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आईएफएफआई के ज्यूरी हेड का कहा- ‘द कश्मीर फाइल्स’ अश्लील और दुष्प्रचार फैलाने वाली फिल्म

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,पणजी

कश्मीरियों एवं कश्मीरी पंडित के बीच नए सिरे से नफरत का बीज बोने वाली फिल्म ‘ द कश्मीर फाइल्स’ को आईएफएफआई के ज्यूरी प्रमुख नादव लापिड ने ‘बेहूद दुष्प्रचार’ करार दिया है. मजे की बात यह है कि इस फिल्म को बीजेपी और इसकी प्रदेश सरकारों ने खूब प्रमोट किया था.

आईएफएफआई के ज्यूरी प्रमुख नादव लापिड ने महोत्सव के समापन समारोह के दौरान फिल्म द कश्मीर फाइल्स को अश्लील और अनुचित करार दिया. कहा कि महोत्सव की भावना को निश्चित रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए.

आलोचनात्मक चर्चा भी होनी चाहिए, जो कला और जीवन के लिए जरूरी है. इससे पहले सोमवार को लैपिड ने कहा था कि इस फिल्म को लेकर आईएफएफआई परेशान है.जूरी के अनुभव को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि उनमें से 14 (अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों) में सिनेमाई गुणवत्ता थी.

लैपिड ने कहा, हम सभी 15वीं फिल्म द कश्मीर फाइल्स से परेशान और स्तब्ध थे. यह हमें एक प्रचार, अश्लील फिल्म की तरह लगा, जो इतने प्रतिष्ठित फिल्म समारोह के कलात्मक प्रतिस्पर्धी वर्ग के लिए अनुपयुक्त है.

उन्होंने कहा, इस मंच पर आपके साथ इन भावनाओं को खुलकर साझा करने में मैं पूरी तरह से सहज महसूस कर रहा हूं. चूंकि, महोत्सव की भावना निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण चर्चा को भी स्वीकार कर सकती है, जो कला और जीवन के लिए आवश्यक है.

23 नवंबर को इस फिल्म के मुख्य अभिनेता अनुपम खेर ने द कश्मीर फाइल्स के बारे में कहा था कि इसने दुनिया भर के लोगों को 1990 के दशक में कश्मीरी पंडित समुदाय के साथ हुई त्रासदी के बारे में जागरूक होने में मदद की.

उन्होंने कहा था, यह सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म है. फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने फिल्म के लिए दुनियाभर के लगभग 500 लोगों का साक्षात्कार लिया. बढ़ती हिंसा के बाद 19 जनवरी, 1990 की रात पांच लाख कश्मीरी पंडितों को कश्मीर घाटी में अपने घरों और यादों को छोड़ना पड़ा. एक कश्मीरी हिंदू के रूप में मैं त्रासदी के साथ रहता था. लेकिन कोई भी इस त्रासदी को पहचान नहीं रहा था. दुनिया इस त्रासदी को छिपाने की कोशिश कर रही थी.

हालांकि इस फिल्म के निर्माता और कलाकारों ने इसमें निष्पक्षता नहीं बरती. इस दौरान आतंकवादियांे और सुरक्षा बलों के हाथों कितने कश्मीरी मारे गए इसे भी नहीं दिखाया गया. हद यह कि फिल्म के जरिया जेएनयू के खिलाफ भी हवा बनाने की कोशिश की गई.