भारत चांद पर, पाकिस्तान में धरती पर चांद
इमाद अहमद / मुस्लिम नाउ ब्यूरो/ नई दिल्ली/ इस्लामाबाद
चंद्रयान 3 की सफलता को लेकर सोशल मीडिया पर पाकिस्तान का एक वीडियो भारत मंे मजका का विषय बना हुआ है. इस वीडियो में एक यूट्यूबर पाकिस्तानी अवाम से चंद्रयान 3 की सफलता पर प्रतिक्रिया ले रहा है. इस दौरान वह पाकिस्तान के कुछ नौजवान ने पूछता है कि उसका चंद्रयान 3 की सफलता पर क्या कहना है ? जवाब में वह भारत की ओर इशारा कर कहता है कि वो तो पैसे खर्च कर चांद पर गए हैं. हम तो पहले से चांद पर रह रहे हैं. चांद पर न पानी है, न गैस है और न ही बिजली. पाकिस्तान में भी यह तीनों नहीं है.’’
बहरहाल, यह तो रही मकाज की बात, पर पाकिस्तानी वैज्ञानिकों से इस विषय पर बात करें तो हकीकत कुछ इससे अलग नहीं है. 23 अगस्त 2023 भारत के लिए एक ऐसा दिन साबित हुआ जिसने अपना नाम वैश्विक क्षितिज पर उन देशों की सूची में शामिल कर लिया जो चंद्रमा तक पहुंचने में कामयाब रहे.भारत का चंद्रयान-3 मिशन बुधवार शाम करीब 6 बजे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा.
परिणामस्वरूप, भारत चंद्रमा के इस हिस्से पर अंतरिक्ष यान उतारने वाला पहला देश बन गया और संयुक्त राज्य अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ और चीन के बाद साॅफ्ट लैंडिंग करने वाला चैथा देश बन गया.इस सफल लैंडिंग के बाद भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के मुख्यालय के संचालन केंद्र में जश्न मनाया गया.
चंद्रयान-3 मिशन 14 जुलाई को दक्षिण भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश से रवाना हुआ और 40 दिनों की यात्रा के बाद 23 अगस्त को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा.
इस ऐतिहासिक सफलता के बाद जहां भारत में जश्न का माहौल है, वहीं पाकिस्तानी सोशल मीडिया यूजर्स पड़ोसी देश को बधाई देते नजर आए, लेकिन साथ ही कुछ लोगों ने न सिर्फ पाकिस्तान के स्पेस एंड एयरोस्पेस रिसर्च मिशन (स्पार्को) के प्रदर्शन पर सवाल उठाए, उन्होंने यह भी पूछा कि क्या कोई उनके कार्यालयों को जानता है ?
ऐसे में विचार आया कि पाकिस्तान के अंतरिक्ष कार्यक्रम के बारे में पता लगाया जाए और स्पार्को के अधिकारियों से पूछा जाए कि इस अंतरिक्ष दौड़ में हम कहां खड़े हैं और क्या हम भारत की तरह सफल हो सकते हैं?लेकिन इस सरकारी संस्थान से इन सवालों के जवाब जानना काफी चुनौती भरा साबित हुआ.
बड़ी मुश्किल से जब इस्लामाबाद में स्पार्को के मुख्य कार्यालय में एक अधिकारी से संपर्क किया गया तो उन्होंने अपना नाम और अंतरिक्ष कार्यक्रम के बारे में बोलने से साफ इनकार कर दिया. कहा कि कल से सोशल मीडिया पर ट्रोल होने के बाद वे इस बारे में कुछ भी बात नहीं करेंगे. उनके नाम मत बताओ. आपको सचिव स्पार्को या मीडिया के लिए फोकल पर्सन से संपर्क करना चाहिए.
थोड़ी सी कोशिश करके हमने उनसे ये जानने की कोशिश की कि भारत चांद पर क्यों पहुंचा और हम क्यों पीछे हैं ? तो फोन रखने से पहले उन्होंने बस इतना ही कहा कि आप देखिए हमारा चीफ कौन है और इसरो कौन है, आपको खुद पता चल जाएगा कि भारत चांद पर क्यों है और हम धरती पर क्यों हैं ?
2001 से पहले लॉन्च किए गए सभी उपग्रह स्पार्को पूरी तरह से अपनी टीम का काम थे, जबकि बाद के सभी लॉन्च में विभिन्न देशों की मदद शामिल थी.स्पार्को से किसी भी तरह से जुड़ा कोई भी व्यक्ति सवालों का जवाब देने को तैयार नहीं.
पाकिस्तान का अंतरिक्ष कार्यक्रम कहां खड़ा है और भारत का प्रदर्शन कैसा रहा है? भौतिकी के एक प्रमुख शिक्षक परवेज होदभाई ने बताया कि पाकिस्तान का अंतरिक्ष कार्यक्रम लगभग अस्तित्वहीन है. स्पार्को पहले बनाया गया और उसके बाद इसरो का निर्माण हुआ. स्पार्को द्वारा बनाए गए उपग्रह, जिन्हें चीनी रॉकेटों पर कक्षा में स्थापित किया गया था, वे भी खराब निकले.
उन्होंने कहा कि हमारे पास वो दिमाग नहीं है. हमारे यहां वैज्ञानिक विषय तो पढ़ाए जाते हैं, लेकिन जिस तरह से पढ़ाए जाने चाहिए, उस तरह नहीं. हमारी समस्या शिक्षा है.यह पूछे जाने पर कि क्या स्पार्को को संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ रहा है? परवेज होदभाई ने कहा, हमारे पास संसाधन की कोई समस्या नहीं है.चंद्रमा पर यह मिशन डेढ़ एफ-16 विमान की लागत के बराबर है. हमारे पास प्रतिभा की कमी है. भारत में कई वैज्ञानिक हैं और हम यहां केवल डिग्रियां बांटते हैं.
हमारे बीच तार्किक और वैज्ञानिक सोच विकसित नहीं हुई है. यह केवल देश की ही नहीं बल्कि लोगों की भी समस्या है और कई सौ वर्षों से यही स्थिति है.
इस सवाल पर कि अगर स्पार्को के प्रमुख (इस समय मेजर जनरल अमीर नदीम प्रमुख हैं) वैज्ञानिक होते तो क्या चीजें अलग हो सकती थीं? उन्होंने कहा कि मुखियाओं का प्रभाव कुछ हद तक ही होता है. अब इसका नेतृत्व एक जनरल कर रहे हैं, लेकिन जब वह वैज्ञानिक थे तो वह भी अजीब हरकतें करते थे. जनरलों के आने से पहले भी हालात इतने अच्छे नहीं थे.
ज्ञात हो कि इसकी स्थापना 16 सितंबर 1961 को हुई थी और इसके पहले अध्यक्ष पाकिस्तान के जाने-माने नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक डॉ. अब्दुस सलाम थे.
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