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भारत ने इजरायल के प्रति बदला रूख, मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन के पक्ष में किया वोट

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में भारत ने पूर्वी येरुशलम सहित अधिकृत फिलिस्तीनी क्षेत्र और कब्जे वाले सीरियाई गोलान में जबरन इजरायली बस्तियां बसाने के खिलाफ मतदान किया.संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, हंगरी, इजराइल, मार्शल द्वीप, माइक्रोनेशिया और नाउरू के संघीय राज्यों सहित सात देशों ने प्रस्ताव का विरोध किया, जबकि 18 ने मतदान से अनुपस्थित रहने का फैसला किया.

भारत उन 145 देशों में शामिल है, जिन्होंने बांग्लादेश, भूटान, चीन, फ्रांस, जापान, मलेशिया, मालदीव, रूस, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका और ब्रिटेन के साथ प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया.यह प्रस्ताव पूर्वी येरुशलम सहित अधिकृत फिलिस्तीनी क्षेत्र और कब्जे वाले सीरियाई गोलान में निपटान गतिविधियों और भूमि की जब्ती, संरक्षित व्यक्तियों की आजीविका में व्यवधान, नागरिकों के जबरन स्थानांतरण और कब्जे से जुड़ी किसी भी गतिविधि की निंदा करता है.

प्रस्ताव पुनः पुष्टि करता है कि पूर्वी यरुशलम सहित अधिकृत फिलिस्तीनी क्षेत्र और कब्जे वाले सीरियाई गोलान में इजरायली बस्तियां अवैध हैं और शांति और आर्थिक और सामाजिक विकास में बाधा हैं.प्रस्ताव में पूर्वी यरुशलम और कब्जे वाले सीरियाई गोलान सहित सभी कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र में सभी इजरायली निपटान गतिविधियों को तत्काल और पूर्ण रूप से बंद करने की अपनी मांग दोहराई गई.

एक सरकारी सूत्र ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया कि हालांकि संशोधन के पक्ष में 88 वोट पड़े, लेकिन यह विजयी दो-तिहाई बहुमत हासिल नहीं कर सका. सूत्र ने कहा, संकल्प के अंतिम पाठ में हमारे दृष्टिकोण के सभी तत्वों को शामिल नहीं किए जाने के अभाव में, हमने इसे अपनाने पर मतदान में भाग नहीं लिया.यह घटनाक्रम तब सामने आया है, जब भारत ने गाजा पट्टी में इजराइल और हमास के बीच तत्काल, टिकाऊ और निरंतर मानवीय संघर्ष विराम के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया था.

193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अक्टूबर में फिर से शुरू हुए 10वें आपातकालीन विशेष सत्र में बैठक की और जॉर्डन द्वारा प्रस्तुत मसौदा प्रस्ताव पर मतदान किया और बांग्लादेश, मालदीव, पाकिस्तान, रूस और दक्षिण अफ्रीका सहित 40 से अधिक देशों द्वारा सह-प्रायोजित किया गया.

पिछले महीने यूएनजीए के प्रस्ताव के बाद अपने वोट के स्पष्टीकरण में, संयुक्त राष्ट्र में भारत के उप स्थायी प्रतिनिधि योजना पटेल ने कहा था, ऐसी दुनिया में जहां मतभेदों और विवादों को बातचीत से हल किया जाना चाहिए, इस प्रतिष्ठित निकाय को हिंसा का सहारा लेने पर गहराई से चिंतित होना चाहिए. वह भी तब, जब यह इतने बड़े पैमाने और तीव्रता से हो रहा हो कि यह बुनियादी मानवीय मूल्यों का अपमान है.”

पटेल ने इजराइल में सात अक्टूबर को हुए आतंकी हमलों को चैंकाने वाला बताते हुए कहा कि ये निंदा के पात्र हैं. उन्हांेने कहा,“आतंकवाद एक घातक बीमारी है. इसकी कोई सीमा, राष्ट्रीयता या नस्ल नहीं. दुनिया को आतंकवादी कृत्यों के औचित्य पर विश्वास नहीं करना चाहिए. आइए हम मतभेदों को दूर रखें. एकजुट हों. आतंकवाद के प्रति शून्य-सहिष्णुता का दृष्टिकोण अपनाएं.