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आल इंडिया सूफी सज्जादानशीं के प्रस्ताव की आगड़ में पीएफआई पर प्रतिबंध का प्लाट तैयार ?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल की मौजूदगी में शनिवार को एक कार्यक्रम के दौरान आल इंडिया सूफी सज्जादानशीं काउंसिल ने जिस प्रकार प्रस्ताव पासकर पॉपुलर फ्रांट पर बंदिश लगाने की मांग उठाई है, उससे एक बड़ी कार्रवाई के संकेत मिल गए हैं. चूंकि पीएफआई पर कोई पहली बार प्रतिबंध लगाने की मांग नहीं उठी है. भारतीय जनता पार्टी और हिंदूवादी संगठन इससे पहले भी ऐसी ही मांगे उठाते रहे हैं. मगर ऐसी मांगे उठाते समय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल मौजूद नहीं रहे थे. उनकी मौजूदगी में दिल्ली में इस तरह की मांग उठाई गई है, जिसका वहां मौजूद मुस्लिम एवं दूसरे धर्मगुरूओं ने समर्थन किया.

अलग बात है कि इस प्रस्ताव की अब खिंचाई भी शुरू हो गई है. यहां तक कि काउंसिल सहित कार्यक्रम में मौजूद कई इस्लामिक स्कॉलर पर सवाल दागे जा रहे हैं. यहां तक आरोप लगाया जा रहा है कि शनिवार की मिटिंग में जितने लोग शामिल थे, वे खास इशरे पर खास मकसद के लिए इकट्ठे हुए थे. एक ने तो मिटिंग में शामिल एक मौलाना पर आतंकवादियों के करीब होने के भी आरोप लगाए हैं. ट्वीटर पर उक्त मौलाना की एक अन्य मौलाने के साथ वाली तस्वीर साझाकर उनके आतंकियों से संबंध होने का आरोप लगाया गया है. एक ने एक अन्य मौलाना पर कट्टरवादियों की हिमायत करने का भी आरोप लगाया है. हालांकि अभी तक इस मामले में कार्यक्रम के आयोजकों की ओर से कोई सफाई नहीं दी गई है.

बात यहीं तक नहीं थमी है. सोशल मीडिया पर कई हिंदूवादी नेताओं की तस्वीरें और वीडियो साझाकर मांग उठाया जा रहा है कि यदि पीएफआई पर लगाए जाने वाले आरोप सही हैं तो उसपर अवश्य कार्रवाई होनी चाहिए. साथ ही माहौल को तनावपूर्ण बनाने वाले दूसरे धार्मिक संगठनों के लोगों को भी नहीं बख्शा जाना चाहिए. यहां तक कहा गया है कि ऐसा ही एक अन्य कार्यक्रम कट्टरपंथी हिंदुओं के खिलाफ भी आयोजित किया जाना चाहिए.

बहरहाल, एनएसए ने शनिवार को इस कार्यक्रम में कहा था कि कुछ तत्व ऐसा माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जो देश के विकास को पटरी से उतार रहा है. अजीत डोभाल ने राष्ट्रीय राजधानी में सूफी मौलवियों के साथ एक अंतरधार्मिक बैठक में कहा, ऐसे तत्व धर्म और विचारधारा के नाम पर कड़वाहट और संघर्ष पैदा कर रहे हैं. यह पूरे देश को प्रभावित कर रहा है और देश के बाहर भी फैल रहा है.

अजीत डोभाल ने कहा, दुनिया में संघर्ष का माहौल है.अगर हमें इस माहौल का सामना करना है तो देश की एकता को एक साथ रखना और एक मजबूत देश के रूप में आगे बढ़ना जरूरी है. देश पिछले कुछ वर्षों से जो प्रगति कर रहा है, उसका लाभ प्रत्येक भारतीय को मिलेगा. उन्होंने कहा, कुछ लोग जो धर्म या विचारधारा के नाम पर लोगों के बीच हिंसा या संघर्ष पैदा करने की कोशिश करते हैं, यह पूरे देश को प्रभावित करता है. यह देश के अंदर और देश के बाहर भी होता है.

एनएसए अजीत डोभाल ने कहा कि चरमपंथियों के खिलाफ आवाज उठाने का समय आ गया है. उन्होंने कहा, हमें मूकदर्शक बने रहने के बजाय अपनी आवाज को मजबूत करना होगा और अपने आपसी मतभेदों को दूर करने के लिए जमीनी स्तर पर काम करना होगा. हमें भारत के हर संप्रदाय को यह अहसास दिलाना है कि हम एक साथ एक देश हैं. हमें इस पर गर्व है और हर धर्म को यहां अपनी आजादी के साथ रहने का अधिकार है.

इस दौरान डोभाल ने पीएफआई को लेकर सीधे तौर पर कोई बात नहीं की. मगर उनकी मौजूदगी में बैठक में मौजूद आल इंडिया सूफी सज्जादानशीं काउंसिल के चेयरमैन सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने चरमपंथी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने पर जोर दिया. उन्होंने कहा, हम किसी भी दुर्घटना की निंदा करते हैं. अब समय निंदा करने का नहीं बल्कि कुछ करने का है. देश में पैर जमाने वाले तमाम चरमपंथी संगठनों को बैन कर देना चाहिए.

एनएसए अजीत डोभाल की अध्यक्षता में हुई अंतरधार्मिक बैठक में विभिन्न धर्मों के नेताओं ने भाग लिया. अलग बात है कि इस बैठक में मुसलमानों के गुस्से को शांत करने के लिए भाजपा से निलंबित नूपुर शर्मा की गिरफ्तारी की मांग किसी ने भी नहीं उठाई. जब नूपुर शर्मा के बारे में सुप्रीम कोर्ट के एक जज साफ तौर से कह चुके हैं कि आज देश में जो कुछ हो रहा है इसकी एकमात्र वजह नूपुर शर्मा हैं.

रही बात पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की तो भाजपा, हिंदूवादी संगठन और खुफिया एजेंसियां आरोप लगाती रही हैं कि सीएए को लेकर देशभर में सरकार विरोध अभियान चलान में यही संगठन पर्दे के पीछे से अपनी भूमिका निभा रहा था. इस संगठन पर दिल्ली सहित विभिन्न शहरों में दंगे का माहौल तैयार करने का भी आरोप है. यहां तक कहा जाता है कि कर्नाटक में हाल के दिनों में जो हिंसक वारदातें हुई हैं, उसमें अप्रत्यक्ष एवं परोक्ष से रूप से पीएफआई का हाथ रहा है.

पीएफआई क्या है ?

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया या पीएफआई एक चरमपंथी इस्लामिक संगठन बताया जाता है, जो अपने को पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक में आवाज उठाने वाला बताता है.बताते हैं कि संगठन की स्थापना 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट के उत्तराधिकारी के रूप में हुई. संगठन की जडं़े केरल के कालीकट से जुड़ी हैं. इसका मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में है.

एक मुस्लिम संगठन होने के कारण इस संगठन की ज्यादातर गतिविधियां मुस्लिमों के इर्द गिर्द घूमती हैं. पूर्व में तमाम मौके ऐसे भी आए जब ये मुस्लिम आरक्षण के लिए सड़कों पर आया.संगठन 2006 में उस वक्त सुर्खियों में आया जब दिल्ली के रामलीला मैदान में इनकी तरफ से नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया. तब लोगों की एक बड़ी संख्या ने इस कांफ्रेंस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी.

बात वर्तमान की हो तो आज देश में 24 राज्य ऐसे हैं जहां पीएफआई पहुंच चुका है. अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है. संगठन खुद को न्याय, स्वतंत्रता और सुरक्षा का पैरोकार बताता है. मुस्लिमों के अलावा देश भर के दलितों, आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार के लिए समय समय पर मोर्चा खोलता रहता है.

