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2024 के रमजान में भारत में रोजा 12-15 घंटे का होगा

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, 2024 में रमजान का महीना 11 मार्च से शुरू होगा और 10 अप्रैल को समाप्त होगा. भारत में रमजान का पहला रोजा 12 मार्च को रखा जाएगा.

रमजान का महत्व

रमजान का महीना मुसलमानों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। यह महीना पवित्र कुरान का अवतरण हुआ था. इस महीने में मुसलमान सूर्योदय से सूर्यास्त तक रोजा रखते हैं. इस दौरान वे कुछ भी नहीं खाते-पीते हैं. रोजा रखने का उद्देश्य आत्मशुद्धि और आत्मकेंद्रित होना है.

रमजान के महीने में मुसलमान अपने ईश्वर की अधिक से अधिक इबादत करते हैं. वे कुरान पढ़ते हैं, नमाज अदा करते हैं और दान करते हैं. रमजान के महीने के अंत में ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन मुसलमान नए कपड़े पहनते हैं और ईद की नमाज अदा करते हैं.

2024 में गर्मी की स्थिति

भारत में 2024 में रमजान का महीना गर्मियों के मौसम में पड़ेगा. इस महीने में अधिकतर जगहों पर तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहेगा. ऐसे में रोजा रखना मुसलमानों के लिए एक चुनौती होगी.

रोजा रखने वाले मुसलमानों को गर्मी से बचने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए. उन्हें धूप में कम से कम समय बिताना चाहिए. इसके अलावा, उन्हें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए और किसी भी तरह की स्वास्थ्य समस्या होने पर डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए.

निष्कर्ष

2024 में रमजान का महीना भारत में गर्मियों के मौसम में पड़ेगा। ऐसे में रोजा रखने वाले मुसलमानों को गर्मी से बचने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए और धूप में कम से कम समय बिताना चाहिए.

क्या मुसलमानों केलिए रमजान में रोजा रखना अनिवार्य है ?


दुनिया भर के करोड़ो मुसलमान रमजान के पूरे महीने के दौरान सुबह से शाम तक रोजा रखते है. यह पूरे मुस्लिम उम्माह के लिए सबसे पवित्र महीना है.उपवास यानी रोजा शब्द के दुनिया भर की अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग शब्द हैं. इसे स्पेनिश में अयुनो, फ्रेंच में जेउने, तुर्की में पेरहिज, अरबी में सॉम-सियाम और इंडोनेशियाई और मलय में पुआसा के नाम से जाना जाता है. सौम-स्याम शब्द का अर्थ है किसी चीज से बचना. इसका मतलब है कि अल्लाह की आज्ञाओं का पालन करने के एकमात्र इरादे से भोजन, पेय, संभोग और रोजा तोड़ने वाली हर चीज से बचना.

जो कोई भी रमजान के दौरान उपवास के इस दायित्व से इनकार करता है वह मुसलमान नहीं रहता. रोजा फजर से मगरिब के बीच रखा जाता है.फजर के समय से पहले खाए गए भोजन को सुहूर या सेहरी कहते हंै और सूर्यास्त (मगरिब सलाह) के बाद खाए गए भोजन को इफ्तार के रूप में जाना जाता है.

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रोजे से किसे छूट है ?


हालांकि रमजान में रोजा रखना हर सक्षम मुसलमान पर अनिवार्य है. फिर भी अल्लाह ने उन्हें रोजा रखने से माफ कर दिया है अगर वे कुछ वैध कारणों से रमजान के दौरान रोजा रखने में असमर्थ हैं. सूरह अल-बकराह (2ः185) में अल्लाह ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि बीमार लोगों और यात्रियों को रमजान के दौरान रोजा से छूट दी गई है. इसके अलावा, इस आयत की रोशनी में और कई विद्वानों के अनुसार, और लोगों को भी रोजा रखने से छूट दी गई है. उनमें शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार, यात्री,महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान, गर्भवती महिलाएं या स्तनपान कराने वाली महिलाएं, बुजुर्ग, अबोध बच्चे शामिल हैं

रोजे को बातिल करने वाली जीचें क्या हैं
निम्नलिखित चीजें हैं जो किसी के रोजे को अमान्य कर देती हैं:

  • 1- नाक या कान से ली जाने वाली दवा
  • 2- जानबूझकर उल्टी करना
  • 3- गरारे करते समय गलती से पानी गले से नीचे चला जाना
  • 4- किसी स्त्री के संपर्क के कारण वीर्यपात होना
  • 5- वस्तुएं निगलना
  • 6- सिगरेट पीना
  • 7- अनजाने में कुछ भी खाते या पीते रहना और यह मान लेना कि रोजा पहले ही टूट चुका है.
  • 8- सुहूर यानी सुबह सादिक सेहरी (फज्र सलाह से पहले उपवास शुरू करने का समय) के बाद भोजन करना, इस धारणा के साथ कि यह सुहूर सुबह सादिक से पहले है.
  • 9- गलत समय पर इफ्तार (मगरिब नमाज के समय रोजा तोड़ने के बाद खाया जाने वाला भोजन) खाना.


रमजान का अधिकतम लाभ कैसे उठाएं


निम्नलिखित अच्छे कार्य करके व्यक्ति रमजान का अधिकतम लाभ उठा सकता है. मसलन

कुरान करीम की तिलावतःरमजान को कुरान का महीना भी कहा जाता है, इसलिए पूरे महीने अल कुरान की तिलावत जरूर करनी चाहिए.

तरावीह की नमाजः आमतौर पर मस्जिदों में यह विशेष नमाज आयोजित की जाती है. यह उन तरीकों में से एक है जिससे मुसलमान पवित्र कुरान का पाठ पूरा कर सकते हैं. इन प्रार्थनाओं को मुस्तहब के रूप में जाना जाता है (एक ऐसा कार्य जिसे पुरस्कृत किया जाएगा लेकिन जिसे छोड़ना दंडनीय नहीं है). मुसलमानों के लिए रमजान के दौरान संपूर्ण कुरान पढ़ना और इसे पूरा करने का प्रयास करना है. हालांकि, यह अनिवार्य नहीं है. कुछ मुसलमान रमजान के 30 दिनों के लिए प्रत्येक दिन एक (1) जुज पूरा करके ऐसा करते हैं.

रमजान में एतकाफ का पालन करें


एतिकाफ का अर्थ है मस्जिद में या घर पर अकेले रहना और अपना समय पूरी तरह से अल्लाह की इबादत (एसडब्ल्यूटी) में समर्पित करना. रमजान के आखिरी 10 दिनों में एतकाफ में बैठाना सुन्नत-अल-मुअकीदा (सुन्नत जिसे करने का आग्रह किया जाता है) है. कोई व्यक्ति रमजान की 20वीं तारीख को सूर्यास्त के बाद एतकाफ शुरू कर सकता है और ईद का चांद दिखने पर इसे खत्म कर सकता है. अगर रमजान का महीना 29 या 30 दिन का हो तो सुन्नत वही रहती है.