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ईद की नमाज खुले में या मस्जिद में? बहस फिर गरमाई

मुस्लि नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

‘‘ मुसलमानों ने क्या हरकतें शुरू कर दीं. ईद की नमाज गली, मुहल्ले में पढ़ी जाने लगी है. यह पैगंबर मोहम्मद साहब के आदेशों की अवहेना है.’’ यह कहना है पंजाब के शाही इमाम मोहम्मद उस्मान रहमानी लुधियानवी का.

उनके मुताबिक, अल्लाह ने हमें जुमा क्यों दिया, ईद क्यों दी, इमाम क्यों दिया, ताकि हमारी शान बरकरार रहे. मगर हमने गली मुहल्ले में ईद की नमाज पढ़नी शुरू कर दी.’’ उन्हांेने आगे कहा-‘‘ईद की नमाज अपने शहर-कस्बे की जामा मजिस्द, ईदगाहों में पढ़ें. एक दूसरे से मिलें. एक दूसरे का चेहरा देखकर खुश हों. इससे मुसलमानों में एकजुटता बढ़ती है. शान कायम रहती है. मुसलमानों की इज्जत बनी रहती है.’’ इमाम साहब का यह वीडियो अभी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

दरअसल, आज के दौर में जब मस्जिदों में नामाजियों की भीड़ बढ़ने पर बहुत सारे लोगों को सड़कांे पर नमाज पढ़नी पड़ती है, जिसपर अकसर विवाद भी हो जाता है. ऐसे में शाही इमाम का यह कहना कि शहर की जामा मस्जिद या ईदगाह में नमाज पढ़ें, निश्चित ही वहां शहर भर की भीड़ इकट्ठी होने पर मुस्लिम विरोधियांे को दुष्प्रचार का एक बड़ा मुददा हाथ लग जाएगा.

ऐसे में एक साथ कई सवाल उठते हैं. एक तो यही, क्या वास्तव में गली-मुहल्ले में नमाज पढ़ना अल्लाह और अल्लाह के ररूल पैगंबर मोहम्मद के आदेशों की अवहेलना है ? ईद और जुमा की नमाज को लेकर इस्लाम क्या कहता है ? दूसरा, मस्जिदों में उमड़ने वाली भारी भीड़ रोकने के लिए अब छोटी, छोटी मस्जिदों में कई-कई बार ईद और जुमे की नमाज अदा की जाती है, ताकि सड़कों पर नमाजियों को इकट्ठा होने का मौका न मिले. साथ ही किसी तरह की समस्या खड़ा किए बिना इसे शांतिपूर्वक समाप्त कराया जा सके.

पहले बात करते हैं जुमे और ईद नमाज को लेकर इस्लाम में क्या कहा गया है ? कुरान के हवाले से एक लेख में कहा गया है-‘‘ ईद सलाह साल में दो बार पढ़ी जाने वाली एक विशेष नमाज है. एक बार रमजान के अंत में ईद-उल-फितर मनाते समय और दूसरी बार ईद-उल-अधा मनाते समय. इस विशेष नमाज को करना सामान्य नमाजों से थोड़ा अलग है. इसमें दो रकअत होते हैं और इसे किसी मस्जिद के बजाय किसी बड़े मैदान जैसे खुले स्थान पर पढ़ी जाती है. हालांकि इसे घर पर भी अदा कर सकते हंै.’’ एक अन्य रिपोर्ट मंे बताया गया है- ‘’ईद की नमाज की दो रकअत अदा करने के लिए परिवार के साथ तैयारियां की जाती हैं.’’

ईद की नमाज क्या है?

इस्लामिस्टि डाॅट काॅम के एक लेख के अनुसार,ईद की नमाज वह है जिसमें इमाम उपस्थित होते हैं और लोगों को दो रकअत नमाज पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं.हजरत उमर ने कहा,‘‘ईद-उल-फितर की नमाज दो रकअत है और ईद-उल-अजहा की नमाज दो रकअत है. जो झूठ गढ़ता है वह नष्ट हो जाता है.” (अल-नासाई, 1420 और इब्न खुजैमा द्वारा वर्णित.

सहीह अल-नासाई में अल-अल्बानी द्वारा सहीह के रूप में वर्गीकृत किया गया है.अबू सईद ने कहा, ‘‘ अल्लाह के दूत (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ईद-उल-फितर और ईद-उल-अजहा के दिन नमाज स्थल पर आते थे, और सबसे पहले जो काम करते थे वह था दुआ करने के लिए प्रोत्साहित करना. अल-बुखारी द्वारा वर्णित, 956)

ईद की नमाज में क्या पढ़ें?

