Father’s Day: कुरआन और हदीस के दृष्टिकोण में बच्चों के जीवन में पिता का महत्व
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गुलरूख जहीन
कुरआन में कई ऐसे प्रसंग हैं जो यह दर्शाते हैं कि बच्चों के प्रति चिंता रखना एक पिता का कर्तव्य और धार्मिक दायित्व है। पवित्र कुरआन की अनेक आयतें यह उजागर करती हैं कि एक बच्चे के जीवन में पिता की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है। आइए कुछ उदाहरणों पर नज़र डालते हैं:
1. हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की अंतिम नसीहतें
जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की मृत्यु का समय आया, तो उन्होंने अपने बेटों – इस्माईल, इस्हाक़ और पोते याक़ूब को बुलाकर उन्हें ईमान पर मरने की नसीहत दी:
“और इसी धर्म की वसीयत इब्राहीम और याक़ूब ने अपनी संतान को की थी, ‘ऐ मेरे बेटो! निःसंदेह अल्लाह ने तुम्हारे लिए यह धर्म पसंद किया है, अतः तुम केवल मुस्लिम (अल्लाह के अधीन) रहते हुए ही मरना।'”
(सूरह अल-बक़रह 2:132)
2. हज़रत याक़ूब (अलैहिस्सलाम) का आखिरी सवाल
जब याक़ूब अलैहिस्सलाम की मृत्यु निकट आई, तो उन्होंने अपने बेटों से पूछा कि वे उनके बाद किसकी इबादत करेंगे:
“क्या तुम मौजूद थे जब याक़ूब की मृत्यु निकट आई? जब उन्होंने अपने बेटों से कहा, ‘तुम मेरे बाद किसकी इबादत करोगे?’ उन्होंने उत्तर दिया, ‘हम आपके इलाह (अल्लाह), और आपके पूर्वजों इब्राहीम, इस्माईल और इस्हाक़ के इलाह की इबादत करेंगे। एक ही इलाह की, और हम उसी के अधीन हैं।'”
(सूरह अल-बक़रह 2:133)
3. हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम) की चिंताजनक पुकार
जब तूफ़ान आया, तो नूह अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे को पुकारते हुए कहा:
“और जहाज़ उन्हें पहाड़ों जैसे लहरों में लिए जा रहा था, और नूह ने अपने बेटे को पुकारा, जो उनसे अलग था, ‘ऐ मेरे बेटे! हमारे साथ सवार हो जा और काफ़िरों के साथ मत रह।'”
(सूरह हूद 11:42)
4. हज़रत लुक़मान की दस नसीहतें
लुक़मान की दस नसीहतें उनके बेटे के लिए अल्लाह ने कुरआन में संजोई हैं (सूरह लुक़मान 13-19)। ये नसीहतें बताती हैं कि पिता अपने बच्चों को तौहीद, अच्छे व्यवहार, भलाई का हुक्म देना और बुराई से रोकना सिखाते हैं।
5. पिताओं की दुआ की स्वीकार्यता
एक सही हदीस में है कि पैग़ंबर मुहम्मद ﷺ ने फरमाया:
“तीन लोगों की दुआ रद्द नहीं की जाती: पिता की अपने बच्चे के लिए दुआ, रोज़ेदार की दुआ और सफर में रहने वाले की दुआ।”
(सहीह अल-जामी’ 2032, अल-सहीहाह 1797)
हज़रत यूसुफ़ की घटना में भी, जब उनके भाई अपने अपराध पर शर्मिंदा हुए, तो उनके पिता याक़ूब अलैहिस्सलाम ने रात के वक्त (तहज्जुद में) उनके लिए माफ़ी की दुआ की (तफसीर इब्न कसीर, सूरह यूसुफ़: 97/98)। यह एक आदर्श है कि सच्चे और धर्मपरायण पिता अपनी संतान के लिए हमेशा खैर की दुआ करते हैं।
6. दुनियावी और रूहानी जिम्मेदारियां
एक पिता की ज़िम्मेदारी दोहरी होती है – एक ओर वह रोज़ी कमाने के लिए मेहनत करता है, तो दूसरी ओर वह बच्चों के चरित्र और ईमान की परवरिश भी करता है। कुरआन में हज़रत इब्राहीम की दुआ है:
“ऐ मेरे रब! मुझे और मेरी संतान को नमाज़ कायम करने वालों में बना दे। ऐ हमारे रब! मेरी दुआ स्वीकार कर।”
(सूरह इब्राहीम 14:40)
7. हदीसों में पिता की अहमियत
• जन्नत का बीच का दरवाज़ा
“पिता जन्नत का मध्य दरवाज़ा है, तुम चाहो तो उसे बचा लो या खो दो।”
(इब्न माजह: 3663)
• बेटे और उसके माल पर पिता का अधिकार
“तू और तेरा माल – दोनों तेरे पिता के हैं।”
(इब्न माजह: 2291)
निष्कर्ष
आज जब कई पिता अपने समय को दोस्तों या टीवी में बिताते हैं, कुरआन और हदीस हमें यह याद दिलाते हैं कि घर में एक पिता का सक्रिय और मार्गदर्शक होना बच्चों के लिए उतना ही आवश्यक है जितना एक माँ का होना। यदि आप एक सचेत पिता हैं, तो अपने बच्चों के लिए सिर्फ मौजूद नहीं, बल्कि सहभागी बनें – यही क़यामत के दिन आपके लिए जवाबदेही से राहत का जरिया बन सकता है।