Religion

दाग लगे कपन में मुर्दों को दफनना जायज है ?

गुलरूख जमीन

गाजा पर इजरायली सेना के अंधाधुंध गोलियां और बम बरसाने से जहां फिलिस्तीन का यह क्षेत्र खंडहर में तब्दील हो चुका है, वहीं गाजा वासी बुनियादी सुविधाओं के लिए भी मोहताज हैं. हद यह कि इजरायली हमले में मारे जाने वालों को कफन तक मुयस्सर नहीं. जिन्हें कफन मुयस्सर है, उसपर भी खून सहित कई तरह के दाग-धब्बे लगे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दाग लगे कफन के साथ किसी मुर्दे को दफन करना इस्लामिक नजरिए से जायज है ? गाजा में सुन्नी मुसलमानों की बहुलता है और अब तक 28,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं.

इस वजह से यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है. गाजा में इजरायली सेना के खिलाफ लड़ने वाले हमास के लड़ाकांे को तो मारे जाने के बाद कफन तक नसीब नहीं. कई जगह उन्हंे उन्ही के पकड़ों में दफना दिया गया. आइए जानत हैं कि इस मामले में इस्लाम क्या कहता है ?यदि कोई मुजाहिद मर जाए तो क्या हमें उसे नहलाकर कफ़न देना चाहिए, या उसके कपड़ों में ही दफ़न करना चाहिए ?

यदि शहीद युद्ध में मर जाए तो उसे धोना और कफन नहीं देना चाहिए। यह विद्वानों के बहुमत का दृष्टिकोण है. जाबिर इब्न ‘अब्द-अल्लाह की हदीस के कारण, जिन्होंने कहा कि पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आदेश जारी किया कि शहीद उहुद को उनके खून से दफनाया जाना चाहिए और धोया नहीं जाना चाहिए. (अल-बुखारी द्वारा वर्णित, 1346),बल्कि उन्हें धोना नहीं चाहिए, ताकि उनकी शहादत के निशान उन पर रह जाएं.

यह बताया गया है कि पैगंबर (अल्लाह की शांति और आशीर्वाद उस पर हो) ने कहा: “उसकी कसम जिसके हाथ में मेरी आत्मा है, अल्लाह की खातिर किसी को घायल नहीं किया जाता है – और अल्लाह बेहतर जानता है कि उसकी खातिर कौन घायल हुआ है , लेकिन पुनरुत्थान के दिन वह खून के रंग जैसा रंग और कस्तूरी की सुगंध जैसी सुगंध के साथ आएगा.

अल-बुखारी द्वारा वर्णित, 2803; मुस्लिम, 1876

‘अब्द-अल्लाह इब्न थलैबा ने बताया कि पैगंबर (अल्लाह की शांति और आशीर्वाद उन पर हो) ने कहा: “उन्हें उनके खून से छोड़ दो, क्योंकि अल्लाह के लिए कोई घाव नहीं हुआ है, लेकिन वह उस दिन आएंगे पुनरुत्थान का रक्तस्राव रक्त के रंग के समान होगा, लेकिन इसकी सुगंध कस्तूरी की सुगंध के समान होगी.

यदि कोई मुजाहिद अल्लाह के लिए लड़ते हुए शहीद हो जाए तो क्या करें?

यदि कोई मुजाहिद अल्लाह के लिए लड़ते हुए शहीद हो जाता है, तो उसे नहलाना और कफन देना जरूरी नहीं है. यह विद्वानों के बहुमत का मत है, जो निम्नलिखित हदीसों पर आधारित है:

हदीस: जाबिर इब्न ‘अब्द-अल्लाह (अल्लाह उस पर प्रसन्न हो सकता है) ने बताया कि पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने आदेश दिया कि उहुद में शहीद हुए लोगों को उनके खून से दफनाया जाए और उन्हें नहलाया न जाए। (अल-बुखारी द्वारा वर्णित, 1346)

हदीस: पैगंबर (अल्लाह की शांति और आशीर्वाद उस पर हो) ने कहा: “उसकी कसम जिसके हाथ में मेरी आत्मा है, अल्लाह की खातिर किसी को घायल नहीं किया जाता है – और अल्लाह बेहतर जानता है कि उसकी खातिर कौन घायल हुआ है – लेकिन पुनरुत्थान के दिन वह खून के रंग जैसा रंग और कस्तूरी की सुगंध जैसी सुगंध के साथ आएगा।” (अल-बुखारी द्वारा वर्णित, 2803; मुस्लिम, 1876)

इसके अलावा, शहादत हर चीज़ का प्रायश्चित है, जिसमें जुनुब (यौन गतिविधि के बाद अशुद्धता की स्थिति) भी शामिल है.

