हज : इस्लाम की रूहानी यात्रा का इतिहास, परंपरा और वर्तमान व्यवस्था
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गुलरूख जहीन
हर साल दुनिया भर से लाखों मुसलमान हज की अदायगी के लिए मक्का पहुंचते हैं। यह इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, जिसे शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम हर मुस्लिम को जीवन में एक बार करना अनिवार्य है। इस यात्रा को एक आध्यात्मिक शुद्धिकरण माना जाता है। पैगंबर मोहम्मद (PBUH) ने फ़रमाया, “जो व्यक्ति अल्लाह की खातिर हज करता है, वह पापों से इस तरह पाक हो जाता है जैसे वह उसी दिन पैदा हुआ हो।”
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🕋 हज और काबा का ऐतिहासिक संदर्भ
हज का इतिहास पैगंबर इब्राहीम (अलैहि सलाम) और उनके बेटे इस्माईल (अलैहि सलाम) से जुड़ा है। जब हाजरा (इब्राहीम की पत्नी) ने अपने प्यासे बेटे इस्माईल के लिए पानी की तलाश में सफा और मरवा की पहाड़ियों के बीच दौड़ लगाई, तो जिबरील (अलैहि सलाम) के द्वारा ज़मज़म का चमत्कार हुआ।
यहीं पर पैगंबर इब्राहीम को आदेश मिला कि वह “बैतुल्लाह” यानी काबा का निर्माण करें।
कुरान की सूरा अल-हज (22:26) में उल्लेख है:
“और याद करो जब हमने इब्राहीम को उस घर की जगह दिखाई, (और कहा) मेरे साथ किसी को शरीक न ठहराओ, और मेरे घर को तवाफ करने वालों और नमाज में खड़े, झुकने और सज्दा करने वालों के लिए पाक रखो।”
📜 हज की शुरुआत और इस्लामी परंपरा
- 630 ईस्वी (8 हिजरी): पैगंबर मोहम्मद (PBUH) ने मक्का में दाखिल होकर वहां के 360 मूर्तियों को तोड़ा और काबा को एकेश्वरवाद के प्रतीक के रूप में फिर से समर्पित किया।
- 632 ईस्वी (10 हिजरी): पैगंबर मोहम्मद (PBUH) ने अपना पहला और अंतिम हज किया, जिसे हज्जतुल विदा कहा जाता है। इसी मौके पर उन्होंने अपना अंतिम ख़ुत्बा (विलाप-संदेश) दिया।

🕰️ हज की तारीखें और प्रमुख रिवाज
हज हर साल धुल-हिज्जा महीने की 8वीं से 12वीं तारीख तक अदा किया जाता है। इसके प्रमुख रिवाजों में शामिल हैं:
- तवाफ: काबा का सात बार चक्कर लगाना
- सई: सफा और मरवा की पहाड़ियों के बीच दौड़
- अराफात में ठहराव: 9वीं तारीख को अराफात के मैदान में जमा होना
- रमी: शैतान को प्रतीकात्मक रूप से पत्थर मारना
- कुर्बानी: पैगंबर इब्राहीम की कुर्बानी की याद में जानवर की बलि
🗝️ काबा की चाबी रखने वालों की विरासत: सदीनों का इतिहास
क्या आपने कभी सोचा है कि काबा की चाबी किसके पास रहती है?
अल-शैबी परिवार पिछले 1,600 वर्षों से काबा की चाबी के संरक्षक (सदीन) हैं। इस्लाम से पहले भी यह परिवार यह जिम्मेदारी निभा रहा था और पैगंबर मोहम्मद (PBUH) ने स्वयं यह चाबी ओस्मान बिन तल्हा को लौटाते हुए कहा था:
“यह तुम्हारे पास क़यामत तक रहेगी और कोई ज़ालिम ही इसे तुमसे छीन सकेगा।”
आज भी यह परंपरा जारी है। वर्ष 2015 में शेख अब्दुल कादिर अल शैबी 109वें सदीन थे।

🧵 काबा की चादर (किस्वा): परंपरा, परिवर्तन और उत्पादन
किस्वा, यानी काबा को ढकने वाली काली मखमली चादर, ज़माने के साथ बदलती रही है:
- पहले यमनी धागों, मिस्री कपड़े और रेशम से तैयार होती थी।
- पहले हर साल किस्वा को बदला जाता था, कभी-कभी साल में तीन बार तक।
- आज यह कार्य सऊदी अरब सरकार द्वारा मक्का में स्थित किस्वा फैक्ट्री में अंजाम दिया जाता है। यह फैक्ट्री 1927 में बनी थी और अब आधुनिक मशीनों के साथ-साथ पारंपरिक तरीकों को भी संभाले हुए है।
एक ऐतिहासिक पहलू यह भी है कि पहली महिला, जिसने काबा के लिए अपनी ओर से अकेले किस्वा प्रदान की थी, वह थीं नातेला बिंत जनाब, जिन्होंने अपने बेटे की वापसी के वचन के रूप में यह क़ुर्बानी दी।

🤲 हज का आज का स्वरूप: प्रबंधन और आधुनिकीकरण
- सऊदी सरकार ने हज की व्यवस्थाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए विशेष तकनीकी साधनों और सुरक्षा उपायों को लागू किया है।
- ज़मज़म का पानी अब पाइपलाइन के माध्यम से तीर्थयात्रियों तक पहुँचता है।
- हज के दौरान संचार, स्वास्थ्य और आपात सेवाओं को उच्च स्तर पर संचालित किया जाता है।

🌍 वैश्विक एकता का प्रतीक
हज वह समय है जब दुनिया के कोने-कोने से लाखों मुसलमान बिना किसी जाति, भाषा या नस्ल के भेदभाव के एक साथ एक ही वस्त्र (एहराम) में सिर झुकाकर खड़े होते हैं — यह इस्लामिक समानता और एकता का सबसे जीवंत प्रदर्शन होता है।
📌 निष्कर्ष
हज केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति, आध्यात्मिकता और वैश्विक मुस्लिम एकता का एक अद्वितीय संगम है। यह उस परंपरा का जीवित स्मारक है, जो इब्राहीम (अलैहि सलाम) से शुरू होकर आज तक एक अरब से अधिक मुसलमानों के जीवन का हिस्सा बनी हुई है।