हिजाबी राइडर नूर: घूंघट के भीतर एक तूफ़ान – बाइक से बेंगलुरु से मक्का तक का सफ़र
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मुस्लिम नाउ/ रियाद/ चेन्नई
जब हिजाब हवा से टकराया
चेन्नई के पल्लवरम की रहने वाली 30 वर्षीय मुस्लिम युवती नूर बी आज एक नाम नहीं, बल्कि एक प्रेरणा बन चुकी हैं। सिर पर हिजाब, दिल में जुनून और हाथों में मोटरसाइकिल की हैंडल – यही है उनकी पहचान। जब दुनिया हिजाब में सीमाएँ ढूंढती है, तब नूर उसे पंख बना लेती हैं।

जहाँ आमतौर पर धार्मिक और सामाजिक रूढ़ियाँ मुस्लिम महिलाओं की उड़ान को सीमित करने की कोशिश करती हैं, वहीं नूर ने उन सीमाओं को चुनौती देकर दिखाया कि हिजाब आत्म-विश्वास और स्वायत्तता की भी निशानी हो सकती है।
“मैं एक यात्री हूँ, इस दुनिया में अल्लाह की राह पर”: हिजाबी राइडर नूर का सफरनामा
नूर ने एक सपने को हकीकत में बदला – एक ऐसा सपना जो बाइक पर बैठकर उन्हें भारत की सड़कों से होती हुई मक्का तक ले गया। इस यात्रा की योजना उन्होंने करीब डेढ़ साल पहले बनाई थी। उनकी यात्रा कोई आम रोड ट्रिप नहीं थी – यह एक आस्था, आत्म-विश्वास और आत्म-निर्भरता का मिशन था।
उन्होंने इंस्टाग्राम पर अपने बारे में लिखा है:
“खानाबदोश हिजाबी राइडर नूर – इस दुनिया में एक यात्री की तरह जिएं। नमाज़ के लिए आइये; सफलता के लिए आइये। आपकी सुरक्षा महत्वपूर्ण है, कृपया महरम के साथ यात्रा करें।”
मोटरसाइकिल: पहला प्यार, पहली आज़ादी

कॉलेज के दिनों से ही मोटरसाइकिल के प्रति नूर का प्रेम किसी क्रांति से कम नहीं था। वह कहती हैं:
“मैं उस पृष्ठभूमि से आती हूँ जहाँ महिलाओं को बाइक चलाने तक की इजाज़त नहीं दी जाती। मैंने खुद से वादा किया था – एक दिन अपनी बाइक ज़रूर खरीदूंगी।”
2021 के मध्य में, उन्होंने अपने सपनों की बाइक खरीदी – एक पुरानी Royal Enfield Classic 350 – जिसे उन्होंने खुद के बचाए हुए पैसों से खरीदा। कुछ बेसिक राइडिंग गियर के साथ, नूर निकल पड़ीं एक ऐसी यात्रा पर जो बाद में लाखों के लिए प्रेरणा बन गई।
रूढ़िवादिता से टक्कर और बेंगलुरु से मक्का की राह
नूर ने 14 नवंबर 2021 को बेंगलुरु से अपनी यात्रा की शुरुआत की। दिलचस्प बात यह रही कि उन्होंने यह बात अपने परिवार से छिपाए रखी थी और पहली बार जब उन्हें उनके इस अद्भुत सफर की जानकारी मिली, वह महाराष्ट्र के लोनावला से हाईवे पर था।
रास्ते में उन्होंने कई राज्यों से गुज़रते हुए पूरे भारत का भ्रमण किया – महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और फिर नेपाल। नेपाल की रक्सौल सीमा पार करने के बाद वह बिहार में प्रवेश कर रही थीं जब एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना ने उनकी यात्रा को बीच में रोक दिया।
एक दुर्घटना, आँसू और हिम्मत की वापसी
मई 2022 के मध्य में पटना के पास हुए इस हादसे में नूर गंभीर रूप से घायल हो गईं। उन्हें अपनी क्षतिग्रस्त बाइक को ट्रेन से वापस चेन्नई भेजना पड़ा। वह याद करती हैं कि कैसे वह दर्द और निराशा के आँसुओं के साथ दानापुर स्टेशन पर ट्रेन में चढ़ीं।
जुलाई 2022 तक उन्होंने खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से संभाल लिया। फिर बेंगलुरु लौटकर एक नई नौकरी शुरू की। लेकिन यशवंतपुर में लिए गए फ्लैट के किराए और खर्चों को पूरा करने के लिए उन्हें अपनी सबसे प्रिय चीज – अपनी मोटरसाइकिल – को बेचना पड़ा।
“वो मेरी पहली आज़ादी थी, मेरा पहला प्यार था। बाइक बेचते वक्त ऐसा लगा जैसे मैंने अपने सपनों का एक हिस्सा गिरवी रख दिया हो।”

