एएमयू में होली और हरिद्वार में इफ्तार: क्या धार्मिक परंपराओं को लेकर राजनीतिक साजिश है ?
मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली
भारत में संविधान और कानून के समक्ष सभी समान हैं, लेकिन हाल के कुछ घटनाक्रम यह दर्शाते हैं कि कुछ वर्ग अपनी सहूलत के हिसाब से इसे अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। एक ओर जहां कट्टरवादी संगठन “एक संविधान, एक कानून” की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ घटनाएं यह साबित कर रही हैं कि “जिसकी लाठी, उसकी भैंस” का सिद्धांत बढ़ता जा रहा है। ताजा मामला अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में होली, हरिद्वार स्थित श्रीकुल आयुर्वेद कॉलेज में आयोजित इफ्तार पार्टी मनाने को लेकर विवाद से जुड़ा हुआ है, जो इस सोच को और भी गहरे स्तर तक पुख्ता करता है।
इस मामले को इस कदर तूल दिया गया कि एक पार्टी के सांसद ने खुले तौर पर धमकी दी कि एएमयू में होली मनाने वाले छात्रों से मारपीट करने वाले को “उपर पहुंचा दिया जाएगा”। अब सवाल यह उठता है कि इस विवाद को किसने और क्यों इस हद तक बढ़ावा दिया? क्या इस तरह की घटनाओं से देश के संविधान और कानून की सर्वोच्चता कमजोर हो रही है?
एएमयू में होली मनाने की परंपरा:
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, जिसे अक्सर एएमयू के नाम से जाना जाता है, में हर साल होली मनाने की परंपरा रही है। यह परंपरा न केवल छात्रों, बल्कि शिक्षक और नॉन-टीचिंग स्टाफ के बीच भी साझा की जाती रही है। विभा शर्मा, जो एएमयू की अंग्रेजी विभाग की प्रोफेसर और छात्रा रही हैं, ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो साझा करते हुए इस परंपरा का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि एएमयू में होली या अन्य त्योहारों को मनाने की कभी कोई रोक-टोक नहीं रही है, और यह परंपरा बहुत पुरानी है।

ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब एएमयू में होली मनाई जाती रही है, तो इसे विवाद का रूप क्यों दिया जा रहा है? क्या होली मनाने वाले छात्र कुछ ऐसा करने जा रहे हैं, जिसे किसी खास समूह के द्वारा चुनौती दी जा रही है? या फिर यह सिर्फ एक साधारण सी बात है जिसे जानबूझकर तूल दिया जा रहा है?
उत्तराखंड में इफ्तार पर विवाद:
हाल ही में उत्तराखंड के हरिद्वार स्थित श्रीकुल आयुर्वेद कॉलेज में आयोजित एक इफ्तार पार्टी को लेकर भी विवाद सामने आया। कुछ हिंदूवादी कट्टर संगठनों ने इफ्तार पार्टी का विरोध किया और वहां इकट्ठे हुए मुस्लिम छात्रों की गिरफ्तारी की मांग की। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें कॉलेज प्रबंधन के एक अधिकारी ने कहा कि इस मामले की जांच की जाएगी। हालांकि, मुस्लिम स्पेस नामक एक ट्विटर हैंडल ने दावा किया कि छात्रों ने इफ्तार पार्टी के लिए अनुमति ली थी, और कॉलेज प्रबंधन ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि छात्रों के पास खाने-पीने के अलावा कोई अनावश्यक सामान नहीं था।

यह घटना भी उसी मानसिकता को उजागर करती है जो “जिसकी लाठी, उसकी भैंस” के सिद्धांत पर आधारित है। जब कुछ लोग देश के संविधान और कानून को अपनी पसंद और सहूलत के अनुसार लागू करने की कोशिश करते हैं, तो यह निश्चित रूप से देश की एकता और सामाजिक सौहार्द को प्रभावित करता है।
देश में बढ़ता धार्मिक विवाद और राजनीति की चुप्पी:
इन दोनों घटनाओं में जो बात समान है, वह है कुछ समूहों द्वारा कानून और संविधान को अपने हिसाब से लागू करने की कोशिश। भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां हर नागरिक को अपनी धार्मिक आस्था का पालन करने का अधिकार है। लेकिन हालिया घटनाओं से यह स्पष्ट हो रहा है कि कुछ लोग इस अधिकार को सीमित करने की कोशिश कर रहे हैं।
अलीगढ़ और हरिद्वार की घटनाओं में यही सवाल उठता है कि क्या राजनीति और धार्मिक पहचान को लेकर देश में एक नया समाजिक बंटवारा किया जा रहा है? जब कुछ राजनीतिक दल इस पर चुप रहते हैं, तो यह स्थिति और जटिल हो जाती है। राजनीतिक दलों का खामोश रहना और इस तरह की घटनाओं को तूल न देना एक खतरनाक संकेत है, जो देश की सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को खतरे में डाल सकता है।
समाज और राजनीति का जिम्मेदाराना दृष्टिकोण:
इन घटनाओं से यह साफ है कि जब कोई एक पक्ष अपनी धार्मिक पहचान के आधार पर संविधान और कानून को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश करता है, तो यह देश की सबसे बड़ी असलियत को चुनौती देता है। भारत का संविधान सभी धर्मों के बीच समानता और न्याय की बात करता है। लेकिन जब एक धर्म विशेष को लेकर विवाद खड़े किए जाते हैं, तो इससे न केवल उस धर्म के लोगों को परेशानी होती है, बल्कि समग्र रूप से समाज में भी तनाव उत्पन्न होता है।
आखिरकार यह सवाल उठता है कि क्या भारत फिर से “सोने की चिड़ीया” बनने की दिशा में आगे बढ़ सकता है, जब तक इस तरह के मुद्दों पर राजनीति और समाज की तरफ से जिम्मेदाराना कदम नहीं उठाए जाते। क्या भारत में हर व्यक्ति को अपनी आस्था, परंपरा और संस्कृति का पालन करने का सही और सुरक्षित मौका मिलेगा, या फिर एक छोटी सी बात को लेकर बड़े विवाद खड़े किए जाएंगे?
काबिल ए गौर
इन घटनाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि देश में कुछ लोग संविधान और कानून को अपनी सहूलत के हिसाब से लागू करने की कोशिश कर रहे हैं, जो कि एक खतरनाक प्रवृत्ति है। यह केवल एक धार्मिक या सांस्कृतिक मुद्दा नहीं, बल्कि पूरे देश की सामाजिक एकता और समरसता का सवाल है। ऐसे में यह आवश्यक है कि समाज और राजनीति दोनों ही इस मुद्दे पर अपनी जिम्मेदारी समझें और संविधान के तहत हर नागरिक को समान अधिकार देने की दिशा में काम करें। अगर हम इसी तरह की मानसिकता को बढ़ावा देते रहे, तो देश की एकता और अखंडता को खतरा हो सकता है।