हैदराबाद मुक्ति दिवसः निजाम की तरह दूसरे भी 1947 में भारत में नहीं हुए थे शामिल
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, हैदराबाद
भारतीय जनता पार्टी हमेशा हैदराबाद के अंतिम निजाम मीर उस्मान अली खान के 15 अगस्त, 1947 के बाद स्वतंत्र रहने के फैसले को लेकर हमले करती रहती है. उनके शासनकाल को अक्सर अत्याचारीश करार देते हुए उन्हें जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की जाती है. इसके अलावा अन्य बहुत सी बातें हैं, पर तथ्य कुछ और हैं. भगवा पार्टी को भी पता है कि यह तथ्य उसके लिए असुविधाजनक है. इसके बावजूद अंतिम निजाम पर हला करने का हमेशा रास्ता ढूंढा जाता है.
हैदराबाद राज्य को 17 सितंबर 1948 को ऑपरेशन पोलो के माध्यम से भारत में मिलाया गया था. यह हैदराबाद राज्य के खिलाफ एक सैन्य आक्रमण था जिसे उस्मान अली खान की सरकार के साथ बातचीत के बाद तत्कालीन भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया था. दोनों पक्षों ने उससे पहले एक वर्ष की अवधि के लिए 29 नवंबर, 1947 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.
तेलंगाना, जो हैदराबाद राज्य का हिस्सा है, में भी किसान विद्रोह देखा जा रहा था. जो 1946 में शुरू हुआ और 21 अक्टूबरए 1951 को समाप्त हुआ. भाजपा, आसानी से इस सब की उपेक्षा करती रही है और केवल उस्मान अली खान के स्वतंत्र रहने के फैसले पर ध्यान केंद्रित करती है. इसमें आरोप लगाया जाता है कि 17 सितंबर, 1948 को जब सेना ने कमान संभाली, वह राज्य के लोगों के लिए मुक्ति थी.
इसलिए, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र ने घोषणा की कि वह 17 सितंबर से शुरू होने वाले हैदराबाद मुक्ति दिवस कार्यक्रम का आयोजन करेगा. हालांकि यह हर कोई समझता है कि भगवा पार्टी केवल अंतिम निजाम के नाम और उनके धर्म को देखते हुए यह सब कर रही है. भाजपा यह सब तेलंगाना में जमीन तलाशने के लिए राजनीतिक एजेंडा सेट कर रही है.
जम्म-कश्मीर के हिंदू राजा ने भी चुनी आजादी
कश्मीर की रियासत, अपनी भौगोलिक, राजनीतिक और जनसांख्यिकीय स्थिति हैदराबाद से अलग होने के बावजूद, एक बात समान थी. 1947 में अंग्रेजों के जाने के बाद स्वतंत्र भारत में इसका विवादास्पद परिग्रहण. महीनों की राजनीतिक अशांति और हिंसा के बाद, जिसने राज्य को जकड़ लिया था, इसके अंतिम शासक महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. मगर भाजपा इसपर कुछ नहीं बोलती. उलटे उनके जन्मदिन पर जम्मू कश्मीर में छुट्टी का ऐलान कर दिया. ध्यान रहे राजा हरि सिंह हिंदू और अंतिम निजाम मुसलमान थे.
भाजपा हैदराबाद के निजाम के विपरीत, जम्मू और कश्मीर के हरि सिंह को राजनीतिक रूप से तरजीह देती है. भले ही उन्होंने भी उस्मान अली खान की तरह स्वतंत्र रहने का फैसला किया. जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने एक दिन पहले घोषणा की कि उनके जन्मदिन पर अब से सार्वजनिक अवकाश होगा. जम्मू के लोगों की यह लंबे समय से मांग थी.शायद ही कभी किसी को हरि सिंह की निंदा करते हुए देखा गया हो. जिस तरह उस्मान अली खान के फैसलों की हर समय आलोचना होती रहती है.
ऑपरेशन पोलाः याद करने से खुल जाते हैं पुराने घाव
1956 में विभाजित होने से पहले हैदराबाद के तत्कालीन राज्य का एक नक्शा था.आजादी के समय, महाराजा हरि सिंह ने सांप्रदायिक संघर्षों के दौरान स्वतंत्र रहने का फैसला किया था.राज्य में विभाजन और अन्य आंतरिक संघर्षों के कारण पंजाब में दंगों की पृष्ठभूमि के साथ कश्मीर में यह तेज हो गया. 1947 में आजादी की पूर्व संध्या पर उस्मान अली खान की तरह महाराजा हरि सिंह ने सोचा कि उनका राज्य भारत और पाकिस्तान के साथ एक तटस्थ संबंध स्थापित कर सकता है. हालांकि, ऐसा होना नहीं था. तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली भारत सरकार निश्चित रूप से उग्र थी.
राज्य में, दूसरों की तरह, स्वतंत्र होने के लिए बुनियादी ढांचा था. हालांकि, इसे अपने लोगों का पूरा समर्थन नहीं मिला, जिनमें से कई वास्तव में भारतीय संघ में विलय करना चाहते थे. राज्य में कम्युनिस्टों ने भी त्रावणकोर में विद्रोह कर दिया था. एक महीने बाद जुलाई में त्रिवेंद्रम में रामास्वामी अय्यर की हत्या की कोशिश की गई.इस घटने बुरी तरह हिले महाराजा ने अंत में भारत में शामिल होने का फैसला किया. इस बारे में 30 जुलाई, 1947 को एक औपचारिक निर्णय लिया गया. वर्तमान केरल के अन्य हिस्सों, जैसे कोच्चिए को बाद में केरल बनाने के लिए त्रिवेंद्रम में मिला दिया गया था.
श्री चिथिरा थिरुनल और वीण्पीण् के बीच कई दौर की चर्चा और बातचीत के बाद मेनन राजा ने सहमति व्यक्त की कि राज्य को भारतीय में शामिल होना चाहिए.