नया सपना: बेंगलुरु से मक्का तक अकेली महिला बाइक यात्रा
लेकिन नूर जैसी आत्मा हार मानने के लिए नहीं बनी थी। उन्होंने फिर से बचत शुरू की, इस बार एक नई मोटरसाइकिल और एक और बड़े सफर के लिए – बेंगलुरु से मक्का तक बाइक से उमरा यात्रा।
2025 की शुरुआत में, उन्होंने यह ऐतिहासिक यात्रा शुरू कर दी। इस समय नूर सऊदी अरब के रियाद से मक्का की ओर जा रही हैं। उनकी इस यात्रा के दौरान भारत के एक सिख बुज़ुर्ग से टोल बैरियर पर मुलाकात और कई अन्य हृदयस्पर्शी घटनाएँ सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी हैं।
उनके इंस्टाग्राम और यूट्यूब हैंडल पर उनके इस रोमांचक सफर की झलकियाँ देखी जा सकती हैं। सड़कों पर, रेगिस्तानों में, सीमाओं के पार – एक हिजाबी राइडर की मोटरसाइकिल हवा से बातें करती नज़र आती है।
चुनौतियाँ: रूढ़ियाँ, जिज्ञासु निगाहें और आलोचना
इस यात्रा में उन्हें ऑनलाइन ट्रोलिंग, “लड़कियाँ ऐसा नहीं कर सकतीं” जैसे ताने, और सड़कों पर कई बार पुरुषों की अति-जिज्ञासु निगाहों का सामना करना पड़ा।
नूर बताती हैं:
“मैंने एक नियम बना रखा था – सूरज ढलने के बाद यात्रा नहीं करूंगी, और अजनबी पुरुषों से बातचीत कम से कम रखूँगी। लेकिन सबसे बड़ी ताक़त मेरी नमाज़ और मेरा इरादा था।”
प्यार, स्वागत और एकता का अनुभव
नूर को इस सफर में उत्तर भारत के मंदिरों, आश्रमों और गुरुद्वारों में जिस खुले दिल से स्वागत मिला, उसने उनके दिल को छू लिया। वह बताती हैं:
“मैंने उन्हें बताया कि मैं मुसलमान हूँ, लेकिन उन्होंने मुझे खाना दिया, रुकने की जगह दी और एक परिवार जैसा स्नेह दिया।”
यह अनुभव इस बात का प्रतीक था कि इंसानियत मज़हब से ऊपर है।
निष्कर्ष: एक महिला, एक मोटरसाइकिल, एक मिशन
नूर सिर्फ एक राइडर नहीं हैं – वह एक आंदोलन हैं। एक ऐसे विचार की आवाज़ हैं जो कहता है:
“हिजाब आज़ादी की राह में बाधा नहीं, बल्कि आस्था और आत्म-सम्मान की निशानी है।”
उन्होंने जो रास्ता चुना, वह आसान नहीं था – लेकिन प्रेरणादायक ज़रूर है। वह दक्षिण भारत की पहली हिजाबी महिला बनने की ओर अग्रसर हैं जो अकेले बाइक से उमरा की यात्रा कर रही हैं।
उनका जीवन हम सबको यह संदेश देता है कि:
“जुनून अगर सच्चा हो, तो रुकावटें रास्ता नहीं रोकतीं – सिर्फ किस्से बनाती हैं।”
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