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संघर्ष से दूर, केवल बयानबाजी और कोर्ट का सहारा ले रहे हैं मुस्लिम संगठन: वक्फ विधेयक विवाद

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

मसलों को हल कराने के लिए किस तरह के संघर्ष की जरूरत होती है, मुस्लिम संगठन शायद भूल गए, इसलिए सिवाए सोशल मीडिया पर बयानबाजी के और कोर्ट में जाने के, वे संघर्ष करने में पूरी तरह फेल हो चुके हैं. इसका ताजा उदाहरण है वक्त अधिनियम में लाए गए बदलाव को लेकर मुस्लिम संगठन द्वारा की जाने वाली प्रेस कान्फेंस.

इस मौके को तथाकथित मुस्लिम रहनुमाओं ने बारीकियां समझाने में ही गंवा दिया. पत्रकारों के बीच वे वही बातें कहते रहे, जो पिछले दस दिनों से मीडिया के फलोर पर घूम रही हैं. वक्फ के नए कानून को आने से रोकने के लिए वे कोर्ट में जाने के सिवाए और क्या करने वालें, मुस्लिम रहनुमाओं ने इसका बिल्कुल खुलासा नहीं किया.

यहां तक कि यह भी नहीं बताया गया कि वे जिला मैजिस्ट्रेट के माध्यम से राष्ट्रपति, पीएम तक अपनी बात पहुंचाएंगे. धरना-प्रदर्शन करेंगे. विरोध में जुलूस निकालेंगे. इससे भी बात नहीं बनी तो विपक्षी दलों से मुलाकात कर नए कानून के खिलाफ माहौल तैयार करेंगे. कौन सा प्रतिनिधिमंडल सरकार से मिलकर अपनी बात रखेगा, इसमें यह भी नहीं बताया गया.मजे की बात है कि मंच पर एक ऐसा शख्स मौजूद था जिसपर आरोप है कि वह उस व्यक्ति से मिला हुआ है जिसपर मुसलमानों में पसमांदा, सूफी, बोहरा आदि के नाम पर फूट डालने का आरोप है.

  • मुस्लिम संगठन संघर्ष की जरूरत को भूल गए हैं: मुस्लिम संगठन केवल सोशल मीडिया पर बयानबाजी और कोर्ट में जाने के अलावा संघर्ष करने में पूरी तरह से असफल हो चुके हैं.
  • वक्फ अधिनियम में बदलाव पर प्रेस कांफ्रेंस: वक्फ अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन को मुस्लिम संगठनों ने वक्फ संपत्तियों को हड़पने की साजिश बताया है और सरकार से इस विधेयक को वापस लेने की मांग की है.
  • गैर-मुस्लिमों की वक्फ बोर्ड में नियुक्ति: प्रस्तावित विधेयक में वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को अनिवार्य रूप से सदस्य बनाने का प्रस्ताव है, जिसे मुस्लिम संगठन संविधान के अनुच्छेद 26 के विपरीत मानते हैं.
  • सरकारी हस्तक्षेप का रास्ता साफ: विधेयक में कलेक्टर को वक्फ संपत्तियों पर फैसले का अधिकार दिया गया है, जिससे सरकारी हस्तक्षेप का खतरा बढ़ गया है.
  • संपत्तियों पर कब्जे का खतरा: अगर कोई संपत्ति वक्फ के रूप में पंजीकृत नहीं है, तो उस पर मुकदमे और अवैध कब्जे का खतरा बढ़ जाएगा.
  • धर्मनिरपेक्ष और विपक्षी पार्टियों से अपील: मुस्लिम संगठनों ने एनडीए और विपक्षी पार्टियों से अपील की है कि वे इस विधेयक को संसद में पारित न होने दें.
  • देशव्यापी आंदोलन की चेतावनी: अगर यह विधेयक संसद में पेश किया गया, तो बोर्ड देशव्यापी आंदोलन शुरू करेगा.
  • दरअसल, तथाकथित रहनुमाओं में अब सलाहियत नहीं बची किसी मुददे को लेकर संघर्ष करने की. देश को आजाद कराने में मुस्लिम रहनुमाओं का अहमल रोल था. मगर अब इनका सारा कुछ ‘हुजरे’ से ही चलता है. संघर्ष नहीं कर सकते.

सोशल मीडिया पर बयान जारी कर सकते हैं, पर मुददे पर मीडिया को बुलाकर अपनी बात नहीं रख सकते. पिछले दस साल में ऐसे कई कानून आ चुके हैं, जो मुसलमानों को सीधे-सीधे प्रभावित करते हैं. मगर ऐसे कानून को बनने से रोकने के लिए किसानों, नौजवानों की तरह कोई कार्रवाई नहीं की गई. मुस्लिम रहनुमाओं के रवैए को देखकर लगता है कि इस बार भी बयान जारी करने और कोर्ट में जाने से ज्यादा ये कुछ और नहीं करने वाले.

