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दिलीप मंडल में हिम्मत है तो शाह बानों की तरह बिल्किस बानो पर भी मुंह खोलें

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

दिलीप मंडल भारतीय पत्रकारिता के चर्चित नाम हैं, जिन्होंने मुख्यधारा के मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक, हर मंच पर अपनी विचारधारा का प्रभाव डाला है. मंडल पर आरोप लगते रहे हैं कि वे हिंदू-मुस्लिम विभाजन को बढ़ावा देने वाले मुद्दों को बार-बार उठाकर समाज में नफरत फैलाने की कोशिश करते हैं. खासकर, जब से सरकारी नीतियों पर उनकी टिप्पणियां ज्यादा प्रभावशाली हो गई हैं, तब से यह प्रवृत्ति और अधिक चर्चा में आ गई है.

शाह बानो केस पर दिलीप मंडल की राय

दिलीप मंडल ने हाल ही में शाह बानो केस को लेकर सोशल मीडिया पर एक लंबा पोस्ट लिखा. उनका कहना है कि कांग्रेस ने कट्टरपंथी सोच के दबाव में सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले को पलटकर न केवल न्याय के सिद्धांतों का हनन किया, बल्कि महिलाओं के अधिकारों को भी कमजोर किया.

मंडल ने लिखा,”सवाल पूछती ये आंखें! कांग्रेस को इन महिला का अभिशाप है. इस मजबूर औरत की हाय लगी है नेहरू-गांधी परिवार को.”उन्होंने शाह बानो के जीवन की कठिन परिस्थितियों का जिक्र करते हुए कहा कि कांग्रेस के तुष्टीकरण की राजनीति ने शाह बानो और उनके जैसे अन्य लोगों की न्याय की उम्मीदों को तोड़ दिया.

  • शाह बानो, एक 62 वर्षीय महिला, जिनका उनके पति ने तलाक दे दिया था, ने गुज़ारा भत्ता पाने के लिए कोर्ट का सहारा लिया.
  • सुप्रीम कोर्ट का फैसला: कोर्ट ने आदेश दिया कि उनके पति को हर महीने 179 रुपये गुज़ारा भत्ता देना होगा। यह आदेश मुस्लिम पर्सनल लॉ के खिलाफ नहीं था.
  • राजनीतिक दबाव: कट्टरपंथी संगठनों के विरोध के चलते, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक नया कानून पारित किया, जिससे सुप्रीम कोर्ट का फैसला निरस्त हो गया.

बिल्किस बानो केस पर मंडल की चुप्पी

दिलीप मंडल पर आरोप है कि वे मुद्दों को अपनी विचारधारा के अनुसार चुनते हैं. शाह बानो केस पर जिस मुखरता से उन्होंने लिखा, वैसी आवाज बिल्किस बानो केस पर उठाने में नाकाम रहे. यह विरोधाभास उनके आलोचकों को अवसर देता है कि वे उनकी नीयत पर सवाल उठाएं.

  • मामला: 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिल्किस बानो, जो पांच महीने की गर्भवती थीं, के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ और उनके परिवार के 14 सदस्यों की हत्या कर दी गई.
  • न्याय प्रक्रिया: सीबीआई की जांच और विशेष अदालत के फैसले के बाद 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.
  • रिहाई: 2022 में, गुजरात सरकार ने इन दोषियों को छूट देकर रिहा कर दिया.

छूट की आलोचना

इस फैसले पर व्यापक जनाक्रोश हुआ. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों और सामाजिक संगठनों ने इस पर सवाल उठाए. आलोचकों का कहना है कि यह फैसला महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों को जघन्य मानने की मौजूदा सोच के विपरीत है.

मंडल की विचारधारा पर सवाल

दिलीप मंडल विचारधारा के नाम पर selective outrage करते हैं. शाह बानो जैसे मामलों पर जहां वे कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करते हैं, वहीं बिल्किस बानो जैसे मामलों पर चुप रहते हैं, जो सरकार और प्रशासन की निष्क्रियता को उजागर करते हैं.

क्या कहना उचित है?

दिलीप मंडल जैसे व्यक्तित्वों का समाज में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है और दलित, वंचित तबकों के अधिकारों के लिए खड़े होते हैं. लेकिन विचारधारा के नाम पर यदि किसी पक्ष का पक्षपात किया जाए, तो यह पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है.

दिलीप मंडल की लेखनी और सोशल मीडिया पर उनकी सक्रियता ने कई लोगों को प्रेरित किया है, लेकिन उनके आलोचकों का कहना है कि उन्हें सभी मुद्दों पर समान रूप से मुखर होना चाहिए. शाह बानो से लेकर बिल्किस बानो तक, हर महिला के साथ हुए अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना ही सच्ची पत्रकारिता का धर्म है. क्या मंडल इस कसौटी पर खरे उतरते हैं? यह प्रश्न हमेशा बहस का विषय रहेगा.

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