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हाजी वारिस अली शाह और दो दिलचस्प पहलू, वेज लंगर एवं अक़ीदत की मोहब्बत

सुहैल वहीद

लखनऊ से पूरब की ओर जरा सी उत्तर दिशा में महज़ बाइस किलोमीटर पर मशहूर सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की दरगाह हिन्दुस्तान की शायद इकलौती दरगाह है जहां सालाना उर्स चांद की तारीख़, यानी कि अरबी महीनों की तारीख़ से नहीं बल्कि हिंदी विक्रमी संवत के हिसाब से होता है. वारिस अली शाह के आस्ताने पर हर साल करवा चौथ पर क़ुल होता है. दशहरे से चार पांच दिन पहले शुरु होने वाला उर्स दीवाली से दो तीन दिन पहले खत्म हो जाता है.

दरअसल यह उर्स हाजी वारिस अली शाह का नहीं, बल्कि उनके वालिद साहब कुर्बान अली शाह का उर्स है। मामला यह है कि हाजी वारिस अली शाह के मुरीदों ने एक बार उनसे दरखास्त की थी कि वो अपने वालिद साहब का उर्स मनाया करें, बात आगे बढ़ी तो वारिस अली शाह से पूछा गया कि अब्बा हुज़ूर का इंतेक़ाल कब हुआ था ? हिंदुस्तानी कल्चर से बहुत ज़्यादा मुतास्सिर रहने वाले हाजी वारिस अली शाह ने याद करते हुए बताया “करवे के भोर पहर हुआ था उनका इंतेक़ाल” तो इस तरह इस उर्स का करवा चौथ से बन गया ये रिश्ता और उर्स और कार्तिक मेला एक दूसरे में मर्ज हो गए.

कल शाम देवा मेला शुरू हो गया, और कल पहली नवम्बर को करवा चौथ को दरगाह पर क़ुल अंजाम पाएगा। देवा में बड़े मज़े से लोग बताते हैं कि कल के बाद, जब क़ुल की रस्म खत्म हो जाएगी, तो यह मेला सूफी कम और कार्तिक मेला ज़्यादा हो जाएगा, तब रौनक़ देखने लायक़ होगी, तभी से बढ़ेगी भीड़। बताते हैं कि कार्तिक मेला देवा में करीब साढे तीन सौ साल से लगता चला आ रहा है.

फिर जब से कार्तिक माह में करवा चौथ के दिन से उर्स का आग़ाज़ हो गया तो यह देवा मेले के नाम से विख्यात हो गया. एक बात और, हाजी वारिस अली शाह के वालिद क़ुर्बान अली शाह का मज़ार वहां पर नहीं है जिस दरगाह में यह उर्स होता है, उनका मज़ार वहां से थोड़ी दूर के एक गांव मे है, लेकिन जब उर्स वहां पर होना तय हुआ तो कहते हैं कि हाजी वारिस अली शाह ने असली मज़ार से कुछ ईंटें निकाल कर वहां पर मज़ार की एक रेप्लिका तैयार कर दी और इस तरह होने लगा वहां पर उर्स फिर हाजी वारिस अली शाह का इंतेक़ाल हुआ तो वहीं पर उनका मज़ार बनाया गया जो आज अपनी पूरी आन बान शान के साथ मौजूद है और पीले रंग कपड़ों में उनके मुरीद और ज़ायरीन यहां डेरा डाले रहते हैं. करवा चौथ के बाद से ये ज़ायरीन वापस जाने लगेंगे और फिर शुरु होगा आस पास के लोगों का आकर दरगाह पर हाज़िरी देना.

वेज लंगर

हाजी वारिस अली शाह सात अप्रैल 1905 को इंतेक़ाल कर गए, तब तक देवा मेला अपना एक स्वरूप ले चुका था, फिर भी शायद कुछ कसर बाक़ी थी. देवा के आस पास के राजे रजवाड़ों की दिलचस्पी के चलते हाजी वारिस अली शाह मेसोलियम ट्रस्ट बनाया गया. इस ट्रस्ट के ज़रिए और कामों के अलावा दरगाह में हमेशा लंगर चलता रहता है.

यहां के लंगर में इस बात का ख़ास ख़्याल रखा गया कि चूंकि दरगाह के अक़ीदतमंदों में ऐसे लोगों की तादाद ज्यादा है जो वेज होते हैं तो लंगर में दोनों टाइम चने की दाल और रोटी बंटती है. साल भर दोनो टाइम दरगाह में दो रोटी और दाल परोसी जाती है. आस पास के गांवों से अनाज आने की परम्परा रही है, इसराना के ठाकुर पंचम सिंह बारह गांवों के ताल्लुक़ेदार थे जिन्होंने अपनी सारी जायदाद दरगाह के नाम वक्फ कर दी थी. उनके बारह गांवों से तो अनाज आता ही था. गोंडा, सीतापुर और बाराबंकी के लोग अनाज भेजते थे. अभी भी बाक़ी है यह सिलसिला. दरगाह में सब कुछ व्यवस्थित रहा लेकिन देवा मेले में बढ़ती भीड़ के मद्देनज़र सन 1925 में देवा मेला एवं प्रदर्शनी के लिए बाक़ायदा एक नीम सरकारी कमेटी बनाई गई जिसके अध्यक्ष डीएम बाराबंकी होते हैं.

इस कमेटी के हाथों में आने के बाद देवा मेले ने अंतरराष्ट्रीय ख़याति अर्जित की और यहां सजने वाला बाज़ार और होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों की हर तरफ धूम मच गई. शुरुआत में कमेटी के मामलात में बाराबंकी के डिप्टी कलेक्टर रहे शेख़ मोहम्मद हसन ने हाजी वारिस अली शाह से अपनी बेपनाह अक़ीदत के सबब कुछ ज़्यादा ही दिलचस्पी दिखाई और मेले के इंतेज़ाम को खूब पुख़्ता किया.

देवा मेला परिसर में लखौरी ईंटों से बना शेख़ मोहम्मद हसन गेट आज भी मौजूद है जिस पर गुलाब के फूलों की लड़ियों से लटा लाल फीता काटकर देवा मेले का हर साल उद्घाटन किया जाता है. दरगाह जाती हुई सड़क पर शेख़ मोहम्मद हसन गेट से पहले एजाज़ रसूल गेट बना है, मतलब राजा जहांगीराबाद। यहां से शेख़ हसन गेट होते हुए अंदर कोतवाली तक पीला ईंट के बुरादे, जो झांसी से मंगवाया गया है. उससे कार्पेट तैयार कराई जाती है जिस पर सफेद चूने के फूल बनाए जाते हैं. यह भी यहां की परम्परा का हिस्सा है. और सबसे बड़ी स्थापित परम्परा है मेले के शुभारंभ की। बाराबंकी के डीएम की पत्नी ही मेले का उद्घाटन करती हैं और समापन पुलिस कप्तान की बीवी के हाथों किया जाता है। इस बार डीएम की वाइफ डॉक्टर सुप्रिया ने मेले का उद्घाटन किया.

( सुहैल वहीद वरिष्ठ पत्रकार हैं )