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दो मेवातियों को जिंदा जलाने के मामले में मुस्लिम तंजीमें और रहनुमा सवालों के घेरे में

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

तकरीबन सप्ताह भर पहले हरियाणा के नूंह जिले के दो मेव मुसलमानों को जिंदा जलाने के मामलों मंे मुस्लिम तंजीमें और आरएसएस के साथ पींगे बढ़ाने वाले मुस्लिम बुद्धिजीवी सवालों के घेरे मंे हैं. इस घटना में आरएसएस के सहयोगी संगठन बजरंग दल के कुछ कार्यकर्ताओं पर आरोप लगा है. यह जांच का विषय है कि दो व्यक्तियों को जिंदा जलाने मंे उनकी भूमिका किस हद तक थी, पर इस मामले में हिंदुवादी संगठन कड़ा रूख अपनाए हुए हैं. उसके मुकाबले मुस्लिम अदारों और मुस्लिम बुद्धिजीवियों की भूमिका संदेह के घेरे में है.

इस मामले में वे बिलकुल खामोश हैं. यहां तक कि आरएसएस से दोस्ती गांठने में इनदिनों जुटे पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी भी गुरुग्राम में रहते नूंह जाकर जिंदा जलाकर मारे गए व्यक्तियों के परिवार से मुलाकात कर ढाढस बंधाना और सहयोग दिलाने का वादा करना भी जरूरी नहीं समझा. नूंह और गुरुग्राम की दूरी मात्र तीस-चालीस किलोमीटर है.

हिंदूवादी संगठन जलाकर मारे गए जुनैद और नासिर को गौ तस्कर बता रहे हैं. मगर सोशल मीडिया पर चल रही जानकारियों के अनुसार जुनैद अपनी जीविका चलाने के लिए नूंह जिले में परचून की दुकान चलाता था. दुकान ही परिवार का एक मात्र सहारा है. उसके मारे जाने के बाद से दुकान बंद है.

जुनैद के छह बच्चे हैं. उसके भाई की मानसिक दशा कुछ ठीक नहीं और उसके भी छह बच्चे हैं. इस हत्याकांड के बाद सभी बेसहारा हो गए. नासिर और जुनैद को राजस्थान के भरतपुर से अपहरण कर हरियाणा के भिवानी में कथित तौर पर जलाकर मारा गया. राजस्थान में करीब नौ विधायक हैं, पर इस मुद्दे पर उनकी भी बोलती बंद है.

एआईएमआईएम सुप्रीमो ओवैसी ने इसपर सवाल उठाते हुए कहा है कि वे जब हैदराबाद से जाकर पीड़ित परिवारों से मिल सकते हैं, तो राजस्थान के मुख्यमंत्री ऐसे मामलों में दूसरी जगह तो जा सकते हैं, पर नूंह जाने की उन्हंे फुर्सत नहीं. राजस्थान के मुस्लिम विधायक भी खामोश हैं.

जुनैद और नासिर के मारे जाने के बाद से अब तक दो-एक मुस्लिम संगठनों के निम्न दर्जे के लीडर्स और कांग्रेस के एक राज्यसभा सदस्य के अलावा कोई बड़ी मुस्लिम शख्सियत नहीं पहुंची है.

आरएसएस से पींग बढ़ाने वाली टीम के सदस्य एवं दिल्ली के पूर्व उप राज्यपाल नजीब जंग द्वारा दिए गए एक इंटरव्यू में कहा गया है कि वे लोग 2019 से संघ परिवार के संपर्क में हैं. यानि इस दौरान केंद्र की मुस्लिम विरोधी जितने भी फैसले आए उनका मौन समर्थन था. क्योंकि इस टीम के शाहिद सिद्दीकी, जमीरूद्दीन शाह, सईद, महमूद मदनी आदि सभी ने एक तरह से खामोशी अख्तियार कर रखी थी. जुनैद के मामले में भी उनकी बोलती बंद है. उनकी ओर से किसी ने भी अब तक संवैधानिक तरीके से मामले को उचित प्लेटफार्म पर नहीं उठाया है. इनकी बेरूखी की नतीजा है कि जामिया मिल्लिया के छात्र इस मुददे पर सड़कों पर उतर आए हैं.

इसके विपरीत हिंदूवादी संगठनों ने बुधवार को हरियाणा के पलवल जिले के हथीन में महापंचायत बुलाकर उनकी खुलेआम वकालत की जो दो व्यक्तियों को जिंदा जलाने के मामले में आरोपी बनाए गए हैं. इस महापंचायत में मेवात में गोकशी होने के आरोप लगाए गए. हालांकि इसमें भारी कमी आई है. इसके अलावा यह ला एंड आर्डर का मामला है. किसी को किसी की हत्या का अधिकार नहीं. मगर इस मुद्दे पर भी मुस्लिम संगठन और मुस्लिम बुद्धिजीवी केंद्र के विवादास्पद फैसलों की तरह खामोशी अख्तियार किए हुए हैं. इस बारे के केंद्रीय बजट में मुसलमानों से जुड़े अधिकांश मामलों मंे भारी कटौती कर दी गई. अल्पसंख्यक मंत्रालय गैर मुस्लिम संभाल रहा है, इसपर भी मुसलमानों के तथाकथित रहनुम खामोश हैं.