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हरिद्वार हेटस्पीचः सुप्रीम कोर्ट का पत्रकार कुरबान अली और पूर्व न्यायाधीश अंजना प्रकाश की याचिका पर उत्तराखंड सरकार से जवाब तलब

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

कोरोना की मार से पिछले दो वर्षों के दौरान देश-दुनिया में कोहराम मचा है. लोगों की जान, रोजी-रोजगार सब जा रहे हैं, ऐसे में कुछ लोग हिंदुस्तान को नफरत की आग में धकेल कर सदियों पीछे ले जाना चाहते हैं. ऐसे माहौल में जब गोदी मीडिया को सांप सूंघा हुआ है. इस बीच बीबीसी के पत्रकार रहे कुरबान अली और पटना उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश अंजना प्रकाश ने जीवंता का परिचय देते हुए सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वालों को नकेल डालने को कदम उठाए हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पत्रकार कुर्बान अली और पटना उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश अंजना प्रकाश की याचिका पर उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर हरिद्वार में धर्म संसद में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की. मुकदमा दर्ज किए जाने के बाद भी अभी तक इस मामले में उत्तराखंड सरकार ने आरोपियों की गिरेबां पर हाथ नहीं डाला है.

इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली और न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने याचिकाकर्ताओं को 23 जनवरी को अलीगढ़ में होने वाले प्रस्तावित धर्म संसद को रोकने के लिए अपनी याचिका के साथ स्थानीय अधिकारियों से संपर्क करने की अनुमति दी.

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि धर्म संसद अलीगढ़ में एक और सभा आयोजित करने जा रही है. उन्हें नफरत भरे भाषण देने से रोकने के लिए कुछ निर्देश पारित किए जाने चाहिए, जबकि शीर्ष अदालत को मामले की जानकारी है.

सिब्बल ने जोर देकर कहा कि राज्यों में विभिन्न धर्म संसद निर्धारित हैं, जहां जल्द ही चुनाव होने वाले हैं. नफरत भरे भाषणों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि यह इस देश के लोकाचार और मूल्यों के विपरीत है. इन लोगों को एक विशेष समुदाय के खिलाफ बयान देने से रोकने के लिए निवारक कदम उठाने के लिए दबाव डाला जाना चाहिए.

सोमवार को, शीर्ष अदालत उनकी याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई थी, जिसमें एक एसआईटी द्वारा मामले की स्वतंत्र, निष्पक्ष और विश्वसनीय जांच की मांग की गई थी.

अधिवक्ता सुमिता हजारिका के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, ‘‘नफरत फैलाने वाले भाषणों में जातीय सफाई हासिल करने के लिए मुसलमानों के नरसंहार के लिए खुले आह्वान शामिल थे. यह ध्यान रखना उचित है कि उक्त भाषण केवल घृणास्पद भाषण नहीं हैं, बल्कि एक खुले आह्वान के समान हैं. इस प्रकार उक्त भाषण न केवल हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए एक गंभीर खतरा हैं बल्कि लाखों मुस्लिम नागरिकों के जीवन को भी खतरे में डालते हैं.‘‘

याचिका के अनुसार, विवादित यति नरसिंहानंद द्वारा हरिद्वार में आयोजित दो कार्यक्रमों में और दिल्ली में हिंदू युवा वाहिनी के रूप में स्वयंभू संगठन द्वारा, पिछले साल 17-19 दिसंबर के बीच भारतीय नागरिकों के एक महत्वपूर्ण वर्ग के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने का नफरत भरे भाषण दिए गए थे.

याचिका में कहा गया है कि लगभग तीन सप्ताह बीत जाने के बावजूद, पुलिस अधिकारियों द्वारा उक्त घृणास्पद भाषणों के लिए आईपीसी की धारा 120 बी, 121 ए और 153 बी को लागू न करने सहित कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया है.

इसने आगे बताया कि पुलिस अधिकारियों ने हरिद्वार धर्म संसद में भाग लेने वाले 10 लोगों के खिलाफ दो प्राथमिकी दर्ज की हैं, लेकिन उक्त प्राथमिकी में भी, केवल आईपीसी की धारा 153 ए, 295 ए और 298 लागू की गई हैं.

याचिका में कहा गया, ‘‘पुलिस द्वारा घोर निष्क्रियता तब भी सामने आई जब एक पुलिस अधिकारी का वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो गया, जिसमें उपरोक्त घटनाओं के वक्ताओं में से एक ने धर्म संसद के आयोजकों और वक्ताओं के साथ अधिकारी की निष्ठा को खुले तौर पर स्वीकार किया.‘‘

दिलचस्प यह है कि आरोपियों से पूछातछ करने को गए अधिकारी के हंस-हंसकर बातें करने को भी उत्तराखंड सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया है. उक्त वीडिया आज भी सोशल मीडिया पर मौजूद है, जिससे देखकर अंदाजा लगाने में कोई परेशानी है कि नफरती भाषण किसी जलील खेल का हिस्सा है, जिसे सिरे चढ़ाने में खास विचार धारा के लोग लगे हुए हैं. अन्यथा क्या वजह है कि इस तरह के आरोप लगा कर एक स्टैंडअप काॅमेडियन को एक महीने तक जेल में रखा जाता है. उसके सारे शोज यह कहकर रदद करा दिए जाते हैं कि इससे सांप्रदायिक सौहार्द को नुक्सान पहुंचेगा. जब कि दूसरी तरफ कुछ मुट्ठी भर लोग एक समुदाय के नरसंहार की खुली चेतावनी दे रहे हैं और प्राथमिकी दर्ज कराए जाने के बावजूद वे ऐसे कार्यक्रम आयोजित करते घूम रहे हैं. अब अलगीढ़ में धर्मसंसद आयोजित किए जाने की बात सामने आ रही है. आरोपियों से हंस-हंसकर बातें करने वाले पुलिस अधिकारी पर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है.

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