अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक सम्मान: अल्जीरिया की यूनिवर्सिटी में डॉ. सना शालान के दो शोध प्रबंधों पर सफल चर्चा
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो,मसीला (अल्जीरिया)
अल्जीरिया की प्रतिष्ठित मुहम्मद बुदियाफ यूनिवर्सिटी के कला एवं भाषाविज्ञान संकाय में अदबी इतिहास का एक महत्वपूर्ण क्षण उस समय दर्ज हुआ, जब वहां की अरबी भाषा एवं साहित्य विभाग में जॉर्डन की मशहूर लेखिका व शिक्षाविद् प्रो. डॉ. सना शालान (बिंत नुऐमा) के साहित्यिक योगदान पर केंद्रित दो स्वतंत्र एमए शोध प्रबंधों की गंभीरता से चर्चा की गई। यह चर्चा महज शैक्षणिक औपचारिकता नहीं, बल्कि समकालीन अरबी साहित्य को समझने की एक प्रेरणादायक कोशिश बन गई।


शोध का केंद्र बनीं दो महत्वपूर्ण नाट्यकृतियाँ
पहला शोध प्रबंध सादिया क़ीतून और हलीमा बोनीफ नामक शोधार्थियों ने प्रस्तुत किया, जिसका शीर्षक था:
“सना शालान की नाट्यकृति ‘रिहला म’ अल-मुअल्लिमा फरहा’ में निहित शैक्षिक मूल्य”
(العنوان: القيم التربوية في مسرحية “رحلة مع المعلمة فرحة” لسناء الشعلان)
वहीं दूसरा शोध प्रबंध नज़ीहा अल्लाल और शहीनाज़ साको ने प्रस्तुत किया, जिसका विषय था:
“फिलिस्तीनी प्रश्न: घोषणात्मक बनाम सांकेतिक प्रस्तुति – सना शालान की नाटक ‘सेल्फ़ी म’ अल-बह्र’ के संदर्भ में”
(العنوان: القضية الفلسطينية بين التصريح والترميز: مسرحية “سيلفي مع البحر” لسناء الشعلان أنموذجاً)
इन दोनों शोधों में सना शालान के साहित्यिक रचना संसार को दो विभिन्न दृष्टिकोणों से खंगाला गया—एक ओर अरबी शिक्षा में मूल्यपरक तत्वों की खोज, तो दूसरी ओर फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष की नाटकीय प्रस्तुति का विश्लेषण।
प्रतिष्ठित शिक्षकों की देखरेख में हुआ शोध
इन दोनों शोध प्रबंधों का मार्गदर्शन अल्जीरिया के प्रसिद्ध नाटककार और शिक्षाविद् प्रो. डॉ. मोहम्मद ज़ाइत्री ने किया। साथ ही चर्चा समितियों में शामिल रहे:
- प्रो. डॉ. अज़्ज़ूज़ ख़तीम (अध्यक्ष – पहले शोध में)
- प्रो. डॉ. उमर अलिवी (अध्यक्ष – दूसरे शोध में)
- प्रो. डॉ. मिफ्ताह ख़लूफ़ (परीक्षक – दोनों शोधों में)
‘सना शालान’ : एक अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक नाम

प्रो. डॉ. मोहम्मद ज़ाइत्री ने अपने संबोधन में कहा कि प्रो. सना शालान का साहित्य न केवल जॉर्डन और फिलिस्तीन की सांस्कृतिक चेतना को समर्पित है, बल्कि वह समूचे अरबी साहित्यिक परिदृश्य में एक वैचारिक स्तंभ के रूप में खड़ा होता है। उन्होंने कहा कि सना शालान का लेखन फिलिस्तीनी संघर्ष और अरबी पीढ़ी के नैतिक निर्माण—दोनों पर एक साथ काम करता है।
ज़ाइत्री ने सना शालान की माँ, स्वर्गीय नईमा मशायख़ का भी उल्लेख किया, जिनके साहित्यिक संस्कारों ने सना को एक वैश्विक लेखिका के रूप में ढाला।
‘Muslim Now’ के लिए क्या मायने रखती है ये उपलब्धि?

यह महत्वपूर्ण है कि दोनों शोध प्रबंधों को “उत्कृष्टता” (Distinction) की उपाधि दी गई, जो इस बात का प्रमाण है कि प्रो. डॉ. सना शालान का साहित्यिक अवदान महज़ कलात्मक नहीं, शोध की दृष्टि से भी ठोस और प्रेरणास्पद है।
यह पहल मुहम्मद बुदियाफ यूनिवर्सिटी, मसीला में चल रहे एक समर्पित अकादमिक प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य समकालीन अरबी रचनाशीलता को वैश्विक दृष्टिकोण से समझना और उसका अकादमिक मूल्यांकन करना है।