वक्फ अधिनियम में आने वाले बदलाव को लेकर किए गए प्रेस कान्फ्रेंस में कहा गया है-ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और सभी प्रमुख मुस्लिम संगठन और मसलक लोकसभा में पेश किए गए नए प्रस्तावित वक्फ़ संशोधन विधेयक को वक्फ़ के संरक्षण और पारदर्शिता के नाम पर वक्फ़ संपत्तियों को तहस-नहस करने और हड़पने की एक घिनौनी साज़िश करार देते हैं और सरकार से मांग करते हैं कि वह इस हरकत से बाज़ आए और विधेयक को वापस ले.

प्रस्तावित विधेयक में न केवल वक्फ़ की परिभाषा, मुतवल्ली की हैसियत और वक्फ़ बोर्डों के अधिकारों के साथ छेड़छाड़ की गई है, बल्कि सेंट्रल वक्फ़ काउंसिल और वक्फ़ बोर्ड के सदस्यों की संख्या में वृद्धि के नाम पर पहली बार इसमें गैर-मुस्लिमों को भी अनिवार्य रूप से सदस्य बनाने का प्रस्ताव लाया गया है. सेंट्रल वक्फ़ काउंसिल में पहले एक गैर-मुस्लिम सदस्य रखा जा सकता था, लेकिन प्रस्तावित विधेयक में यह संख्या 13 तक हो सकती है, जिसमें दो सदस्य अनिवार्य होंगे.

इसी तरह वक्फ़ बोर्ड में पहले सिर्फ अध्यक्ष गैर-मुस्लिम हो सकता था, लेकिन प्रस्तावित विधेयक में यह संख्या 7 तक हो सकती है, जिसमें दो सदस्य अनिवार्य होंगे. यह प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद 26 के विपरीत है, जो अल्पसंख्यकों को यह अधिकार देता है कि वे अपने धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थानों की स्थापना कर सकते हैं और उन्हें अपने तरीके से चला सकते हैं.

यहां यह बात भी बताना आवश्यक है कि देश के कई राज्यों में हिंदुओं के धार्मिक ट्रस्टों के प्रबंधन के लिए यह अनिवार्य है कि उनके सदस्य और ज़िम्मेदार लोग हिंदू धर्म का पालन करने वाले हों. इसी तरह गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य भी अनिवार्य रूप से सिख समुदाय से होने चाहिए.

पहले वक्फ़ बोर्डों के सदस्यों का चुनाव होता था, अब यह नामांकन द्वारा होगा. इसी तरह प्रस्तावित विधेयक से वक्फ़ बोर्ड के सीईओ के लिए मुस्लिम होने की शर्त हटा दी गई है.

मौजूदा वक्फ़ अधिनियम के तहत राज्य सरकार वक्फ़ बोर्ड द्वारा प्रस्तावित दो व्यक्तियों में से किसी एक को नामांकित कर सकती थी, जो कि डिप्टी सेक्रेटरी के रैंक से नीचे का न हो. लेकिन अब वक्फ़ बोर्ड के प्रस्तावित व्यक्ति की शर्त हटा दी गई है और अब डिप्टी सेक्रेटरी की शर्त को हटाकर कहा गया है कि वह जॉइंट सेक्रेटरी के रैंक से कम न हो.

ये संशोधन स्पष्ट रूप से सेंट्रल वक्फ़ काउंसिल और वक्फ़ बोर्डों के अधिकारों को कम करते हैं और सरकार की दख़लअंदाजी का रास्ता साफ़ करते हैं.

प्रस्तावित संशोधन विधेयक वक्फ़ संपत्तियों पर सरकारी कब्जे का भी रास्ता साफ करता है. अगर किसी संपत्ति पर सरकार का कब्जा हो तो इसका फैसला करने का पूरा अधिकार कलेक्टर को सौंप दिया गया है. कलेक्टर के फैसले के बाद वह राजस्व रिकॉर्ड सही करेगा और सरकार वक्फ़ बोर्ड से कहेगी कि वह उस संपत्ति को अपने रिकॉर्ड से हटा दे.

इसी तरह अगर वक्फ़ संपत्ति पर कोई विवाद हो तो इसे तय करने का अधिकार भी वक्फ़ बोर्ड के पास था, जो वक्फ़ ट्रिब्यूनल के माध्यम से इसे तय करता था. अब वक्फ़ ट्रिब्यूनल का यह अधिकार भी प्रस्तावित विधेयक में कलेक्टर को सौंप दिया गया है. मौजूदा वक्फ़ अधिनियम में किसी भी विवाद को एक साल के भीतर वक्फ़ ट्रिब्यूनल के समक्ष लाना अनिवार्य था. इसके बाद कोई विवाद नहीं सुना जाएगा.

अब यह शर्त भी हटा दी गई है. प्रस्तावित विधेयक ने कलेक्टर और सरकारी प्रशासन को मनमाने अधिकार दे दिए हैं. आज जब कलेक्टर के आदेश से मुसलमानों के घरों पर बुलडोज़र चल रहे हैं, तो फिर वक्फ़ संपत्तियों के मामले में उनके रवैये पर कैसे भरोसा किया जा सकता है?

