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इलेक्ट्रोलर बांड विवाद: पुलवामा के बाद पाकिस्तानी कंपनी का चंदा, क्या है सच?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली

ऐन लोकसभा चुनाव 2024 से पहले चुनावी बांड के जरिए सियासी पार्टियों द्वारा मोटा चंदा वसूलने का मामला एक बड़े विवाद का रूप ले चुका है. इस मामले में चुनाव आयोग और स्टेट बैंक आॅफ इंडिया की भूमिका संदेह के घेरे में तो आई ही है, राजनीतिक दलों की कलई भी खुल रही है. हद यह कि देश जब पुलवामा में पाकिस्तान परस्त आतंकवादियांे के एक आत्मघाती हमले में 40 जवानों की शहादत का शोक मना रहा था, तब देश की एक बड़ी सियासी पार्टी ने दुश्मन देश की एक कंपनी से चंदे के रूप में मोटी रकम वसूली थी.

चुनाव आयोग ने एसबीआई द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जमा किए गए चुनावी बांड का पूरा डेटा अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया. इस डेटा से कई महत्वपूर्ण और आश्चर्यजनक जानकारियां सामने आई हैं. आंकड़ों के मुताबिक, 2018 में योजना शुरू होने के बाद से एसबीआई ने 30 किस्तों में 16,518 करोड़ रुपये के चुनावी बांड की जानकारी जारी की है.

बताया गया है कि 1 अप्रैल, 2019 से 15 फरवरी, 2024 के बीच 22,217 बांड खरीदे गए, जिनकी कीमत 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये थी. इस अवधि के दौरान भुनाए गए बांडों की कुल संख्या 22030 है.

चुनावी बॉन्ड के आंकड़ों से चैंकाने वाली जानकारी सामने आई है. पाकिस्तान की एक बिजली कंपनी ने भी भारतीय राजनीतिक दलों को चंदा दिया है. यह पाकिस्तानी कंपनी बिजली उत्पादक के रूप में काम करती है और भारतीय राजनीतिक दलों को चुनावी चंदा देती है. कंपनी का नाम हब पावर कंपनी लिमिटेड है, जो पाकिस्तान की सबसे बड़ी बिजली उत्पादन कंपनी है. इस पाकिस्तानी कंपनी ने 18 अप्रैल 2019 को राजनीतिक दलों को लगभग 95 लाख रुपये का चंदा दिया. सोशल मीडिया पर चल रही खबरों अनुसार, पाकिस्तान की इस पाॅवर कंपनी ने पुलवामा की घटना के दो महीने के बाद देश की एक अखिल भारतीय पार्टी को चंदे के रूप में मोटी रकम उपलब्ध कराई थी. सोशल मीडिया पर उक्त पार्टी का नमा भी प्रचारित किया जा रहा है.

अब बात करते हैं उन कंपनियों की जिन्होंने देश के विभिन्न राजनीतिक दलों को फंड देने के लिए सबसे अधिक कीमत वाले चुनावी बांड खरीदे. चुनाव आयोग द्वारा अपनी वेबसाइट पर अपलोड की गई जानकारी के अनुसार, फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज और मेघा इंजीनियरिंग इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड अप्रैल 2019 से जनवरी 2024 तक शीर्ष पर हैं. इस कंपनी ने 1368 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे हैं. 966 करोड़ रुपये के फंड के साथ मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है, जहां से चुनावी बांड खरीदे गए हैं.

1,368 करोड़ रुपये के चुनावी बांड के कथित खरीदार दक्षिण भारतीय लॉटरी किंगपिन सैंटियागो मार्टिन हैं, जो फ्यूचर गेमिंग के मालिक हैं. फ्यूचर की वेबसाइट के मुताबिक, मार्टिन ने 13 साल की उम्र में लॉटरी का कारोबार शुरू किया था. इसके बाद वह देश भर में लॉटरी खरीदारों और विक्रेताओं का एक विशाल नेटवर्क विकसित करने में सक्षम हुए. दक्षिण में यह फर्म मार्टिन कर्नाटक द्वारा संचालित है. जबकि नॉर्थ ईस्ट में लोग इसे मार्टिन स्किम लॉटरी के नाम से जानते हैं.

बांध और बिजली परियोजनाएं बनाने वाली कंपनी मेघा इंजीनियरिंग इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड का स्वामित्व पीवी कृष्णा रेड्डी और पीपी रेड्डी के पास है. इसका मुख्य कार्यालय हैदराबाद में है. कंपनी सिंचाई, जल प्रबंधन, बिजली, हाइड्रोकार्बन, परिवहन, भवन और औद्योगिक बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में काम करती है. यह केंद्र और राज्य सरकारों के साथ पीपीपी (सार्वजनिक निजी भागीदारी) में अग्रणी है. फिलहाल कंपनी के प्रोजेक्ट देशभर के 18 से ज्यादा राज्यों में चल रहे हैं.

चुनावी बांड विवाद: मुख्य बिंदु

चुनाव आयोग ने एसबीआई द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जमा किए गए चुनावी बांड का पूरा डेटा अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है.
2018 में योजना शुरू होने के बाद से एसबीआई ने 30 किस्तों में 16,518 करोड़ रुपये के चुनावी बांड की जानकारी जारी की है.
पाकिस्तान की एक बिजली कंपनी हब पावर कंपनी लिमिटेड ने 18 अप्रैल 2019 को राजनीतिक दलों को लगभग 95 लाख रुपये का चंदा दिया.
फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज और मेघा इंजीनियरिंग इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने अप्रैल 2019 से जनवरी 2024 तक शीर्ष पर हैं.
फ्यूचर गेमिंग ने 1368 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे हैं, जबकि मेघा इंजीनियरिंग ने 966 करोड़ रुपये के फंड के साथ दूसरा स्थान हासिल किया है.
चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट पर दो अलग-अलग विवरण अपलोड किए हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि किस कंपनी या संस्था ने कौन सा चुनावी बांड खरीदा और किस पार्टी को फंड दिया.

अन्य महत्वपूर्ण जानकारी

चुनावी बांड विवाद में कई महत्वपूर्ण और आश्चर्यजनक जानकारियां सामने आई हैं.
चुनाव आयोग और एसबीआई की भूमिका संदेह के घेरे में है.
राजनीतिक दलों की कलई भी खुल रही है.
चुनाव आयोग को इस मामले की जांच करनी चाहिए और पारदर्शिता लाने के लिए कदम उठाने चाहिए.

सुझाव

चुनाव आयोग को चुनावी बांड योजना की समीक्षा करनी चाहिए और इसमें सुधार करना चाहिए.
चुनावी चंदे के लिए पारदर्शी और जवाबदेह प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए.
राजनीतिक दलों को चुनावी चंदे के लिए जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए.

चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट पर दो अलग-अलग विवरण अपलोड किए हैं.पहली पीडीएफ में 337 पेज हैं, जिसमें चुनावी बांड खरीदने वाली कंपनियों और संस्थानों के नाम हैं. इसमें खरीद की तारीख और राशि की जानकारी भी शामिल है. जबकि दूसरी पीडीएफ 426 पेज की है जिसमें राजनीतिक दलों के नाम, तारीख और संख्या का ब्योरा दिया गया है. हालाँकि, यह स्पष्ट नहीं है कि किस कंपनी या संस्था ने कौन सा चुनावी बांड खरीदा. दरअसल क्योंकि दी गई जानकारी में शामिल बॉन्ड नंबर की जानकारी नहीं दी गई है. इसमें यह भी नहीं बताया गया कि किस कंपनी ने किस पार्टी को फंड दिया.