पैगंबर (अल्लाह की शांति और आशीर्वाद उन पर हो) दो ईद के दौरान सूरत काफ और सूरत अल-कमर पढ़ा करते थे. या अगर वह चाहे तो पहली रकअत में सूरत अल-अला और दूसरी में सूरत अल-गशिया पढ़ सकता है, क्योंकि यह वर्णित है कि पैगंबर (अल्लाह की शांति और आशीर्वाद उस पर हो) अल- पढ़ते थे. ईद की नमाज में आला और अल-गशियाह.इमाम को इन सूरहों को पढ़कर सुन्नत को पुनर्जीवित करना चाहिए ताकि मुसलमान सुन्नत से परिचित हो जाएं.

ईद की नमाज अदा करने का तरीका

सारांश

पहली रकअत में उसे तक्बीरत अल-इहराम (नमाज शुरू करने के लिए अल्लाहु अकबर कहना चाहिए, जिसके बाद उसे आयशा (अल्लाह उस पर प्रसन्न हो सकता है) की हदीस के कारण, छह या सात और तकबीरें कहना चाहिए ), अल-फितर और अल-अधा की तकबीर पहली रकअत में सात तकबीर और दूसरी में पांच तकबीर है, रुकू की तकबीर के अलावा. (अबू दाऊद द्वारा वर्णित और इरवा अल-गलील, 639 में अल-अल्बानी द्वारा सहीह के रूप में वर्गीकृत.).

फिर अल-फातिहा पढ़ना चाहिए. पहली रकअत में सूरत काफ पढ़ना चाहिए.दूसरी रकअत में उसे तक्बीर कहते हुए खड़ा होना चाहिए. जब वह पूरी तरह से खड़ा हो जाए तो उसे पांच बार तकबीर कहना चाहिए, और सूरत अल-फातिहा फिर सूरत अल-कमर पढ़ना चाहिए.

ईद की नमाज को लेकर समस्या, हल क्या है ?

हाल के वर्षों में हिंदूवादी संगठनों द्वारा खुले में नमाज पढ़ने को लेकर चलाए गए आंदोलन का असर है कि आज देश के अधिकांश प्रदेशों में खुले मंे जुमे, ईद की नमाज पढ़ने पर बंदी लगा दी गई है.

चूंकि देश की आबादी कई गुणा बढ़ गई और जनसंख्या में हम चीन को पीट चुके हैं, ऐसे में समस्या का हल ढूंढते समय यह हमेशा याद रखना चाहिए कि पूरे हिंदुस्तन मंे मुसलमानों के अनुपात से मस्जिदों की संख्या बेहद कम है. नई मस्जिदें न के बराबर बनाई जा रही हैं. खासकर बड़े शहर में. ऐसे शहरों में जमीन के रेट आसमान छू रहे हैं. ऐसे में अब छोटी मस्जिदों में ईद और जुमे की नमाज पढ़ना मजबूरी सी बन गई है. कई मस्जिदों में इस डर से ईद-जुमे की कई-कई जमातें खड़ी होती हैं ताकि नमाजियों की भीड़ मस्जिद के बाहर सड़कों पर न आ जाए. रही बात पंजाब के शाही इमाम के तकरीर की तो बड़ी नमाजों से पहले खुले में जमात खड़ी करने की अनुमति जिला प्रशासन से अवश्य ले लेनी चाहिए. ऐसे में कल को कोई उत्पात करेगा तो इसकी पूरी जिम्मेदारी पर होगी.

ईद की नमाज को लेकर मुद्दे:

शाही इमाम का बयान: पंजाब के शाही इमाम मोहम्मद उस्मान रहमानी लुधियानवी का कहना है कि गली-मुहल्ले में ईद की नमाज पढ़ना पैगंबर मोहम्मद साहब के आदेशों की अवहेलना है.

इस्लाम में ईद की नमाज:

  • साल में दो बार (ईद-उल-फितर और ईद-उल-अधा)
  • दो रकअत
  • खुले स्थान पर (मस्जिद के बजाय)
  • घर पर भी अदा की जा सकती है
  • ईद की नमाज का तरीका:
  • तकबीरत अल-इहराम
  • छह या सात तकबीरें (पहली रकअत में)
  • सूरत अल-फातिहा
  • सूरत काफ (पहली रकअत में)
  • पांच तकबीरें (दूसरी रकअत में)
  • सूरत अल-कमर (दूसरी रकअत में)

समस्याएं:

  • खुले में नमाज पढ़ने पर बंदी
  • मस्जिदों की संख्या कम
  • नई मस्जिदों का निर्माण कम
  • जमीन के रेट ऊंचे

हल:

  • छोटी मस्जिदों में कई जमातें
  • खुले में जमात खड़ी करने के लिए प्रशासन से अनुमति
  • नमाजियों की भीड़ को नियंत्रित करना
  • शांति बनाए रखना

अन्य महत्वपूर्ण बातें:

  • यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से एकत्रित की गई है.
  • ईद की नमाज के बारे में अधिक जानकारी के लिए, आप किसी योग्य मौलवी से संपर्क कर सकते हैं.