हैप्पी मदर्स डे: कुरान और हदीस की रोशनी में मां का दर्जा
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फिरदौस जहां
इस्लाम धर्म में माताओं को बहुत ऊंचा स्थान दिया गया है. यह स्थान दुनिया के किसी भी अन्य धर्म में मिलने वाले स्थान से कहीं ऊपर है. मां अल्लाह ताला की एक कृपा और अनमोल तोहफा है. बच्चे के मुंह से निकलने वाला पहला शब्द “मां” होता है, चाहे वो खुशी के पल में हो या दुख के. एक माँ अपने बच्चे को बिना किसी शर्त के प्यार करती है, मुस्कराते हुए दर्द सहती है और बिना शिकायत हर चीज का त्याग कर देती है. जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, तो उनकी जिम्मेदारी होती है कि वे अपने माता-पिता, खासकर अपनी माँ के साथ नम्रता और दया का व्यवहार करें.
माँ-पिता के साथ अच्छा व्यवहार: कुरान और हदीस की सीख
इस्लाम माता-पिता के साथ दयालु, आज्ञाकारी और विनम्र रहने का आदेश देता है. हर परिस्थिति में उनका सम्मान करना चाहिए. उनकी बात माननी चाहिए सिवाय इसके कि वो अल्लाह (SWT) के मना किए हुए काम करने को कहें. बुढ़ापे में उनकी देखभाल उसी तरह करनी चाहिए जैसा उन्होंने बचपन में आपकी की थी.उनकी हर बात को प्राथमिकता देनी चाहिए.
इस्लाम में माँ का सम्मान
इस्लाम धर्म की सबसे खूबसूरत बातों में से एक है माँ को ऊंचा स्थान देना और बच्चों को उनके प्रति आभारी, सम्मानजनक, दयालु और आज्ञाकारी होने का निर्देश देना. इस्लाम में मां के अधिकार पिता के अधिकारों से कहीं ज्यादा हैं. पवित्र कुरान में कई आयतें हैं जो मुसलमानों के जीवन में मां के महत्व को बताती हैं.
कुरान (17:23-24) में अल्लाह तआला माँ-पिता के सम्मान के बारे में बताते हैं: “और तुम्हारे रब ने यह फैसला किया है कि तुम सिवाय उसके किसी की इबादत न करो और माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करो. अगर उनमें से कोई या दोनों तुम्हारे साथ बुढ़ापे को पहुंच जाएं तो उन्हें फटकार मत दो. न ही उनसे बेरुखी से पेश आओ. इज्जत के साथ उनसे बात करो. दया की वजह से उनके आगे झुक जाओ और ये दुआ मांगो कि ऐ मेरे रब! जिस तरह उन्होंने मुझे बचपन में पाला है, तू भी उन पर अपना रहम कर.”
हदीस में माँ का ऊंचा स्थान
हज़रत मुहम्मद (PBUH) की एक हदीस बताती है कि माँ का दर्जा पिता से कहीं ज्यादा ऊंचा है:
एक आदमी हज़रत मुहम्मद (PBUH) के पास आया और पूछा: “या رسول अल्लाह! दुनिया में सबसे ज्यादा किसका साथ निभाना मेरा फर्ज है?”
आपने जवाब दिया: “तुम्हारी माँ.”
आदमी ने फिर पूछा: “फिर किसका?”
तो उन्होंने (PBUH) जवाब दिया: “तुम्हारी माँ.”
आदमी ने फिर पूछा: “फिर किसका?”
तो पैगंबर (PBUH) ने फिर जवाब दिया: “तुम्हारी माँ.”
आदमी ने फिर पूछा: “फिर किसका?”
