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महबूबा के महिलाओं के उत्पीड़ने वाले बयान में कितनी सच्चाई !

जम्मू एवं कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री एवं पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता महबूबा मुफ्ती का बयान चिंता पैदा करने वाला है. यदि ऐसे बयान देकर वह कोई राजनीतिक लाभ लेना चाहती हैं तो ऐसी ओछी सियासत ठीक नहीं. यदि उनके बयान में सच्चाई है तो इसे गंभीरता से लेते हुए इसे दुरूस्त करने की बेहद जरूरत है.

महबूबा मुफ्ती ने जम्मू-कश्मीर के कुलगाम जिले से एक महिला विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) को गिरफ्तार करने पर आपत्ति उठाई है. महिला अधिकारी पर आतंकवाद का कथित महिमा मंडन करने का आरोप है.

महबूबा ने इस मामले में अधिकारी का समर्थन करते हुए कहा कि नए कश्मीर में जुल्मों से महिलाओं को भी नहीं बख्शा जा रहा है. क्या वाकई ? नहीं तो फिर वह ऐसा बयान क्यों दे रही हैं.

याद दिला दें कि जम्मू-कश्मीर के कुलगाम जिले की एसपीओ सायमा अख्तर को कथित तौर पर आतंकवाद का महिमामंडन करने के आरोप में गिरफ्तार कर सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है.

महबूबा ने ट्वीट किया, सायमा अख्तर को उनके घर में बार-बार अकारण तलाशी लिए जाने से उचित प्रश्न उठाने पर यूएपीए के तहत आरोपी बनाया गया है. यह समझा जा सकता है कि सायमा की मां के बीमार होने के कारण उनकी चिंता और बढ़ गई है. नए कश्मीर में क्रूरता से महिलाओं को भी नहीं बख्शा जा रहा.

पुलिस ने पहले कहा था कि महिला एसपीओ को कुलगाम जिले से गिरफ्तार किया गया है. आईएएनएस न्यूज एजेंसी के अनुसार, आतंकवाद को महिमामंडित करने और सरकारी अधिकारियों को उनके कर्तव्य के निर्वहन में बाधा डालने के लिए उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं.

पुलिस ने बताया कि सुरक्षा बलों को फ्रिसल गांव के कारेवा मोहल्ले में आतंकवादियों की मौजूदगी की खुफिया जानकारी मिली थी, जिसके बाद वहां तलाश अभियान चलाया गया.अभियान के दौरान अख्तर ने कथित तौर पर आतंकवादियों को खोज रही टीम को अपना काम करने से रोका.

आरोप है कि महिला ने तलाश अभियान चला रहे दल को रोका और वह हिंसक हो गई.महिला ने आतंकवादियों के हिंसक कृत्यों का महिमामंडन करने वाले बयान भी दिए.

पुलिस के अनुसार, सायमा अख्तर ने अपने फोन से एक वीडियो बनाया और तलाश अभियान बाधित करने के इरादे से उसे सोशल मीडिया मंचों पर साझा किया.

मामले का संज्ञान लेते हुए, पुलिस ने महिला को गिरफ्तार कर लिया और बाद में उसे सेवा से हटा दिया. यदि पुलिस की बातों में दम है तो यह कुछ ठीक नहीं. महबूबा को ऐसी पुलिस कर्मी का बचाव करना ही है तो वह ऐसा कुछ नहीं कर रही थी.

सारी बातें मन गढ़ंत हैं, तो उसके सबूत पेश करें. इसके अलावा उन्हें एक महिला की घटना को घाटी की तमाम महिलाओं से जोड़कर देने वाले बयानों से भी बचना चाहिए. यइ डिजीटल जमाना है. कोई सबूत है तो सोशल मीडिया पर साझा कर सकती हैं.