैज खान, रेशमा हुसैन, इमरान चौधरी और अन्य समाजसेवी

📣 जेपीसी चेयरमैन का दावा – “पूरा देश समर्थन में है”

जेपीसी अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने सभा को संबोधित करते हुए कहा:

“ऐसा लग रहा है मानो पूरा देश वक्फ संशोधन विधेयक पर अपनी मुहर लगाने यहाँ आया है। यह कानून वर्षों से जारी भ्रष्टाचार, मनमानी और पारदर्शिता की कमी को दूर करेगा।”

उन्होंने यह भी कहा कि यह कानून मुस्लिम समाज के वंचित तबकों के लिए न्याय और हक सुनिश्चित करने की दिशा में एक क्रांतिकारी प्रयास है।


🗣️ इंद्रेश कुमार का ऐलान – देशभर में चलाया जाएगा प्रचार अभियान

RSS नेता इंद्रेश कुमार ने कहा कि वक्फ कानून को लेकर जो भ्रांतियाँ फैलाई जा रही हैं, उन्हें मिटाने के लिए देशभर में 100 से अधिक प्रेस कॉन्फ्रेंस और 500 से ज्यादा जन जागरूकता गोष्ठियों का आयोजन किया जाएगा।

उन्होंने वक्फ संपत्तियों के कुप्रबंधन की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह संशोधन “आत्मसम्मान, न्याय और बराबरी” को बढ़ावा देगा।


🧭 रामलाल का दृष्टिकोण – ‘सबका साथ, सबका विश्वास’ की दिशा में कदम

आरएसएस के संपर्क प्रमुख रामलाल ने इसे सिर्फ एक कानूनी बदलाव नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक सुधार बताया। उन्होंने कहा:

“यह कानून भारतीय समाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देगा और ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के मंत्र को साकार करेगा।”


⚖️ क्या यह कानून वाकई मुस्लिम हित में है या एक रणनीतिक एजेंडा?

जहां एक ओर सरकार और संघ परिवार इस कानून को मुस्लिम समुदाय के हित में बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मुस्लिम संगठनों और विपक्ष का आरोप है कि यह एक राजनीतिक एजेंडा है, जो वक्फ बोर्डों की स्वायत्तता पर हमला, और धार्मिक संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण का रास्ता खोलता है।


📌 निष्कर्ष

वक्फ संशोधन कानून को लेकर देश में दो ध्रुवीय विचारधाराएं उभर रही हैं — एक पक्ष इसे सुधार और पारदर्शिता के लिए जरूरी कदम मानता है, तो दूसरा इसे धार्मिक स्वतंत्रता और मुस्लिम संस्थाओं की स्वायत्तता पर खतरा बता रहा है।

ईद मिलन जैसे धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजनों का राजनीतिकरण और उसमें सरकारी व संघ परिवार के प्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी यह संकेत देती है कि यह मुद्दा आने वाले दिनों में राजनीतिक विमर्श का केंद्रीय विषय बन सकता है।

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