हालांकि, कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि शहीद को नहलाना और कफन देना बेहतर है। यह मत निम्नलिखित हदीस पर आधारित है:

हदीस: ‘अब्द-अल्लाह इब्न हनज़लाह (अल्लाह उस पर प्रसन्न हो सकता है) शहीद हो गए और स्वर्गदूतों ने उन्हें धोया, उन्हें कफन पहनाया और उन्हें कब्र में दफना दिया। (सहीह मुस्लिम, 1915)यह मत उन लोगों के लिए अधिक उपयुक्त है जो शहीद को नहलाना और कफन देना चाहते हैं।

निष्कर्ष

विद्वानों के बहुमत के अनुसार, अल्लाह के लिए लड़ते हुए शहीद हुए मुजाहिद को नहलाना और कफन देना जरूरी नहीं है.

  • कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि शहीद को नहलाना और कफन देना बेहतर है.
  • यह निर्णय व्यक्तिगत विवेक पर आधारित है.
  • यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों में अंतिम संस्कार के रीति-रिवाजों में कुछ भिन्नताएं हो सकती हैं.

कफन में खून का धब्बा और दफन: एक विस्तृत विश्लेषण, कुछ महत्वपूर्ण बातें

शुद्धिकरण:

  • यदि खून का धब्बा थोड़ा है, तो मृतक को गुस्ल (शुद्धिकरण स्नान) दिया जा सकता है और फिर दफन किया जा सकता है.
  • यदि खून का धब्बा बड़ा है, तो कपड़े को धोकर बदला जा सकता है.
  • यदि खून का धब्बा धोने के बाद भी नहीं जाता है, तो कपड़े को कफन के ऊपर रखा जा सकता है.

उदाहरण

  • यदि मृतक की नाक से थोड़ा खून बह रहा है, तो यह गुस्ल द्वारा शुद्ध किया जा सकता है और दफन किया जा सकता है.
  • यदि मृतक को चोट लगी है और खून बह रहा है, तो कपड़े को धोकर बदला जा सकता है और दफन किया जा सकता है.
  • कफन का उद्देश्य मृतक को सम्मान और गरिमा प्रदान करना है.
  • खून का धब्बा कफन के उद्देश्य को बाधित नहीं करता है.

धार्मिक दृष्टिकोण:

  • इस्लाम में, मृत्यु के बाद की यात्रा पर ध्यान केंद्रित किया जाता है.
  • खून का धब्बा इस यात्रा में बाधा नहीं बनता है.
  • हालांकि, कुछ मामलों में, कफन में खून का धब्बा लगा होने पर दफन करना नाजायज़ हो सकता है:

संक्रामक रोग:

यदि खून का धब्बा संक्रामक रोग से संबंधित है, तो दफन करने से पहले स्वास्थ्य अधिकारियों से परामर्श करना आवश्यक है.

यदि मृतक को संक्रामक रोग है, तो उसे अलग कब्र में दफनाया जाना चाहिए.

उदाहरण:

  • यदि मृतक को HIV/AIDS है, तो दफन करने से पहले स्वास्थ्य अधिकारियों से परामर्श करना आवश्यक है.
  • यदि मृतक को इबोला वायरस है, तो उसे अलग कब्र में दफनाया जाना चाहिए.

अत्यधिक रक्तस्राव

  • यदि खून का धब्बा अत्यधिक रक्तस्राव के कारण है, तो यह मृतक की मृत्यु का कारण बन सकता है.
  • इस मामले में, दफन करने से पहले डॉक्टर से परामर्श करना आवश्यक है.

उदाहरण

  • यदि मृतक को गंभीर चोट लगी है और खून बह रहा है, तो डॉक्टर से परामर्श करना आवश्यक है.
  • यदि मृतक को कार दुर्घटना में गंभीर चोट लगी है और खून बह रहा है, तो डॉक्टर से परामर्श करना आवश्यक है.

निष्कर्ष : इस्लामिक नजरिए से, कफन में खून का धब्बा लगा होने के बावजूद दफन करना जायज़ है।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है

यदि आपको खून के धब्बे को लेकर कोई संदेह है, तो आपको धार्मिक विद्वान या इमाम से परामर्श करना चाहिए.मृतक के प्रति सम्मान और गरिमा बनाए रखना महत्वपूर्ण है.यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों में अंतिम संस्कार के रीति-रिवाजों में कुछ भिन्नताएं हो सकती हैं.

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