तो उन्होंने (SAW) जवाब दिया: “फिर तुम्हारे पिता.” (बुखारी)
एक अन्य हदीस में हज़रत अनास बिन मालिक (RA) बताते हैं कि पैगंबर (SAW) ने कहा:”सबसे बड़े कबीरा (गंभीर पाप) हैं: (1) अल्लाह के साथ किसी को भी साझी ठहराना, (2) किसी इंसान का कत्ल करना, (3) अपने माँ-पिता की नाफरमानी करना और (4) झूठी बात कहना.” (बुखारी)
माँ-पिता के साथ अच्छा व्यवहार और सीमाएं
पवित्र कुरान में अल्लाह तआला माँ-पिता के साथ दयालु रहने का आदेश देते हैं. साथ ही यह भी स्पष्ट करते हैं कि उनकी किन बातों को नहीं मानना चाहिए.
पहली आयत (कुरान, 29:8) में अल्लाह कहते हैं: “और हमने मर्द और औरत को माँ-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करने का हुक्म दिया है, लेकिन अगर वो (दोनों में से कोई) तुम्हें मजबूर करें कि तुम मेरे साथ किसी चीज को शरीक करो, जिसका तुम्हें कोई इल्म नहीं है, तो उनकी बात मत मानो.”
दूसरी आयत (कुरान, 31:14-15) में अल्लाह और विस्तार से बताते हैं: “और हमने इंसान को अपने माँ-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करने का हुक्म दिया है. मेरा और अपने माता-पिता का शुक्र अदा करो, मेरी ही तरफ लौटना है. अगर वो दोनों तुम्हें मजबूर करें कि तुम मेरे साथ किसी चीज को शरीक करो, जिसका तुम्हें कोई इल्म नहीं है, तो उनकी बात मत मानो. लेकिन दुनिया की जिंदगी में उनके साथ अच्छे से पेश आओ और उनका साथ दो और मेरी तरफ रुजू करने वालों के रास्ते पर चलो.”
इन दोनों आयतों से सीख मिलती है कि:
- माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार और उनके हक का पूरा ध्यान रखना जरूरी है.
- अगर माता-पिता अल्लाह के साथ किसी को भी साझी ठहराने के लिए मजबूर करें, तो उनकी बात नहीं माननी चाहिए.
- हालांकि, उनकी नाफरमानी न करते हुए, दुनियावी मामलों में उनका साथ देना और सम्मान के साथ पेश आना चाहिए.
माँ की सेवा – स्वर्ग से भी महत्वपूर्ण
हदीसों में बताया गया है कि माँ की सेवा का مقام बहुत ऊंचा है.
पैगंबर मुहम्मद (PBUH) ने कहा है: “तुम्हारा स्वर्ग आपकी माँ के पैरों के नीचे है.” (नसाई)
हज़रत أسماء बिन्त अबू बक्र (رض) बताती हैं कि उनकी माँ, जो उस वक्त मूर्तिपूजक थीं, मक्का से उनसे मिलने आईं. हज़रत أسماء ने पैगंबर (PBUH) को उनके आने की खबर दी और यह भी बताया कि उन्हें मदद की ज़रूरत है. पैगंबर (PBUH) ने कहा: “अपनी माँ के साथ अच्छा व्यवहार करो.” (मुस्लिम)
एक अन्य हदीस में बताया गया है कि जिहाद से भी बढ़कर माँ की सेवा का महत्व है:
एक आदमी अल्लाह के दूत (PBUH) के पास आया और कहा: “या رسول अल्लाह! मैं जिहाद में लड़ना चाहता हूँ और आपसे सलाह लेने आया हूँ.”
आप (PBUH) ने कहा: “क्या तुम्हारी माँ हैं?”
उसने कहा: “हाँ !”
पैगंबर (PBUH) ने कहा: “फिर उसके पास ही रहो, क्योंकि जन्नत उसकी पैरों के नीचे है.” (सुनन नसाई)
इन हदीसों से सीख मिलती है कि:
- माँ के साथ हमेशा अच्छा व्यवहार करना चाहिए.
- गुस्सा या झुंझलाहट होने पर भी माता को रूखाब नहीं दिखाना चाहिए.
- हमेशा नरमी से बात करनी चाहिए और उनकी खैरियत के लिए दुआ करनी चाहिए.
- अल्लाह तआला हमें ये हिदायतें समझने और उन पर चलने की तौफीक दे. आमीन!