अंतरधार्मिक विवाह: सामाजिक ताने-बाने पर सवाल या नफरत फैलाने की कोशिश?
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां हर नागरिक को अपने जीवनसाथी चुनने का अधिकार है, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या समुदाय से हो. कानून और संविधान भी इस अधिकार की गारंटी देते हैं. फिर भी, जब अंतरधार्मिक विवाह की बात आती है, तो अक्सर यह विषय सामाजिक और राजनीतिक विवादों का केंद्र बन जाता है.
हाल ही में राजस्थान के जोधपुर में दो मुस्लिम युवकों और उनकी हिंदू महिला साथी के विवाह के आवेदन पर एक ऐसा विवाद खड़ा हो गया है, जिसने न केवल सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित किया है बल्कि नफरत फैलाने वालों को भी एक मौका दे दिया है.
मामला क्या है?
मोहम्मद अल्ताफ और माया कंवर राठौर तथा सैयद और भूमिका नाम के दो जोड़ों ने जोधपुर के जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष अंतरधार्मिक विवाह के लिए आवेदन किया था. यह विवाह भारतीय संविधान और कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए किया जा रहा था. लेकिन, जैसे ही इन आवेदनों की जानकारी सार्वजनिक हुई, कुछ असामाजिक तत्वों ने इस पर आपत्ति जताई और सोशल मीडिया पर इन जोड़ों के व्यक्तिगत दस्तावेज और तस्वीरें साझा करते हुए उन्हें बदनाम करने की कोशिश शुरू कर दी.
सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने की साजिश
एक शख्स, जिसने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी बताया, ने इन जोड़ों के आवेदन पत्र और तस्वीरें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर साझा कर लिखा:”जोधपुर में दो हिंदू बच्चियां लव जिहाद में फंसकर मुस्लिम लोगों से शादी करने जा रही हैं। कृपया इन लड़कियों के परिवार की मदद करें और इनके जीवन को बर्बाद होने से बचाएं.”
इस पोस्ट में आगे कहा गया:”प्रशासन, पुलिस या हिंदू संगठनों के माध्यम से इन लड़कियों को बचाने का प्रयास करें.”यह बयान न केवल व्यक्तिगत गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन करता है बल्कि समाज में नफरत और वैमनस्य फैलाने की एक सोची-समझी कोशिश भी है.
कानूनी और सामाजिक पहलुओं पर सवाल
यहां सवाल उठता है कि क्या कानून का पालन करते हुए अंतरधार्मिक विवाह करना अपराध है? यदि नहीं, तो ऐसे विवाहों पर आपत्ति जताने का अधिकार किसी को क्यों होना चाहिए?
भारतीय कानून, विशेष रूप से विशेष विवाह अधिनियम, 1954, अंतरधार्मिक विवाहों की अनुमति देता है. इसमें दोनों पक्षों को बालिग होना, उनकी सहमति और प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है. ऐसे में यदि दोनों पक्ष कानूनी रूप से विवाह कर रहे हैं, तो इसमें हस्तक्षेप करना न केवल अवैध है बल्कि असंवैधानिक भी.
नफरत फैलाने वालों की मंशा
जो लोग इन विवाहों को “लव जिहाद” का नाम देकर प्रचारित कर रहे हैं, उनकी मंशा स्पष्ट है. ये लोग देश के एक वर्ग के खिलाफ नफरत और असहिष्णुता फैलाना चाहते हैं. यदि उन्हें अंतरधार्मिक विवाहों पर आपत्ति है, तो उन्हें सरकार से कानून में बदलाव की मांग करनी चाहिए या इस विषय पर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए. लेकिन, दुर्भाग्यवश, उनकी प्राथमिकता समाज में शांति और सौहार्द्र भंग करना है.
गोपनीयता का उल्लंघन और संभावित खतरे
सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन लोगों ने सोशल मीडिया पर इन जोड़ों के व्यक्तिगत दस्तावेज और तस्वीरें साझा कीं, जिससे उनकी सुरक्षा को गंभीर खतरा हो सकता है. यदि इन जोड़ों को शारीरिक या मानसिक रूप से नुकसान पहुंचता है, तो इसका जिम्मेदार कौन होगा?
समाज की जिम्मेदारी और भविष्य की राह
अंतरधार्मिक विवाह केवल दो व्यक्तियों का निजी मामला है, जिसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए. समाज को चाहिए कि वह कानून और संविधान का सम्मान करे और नफरत फैलाने वालों की साजिशों को समझे.
सरकार और प्रशासन को इस तरह के मामलों में सख्ती से कदम उठाने चाहिए. न केवल नफरत फैलाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए बल्कि पीड़ित जोड़ों को सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित किया जाना चाहिए.
भारत जैसे विविधता वाले देश में, जहां अनेक धर्म और समुदाय एक साथ रहते हैं, वहां परस्पर सम्मान और सहिष्णुता सबसे बड़ी आवश्यकता है. अंतरधार्मिक विवाह कोई अपराध नहीं है, बल्कि यह सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने की एक सकारात्मक पहल है. नफरत फैलाने वालों को नकारते हुए समाज को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर नागरिक अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग स्वतंत्र रूप से कर सके.