प्रस्तावित विधेयक में वक्फ़ अधिनियम 1995 के सेक्शन 40 को पूरी तरह से हटा दिया गया है. यह सेक्शन वक्फ़ बोर्ड के अधिकार क्षेत्र, सीमाओं और अधिकारों को तय करता है, जिसके तहत वक्फ़ पंजीकरण, वक्फ़ संपत्ति की स्थिति आदि तय की जाती है.

अब ये सभी अधिकार कलेक्टर को सौंप दिए गए हैं. इसी तरह सर्वे कमिश्नर को नामांकित करने के वक्फ़ बोर्ड के अधिकार को भी समाप्त कर दिया गया है. इस जिम्मेदारी को भी कलेक्टर के हवाले कर दिया गया है.

प्रस्तावित विधेयक में वक्फ़ के रूप में इस्तेमाल की गई संपत्ति को हटा दिया गया है. इस्लामी कानून में इसका एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे वक्फ़ अधिनियम 1995 में भी महत्व दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि लंबे समय तक वक्फ़ के रूप में इस्तेमाल की गई जगह (मस्जिद, दरगाह या कब्रिस्तान) भी वक्फ़ मानी जाएगी, भले ही वह वक्फ़ के रूप में पंजीकृत न हो.

इसे हटाना न केवल वक्फ़ के सिद्धांत का उल्लंघन होगा बल्कि यह सांप्रदायिक तत्वों को वक्फ़ संपत्तियों पर कब्जा करने का एक हथियार दे देगा. इस तरह मस्जिदें, मदरसे, दरगाहें और कब्रिस्तान, चाहे वे सदियों से उपयोग में रहे हों, लेकिन अगर देश के राजस्व रिकॉर्ड में उनका पंजीकरण नहीं है, तो उन पर मुकदमे, विवाद और अवैध कब्जे का रास्ता साफ हो जाएगा.

प्रस्तावित विधेयक में वक़्फ़ देने वाले के लिए एक हास्यास्पद शर्त लगाई गई है कि वह कम से कम पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहा हो. यह प्रस्ताव मौलिक नैतिकता और भारतीय संविधान की आत्मा के भी खिलाफ है.

मौजूदा अधिनियम में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी भी चल या अचल संपत्ति को स्थायी रूप से किसी ऐसे उद्देश्य के लिए दान कर देना, जिसे मुस्लिम शरीया कानून के तहत धार्मिक या परोपकारी कार्य माना गया हो. फिर यह सवाल भी पैदा होता है कि कौन तय करेगा कि कोई व्यक्ति इस्लाम का पालन कर रहा है या नहीं?

जहां एक ओर प्रस्तावित विधेयक में गैर-मुस्लिमों को सदस्य बनाने का प्रस्ताव है, वहीं यह विधेयक गैर-मुस्लिमों द्वारा अपनी किसी संपत्ति को वक्फ़ करने पर प्रतिबंध लगाता है. यहां यह स्पष्ट करना भी ज़रूरी है कि वक्फ़ संपत्तियां सरकार की संपत्ति नहीं हैं, बल्कि ये मुस्लिमों की अपनी व्यक्तिगत संपत्तियां हैं, जिन्हें उन्होंने धार्मिक और परोपकारी कार्यों के लिए अर्पित किया है. वक्फ़ बोर्ड और मुतवल्ली का रोल सिर्फ इन्हें संचालित करने का होता है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलमा-ए हिंद, जमाअत इस्लामी हिंद, जमीयत अह्‌ले हदीस और सभी धार्मिक और सामाजिक संगठन इस विधेयक को पूरी तरह से खारिज करते हैं, जो वक्फ़ संपत्तियों को तबाह और बर्बाद करने और उन पर कब्जा करने का रास्ता साफ करने के लिए लाया गया है, और सरकार से मांग करते हैं कि वह इसे तुरंत वापस ले.

हम एनडीए में शामिल धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक पार्टियों और विपक्ष की सभी पार्टियों से भी मांग करते हैं कि वे इस विधेयक को किसी भी कीमत पर संसद से पारित न होने दें.
हम यह भी स्पष्ट करना चाहते हैं कि अगर वक्फ़ संपत्तियों को नष्ट करने और उन पर कब्जा करने का रास्ता साफ करने वाला यह विधेयक संसद में पेश किया गया, तो बोर्ड मुसलमानों, अन्य अल्पसंख्यकों और सभी न्यायप्रिय लोगों के साथ इसके खिलाफ़ देशव्यापी आंदोलन चलाएगा.

  • मौलाना ख़ालिद सैफ़ुल्लाह रहमानी,अध्यक्ष ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
  • मौलाना अरशद मदनी,अध्यक्ष जमीयत उलमा-ए हिंद और बोर्ड के उपाध्यक्ष
  • सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी,अमीरे जमाअत इस्लामी हिंद और बोर्ड के उपाध्यक्ष
  • मौलाना असग़र अली इमाम महदी सलफ़ी,अमीर मरकज़ी जमीयत अह्‌ले हदीस और बोर्ड के उपाध्यक्ष
  • मौलाना मुहम्मद फज़लुर रहीम मुजद्दिदी,महासचिव ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड
  • डॉ. सैयद क़ासिम रसूल इलयास,प्रवक्ता ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड