गुजरात स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा से मुसलमानों का बढ़ता प्रतिनिधित्व: राजनीतिक बदलाव या रणनीतिक दांव?
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो,अहमदाबाद
गुजरात में हाल ही में संपन्न हुए स्थानीय निकाय चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से मुस्लिम समुदाय का बढ़ता प्रतिनिधित्व चर्चा का विषय बन गया है। इस चुनाव में भाजपा के टिकट पर जीतने वाले मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जिससे कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) जैसे विपक्षी दलों की चिंताएं बढ़ गई हैं।
भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवारों की जीत का आंकड़ा
गुजरात में इस बार भाजपा ने 103 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, जिनमें से अधिकांश ने जीत दर्ज की। इनमें 33 महिला उम्मीदवार भी शामिल हैं। पार्टी ने स्थानीय निकायों में 1,712 सीटों में से 1,608 पर जीत हासिल की, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि मुस्लिम समुदाय के एक वर्ग का समर्थन भी भाजपा को मिल रहा है।
इस जीत का एक अहम पहलू यह है कि 66 नगर पालिकाओं में भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। अहमदाबाद, पट्टन, खेड़ा, पंचमहल और जूनागढ़ जैसे जिलों में मुस्लिम उम्मीदवारों की सफलता ने भाजपा की रणनीति को और मजबूत किया है। पहले इन क्षेत्रों में भाजपा को मुस्लिम मतदाताओं के समर्थन के लिए संघर्ष करना पड़ता था।
क्या भाजपा का रुख मुसलमानों के प्रति बदला है?
हालांकि, यह चुनावी सफलता भाजपा की समावेशी राजनीति की ओर इशारा करती है, लेकिन आलोचकों का मानना है कि पार्टी की समग्र नीतियां अब भी मुस्लिम समुदाय को हाशिए पर रखने वाली रही हैं। नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और सांप्रदायिक घटनाओं से जुड़ी भाजपा की छवि को देखते हुए कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह चुनावी सफलता वास्तविक समावेशिता नहीं, बल्कि मात्र एक राजनीतिक रणनीति हो सकती है।
नगर पालिकाओं में मुस्लिम प्रतिनिधियों की संख्या 2018 में 252 से बढ़कर इस चुनाव में 275 हो गई। भाजपा ने इनमें से 28% सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस को 39% सीटें मिलीं। आम आदमी पार्टी (AAP) ने 7% मुस्लिम प्रतिनिधित्व वाली सीटों पर जीत दर्ज की, जिसमें 13 मुस्लिम उम्मीदवारों की जीत शामिल है। इनमें से 11 उम्मीदवार केवल जामनगर के सलाया नगर पालिका से विजयी हुए।
प्रधानमंत्री मोदी की रणनीति और भाजपा की मुस्लिम नीति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2023 में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में हाशिए पर पड़े मुसलमानों तक पहुंचने की जरूरत पर बल दिया था। उन्होंने यह भी कहा था कि ऊंची जातियों के मुसलमान अपने ही समुदाय के पिछड़े वर्गों का शोषण करते आए हैं।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) के अनुसार, भारत में मुस्लिम समुदाय का 40.7% हिस्सा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के तहत आता है। भाजपा ने इसी वर्ग को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीति बनाई है। पार्टी ने हजारों ‘संगठन संवाद’ कार्यक्रम आयोजित किए, जिसमें भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चे ने देशभर में लगभग 1,500 विधानसभा क्षेत्रों को कवर किया। इस रणनीति के तहत भाजपा ने लगभग 50 लाख मुस्लिम मतदाताओं तक अपनी पहुंच बनाई।
क्या मुस्लिम मतदाता भाजपा की ओर झुक रहे हैं?
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 8.5% मुस्लिम वोट मिले थे। यह आंकड़ा 2019 के चुनाव में थोड़ा बढ़ा, लेकिन अब स्थानीय निकाय चुनावों में मुस्लिम मतदाताओं का झुकाव बढ़ता दिख रहा है।
गुजरात में इस बार भाजपा के 63% मुस्लिम उम्मीदवार जीतकर आए, जिसमें 21 निर्विरोध चुने गए। यह भाजपा की बदलती राजनीतिक रणनीति का संकेत है। पार्टी अब उन सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने पर विचार कर रही है, जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
गुजरात का राजनीतिक परिदृश्य: कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी?
भाजपा की बदली रणनीति कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। 2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अब तक की सबसे कम 17 सीटें मिली थीं, जो अब घटकर 12 रह गई हैं। वर्तमान में कांग्रेस के एकमात्र मुस्लिम विधायक इमरान खेड़ावाला हैं।
विपक्षी दलों का मानना है कि भाजपा का यह कदम केवल चुनावी रणनीति है, लेकिन यदि भाजपा मुस्लिम उम्मीदवारों को विधानसभा चुनावों में भी टिकट देती है, तो यह गुजरात की राजनीति में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा।
क्या यह गुजरात की राजनीति में स्थायी बदलाव लाएगा?
गुजरात में भाजपा की यह नई रणनीति भविष्य में विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भी देखने को मिल सकती है। यदि भाजपा इस दिशा में आगे बढ़ती है, तो यह भारतीय राजनीति के लिए एक नया अध्याय होगा।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा अपनी इस रणनीति को कितनी दूर तक ले जाती है और क्या यह परिवर्तन गुजरात की राजनीति को स्थायी रूप से बदल सकता है?