उर्दू सहाफ़त में संघवाद !
सेराज अनवर
बिहार और देश भर में उर्दू सहाफ़त का जश्न चल रहा है.जश्न मनाने की वजह है,उर्दू सहाफ़त ने दो सौ वर्ष पूरे कर लिए हैं.इसकी तारीख़ बहुत ताबनाक(रोशन)रही है.फिरंगियों ने तोप के मुंह पर बांध कर जिस पहले हिंदुस्तानी सहाफ़ी को उड़ा दिया था.वतन की आज़ादी की ख़ातिर शहीद होने वाला वह पहला सहाफ़ी उर्दू का ही मौलवी बाक़िर अली थे.एक वह दौर था और एक यह दौर भी है कि उर्दू सहाफ़त अपने मिशन और मक़सद से भटकती नज़र आती है.
हाल में,कोलकाता से प्रकाशित आज़ाद ए हिन्द के सम्पादक अहमद सईद मलीहाबादी के निधन पर बिहार उर्दू अकादमी में उर्दू काउंसिल हिन्द और प्यारी उर्दू की तरफ़ से कन्ˈडोलन्स् मीटिंग रखी गयी थी.मैं भी शामिल हुआ था,बोलने का मुझे भी मौक़ा मिला.आजकल लोग मुझे अपनी महफ़िलों में बुलाने लगे हैं.बहरहाल,बात अहमद सईद मलीहाबादी के सम्पादकीय की चल रही थी,कैसे निडरता के साथ सच लिखते थे.उसी रास्ते पर चलने की बात कही जा रही थी.अधिक्तर सहाफ़ी मौजूद थे,और कुछ दिग्गज मौलाना.सियासतदां भी.हमारा प्रोब्लम यह है कि दूसरों को सत्य के मार्ग पर चलने को कहते ज़रूर हैं मगर ख़ुद उस रास्ते पर चलते नहीं!
उर्दू सहाफ़त का इतिहास जितना भी रोशन रहा हो आज उसकी रोशनी(रोशनाई)में तेल नहीं है.यह कहने में ज़रा भी अतिशयोक्ति नहीं कि जो उर्दू सहाफ़त कल तक भारतीय जनता पार्टी की ख़बर को प्रमुखता से नहीं छापता था ,आज पूरी तरह संघ के दबाव में है.आरएसएस की खबरें ही प्रमुखता से नहीं छप रही,लम्बे-लम्बे लेख भी छप रहे हैं.फ़र्ज़ी,मनगढ़त लेख छप रहे,फ़र्ज़ी नामों से छप रहे.मुझे याद है,एक वह भी दौर था जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी हुआ करते थे,किसी ने फुल पेज का विज्ञापन उर्दू अख़बारों के लिए मैनेज किया था.कुछ ने छापने से मना कर दिया और कुछ ने डाक में छाप कर मुख्य प्रकाशन से हटा दिया था.उस वक़्त नरेन्द्र मोदी पसंदीदा राजनीतिज्ञ नहीं थे.गुजरात में भीषण दंगे हुए थे,दंगे का दाग उन पर था.इशारों में नीतीश कुमार ने भी दागी व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं होने की बात कही थी.मोदी को मुसलमान अब पसंद करने लगे हैं.ख़ास कर उलेमा,सूफी,बुद्धिजीवी और पसमांदा मुसलमान का एक तबक़ा.संघ सेतु का काम कर रहा है.
विज्ञापन तक में उर्दू सहाफ़त में लाज,शर्म ,नीति -निर्धारण स्पष्ट दिखता था.डर था कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का विज्ञापन छप गया तो उर्दू पाठकों पर क्या असर पड़ेगा?यह बुरी बात भी नहीं है.वामपंथी अख़बारों में शराब का विज्ञापन नहीं छापा जाता था.साफ सिद्धांत था कि पैसा केलिए विचारधारा की गिरवी नहीं रखेंगे.एक बार बैगपाइपर का विज्ञापन कोलकाता से प्रकाशित एक वामपंथी अख़बार में छप गया तो बड़ा हंगामा हुआ था.सहाफ़त को पहले उसूल पर चलना होता है.उसूल नहीं,तो सहाफ़त क्या?अपनी कसौटी पर कसना सहाफ़त का तक़ाज़ा है.आजकी पूरी पत्रकारिता बेग़ैर सिर-पैर के चल रही है.उर्दू सहाफ़त तो फिर भी बेहतर है,नेशनल मीडिया की हालत पर रोना आता है.पैसा कमाना ही मक़सद हो तो अख़बार निकालने की जगह जूते की फ़्रंचाईजी लेना अधिक लाभदायक हो सकता है.
आरएसएस का मुस्लिम विंग है राष्ट्रीय मुस्लिम मंच.हर रोज़ इसकी ख़बर किसी न किसी उर्दू अख़बार में देखने को मिल जाता है.प्रमुखता से इस संगठन की ख़बर छप रही है.संगठन के लेख में क़ायदे से संघ का विचार परोसा जा रहा है.ईद उल अज़हा के मौक़े से जानवर की क़ुर्बानी को बहुत बारीकी से ख़ारिज करता हुआ लेख भी पढ़ने को मिल जाता है और यह सब उर्दू अख़बार में छप रहा है.कभी-कभी तो मज़हब पर इस संगठन का लेख पढ़ कर माथा घूम जाता है.उर्दू अख़बारों में छप क्या रहा है यह देखने की किसी को फुर्सत नहीं है.हाल में ,पीएफ़आई पर प्रतिबंध लगा दिया गया.सरकार और संघ को लगा कि बड़ा हंगामा होगा और इसका राजनीतिक लाभ उसे मिलेगा.हुआ इसका उल्टा.
पीएफआई को मुसलमानों का समर्थन नहीं मिला.बल्कि राजनीतिक दलों ने आरएसएस पर भी प्रतिबंध लगाने की मांग कर दी.फिर खेल शुरू हुआ उर्दू अख़बारों में .फ़र्ज़ी नाम से लेख छपने शुरू हुए.क़ुरआन ,हदीस की रोशनी में पीएफआई पर प्रतिबंध को सही साबित करने की कोशिश की गयी. यह प्रायोजित लेख कहां से आयें होंगे ,किससे लिखाया गया होगा यह बताने की जरूरत है?बंद कमरे में किन-किन ,कैसे-कैसे मुसलमानों से संघ की मुलाक़ात चल रही है यह तो जानते ही होंगे?कई मौक़ों पर मेरे ग़ैरमुस्लिम मित्र पूछते हैं उर्दू अख़बारों में क्या छप रहा है,उन्हें लगता है कि उर्दू अख़बार मुसलमानों का मौथपीस है ,मुसलमानों की बात करता है.हम कहते हैं यही तो नहीं करता.मुसलमानों की तरजुमानी छोड़ बाक़ी हर काम कर रही उर्दू सहाफ़त.इसमें सिर्फ़ उर्दू सहाफ़त का ही दोष नहीं है.हमेशा हम कहते हैं जैसा पाठक वैसा ही अख़बार होता है.मुस्लिम समाज का स्तर भी कम नहीं गिरा है.समाज ठीक होगा तो अख़बार भी ठीक हो जायेगा.
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