पीएफआई का विवादों से है पुराना नाता

ऐसा बिलकुल नहीं है कि पीएफआइ में सब अच्छा ही अच्छा है. तमाम विवाद हैं जिन्होंने समय समय पर पीएफआइ के दरवाजे पर दस्तक दी है. बात अगर एक संगठन के तौर पर पीएफआइ की हो तो इसे सिमी (स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) का बी विंग कहा जाता है.

माना जाता है कि अप्रैल 1977 में निर्मित संगठन सिमी पर जब 2006 में बैन लगा उसके फौरन बाद ही शोषित मुसलमानों, आदिवासियों और दलितों के अधिकार के नाम पर पीएफआइ का निर्माण कर लिया गया.

संगठन की कार्यप्रणाली सिमी से मिलती जुलती है. आज पीएफआइ के बैन की मांग तेज है मगर ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब संगठन को बैन करने की बात हुई है.संगठन को बैन किए जाने की मांग 2012 में भी हुई थी. दिलचस्प बात यह है कि तब खुद केरल की सरकार ने पीएफआइ का बचाव करते हुए अजीब ओ गरीब दलील दी थी.

केरल हाई कोर्ट को बताया था कि ये सिमी से अलग हुए सदस्यों का संगठन है जो कुछ मुद्दों पर सरकार का विरोध करता है. ध्यान रहे कि ये सवाल जवाब केरल की सरकार से तब हुए थे जब उसके पास संगठन द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर आजादी मार्च किए जाने की शिकायत आई थीं.

हाई कोर्ट ने सरकार के दावों को खारिज कर दिया था मगर बैन को बरकरार रखा. आरोप है कि केरल पुलिस पीएफआइ कार्यकर्ताओं के पास से बम, हथियार, सीडी और तमाम ऐसे दस्तावेज बरामद किए हैं जिनमें पीएफआई अल कायदा और तालिबान का समर्थन करती नजर आ रही थी.

पीएफआई कितना खतरनाक है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि लव जिहाद से लेकर दंगा भड़काने, शांति को प्रभावित करने, लूटपाट करने और हत्या में इसके कार्यकर्ताओं का नाम आ चुका है. माना जाता है कि संगठन एक आतंकवादी संगठन है जिसके तार कई अलग अलग संगठनों से जुड़े हैं.

पीएफआइ बैन पर राजनीति

इस बात में कोई शक नहीं कि पीएफआई एक ऐसा संगठन है जो कट्टरपंथ को प्रमोट करता है. मगर पीएफआइ के बैन पर भाजपा, कांग्रेस समेत लगभग सभी दलों की अपनी अलग-अलग राजनीति है.बिहार में राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद इस पर प्रतिबंध लगाने का विरोध करने वालों में से हैं. पीएफआई खुद को सामाजिक संगठन कहता है, पर इस संगठन ने कभी चुनाव नहीं लड़ा है. संगठन के सदस्यों का रिकॉर्ड भी नहीं रखा जाता.

अन्य संगठनों से संबंध

बताते हैं कि पीएफआइ का एनडीएफ के अलावा कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी , तमिलनाडु के मनिथा नीति पासराई , गोवा के सिटिजन्स फोरम, राजस्थान के कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशनल सोसाइटी, आंध्र प्रदेश के एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस समेत अन्य संगठनों के साथ मिलकर पीएफआई ने कई राज्यों में अपनी पैठ बना ली है.

इस संगठन की कई शाखाएं हैं. जिसमें महिलाओं के लिए- नेशनल वीमेंस फ्रंट और विद्यार्थियों के लिए कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया.

मजेदार बात यह है कि डोभाल के बयान और आल इंडिया सूफी सज्जादानशीं के प्रस्ताव के खिलाफ पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का कोई बयान अब तक नहीं आया है. उसके संगठन को लेकर इतनी बड़ी बात कहे जाने के बावजूद इसके पदाधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं. पीएफआई का शनिवार को दिल्ली के झंडावालान में आरएसएस के कार्यालय के पास एक कार्यक्रम होने वाला था. मगर विरोध के चलते इसने अपना कार्यक्रम रदद कर दिया.